
दिल्ली में खिचड़ी की कुटिल नीति....
सूर्य के मकर राशी में प्रवेश को मकर संक्रांति कहते हैं | पूरब से दक्षिण के बाद पूरब से उत्तर में सूर्य का चलना शुभ माना गया है | आप कह सकते हैं कि यह शुभ समय की शुरुआत है | इस अर्थ में ही देश के विभिन्न भागो में अपने तरह से मकर संक्रांति मनाई जाती है | दिल्ली के राजनितिक गलियारे में भी मकर संक्रांति मनाई गयी पर दिल्ली के राजनितिक इतिहास में ऐसा आयोजन पहली बार हुआ इसलिये यह विशेष भी है और टिप्पणी योग्य भी है |
जाहिर है दिल्ली के सियासी समीकरण को पूर्वांचली वोटरों ने प्रभावित किया है जिस कारण सियासी रहबरों की चालाकी या स्वभाव में पुरबिया चलन शुमार है | यह हमारे लिए अच्छा है पर उनका क्या जो इस मुकाम तक पहुँचाने में अपनी जमा- पूंजी लुटा कर उपेक्षा की राह में अब भी खड़े है |
सन २००० में भी दिल्ली पुरबियों से भरी थी | तब रिक्शा, फैक्ट्री, और भवन निर्माण के कामगारों की एक जमात थी जो कमरे से लगायत काम के स्थान तक हिकारत का दंस सहती थी | तब बड़े पदों पर काम करने वाले लोग भी थे और बड़े कारोबारी भी थे पर ये बिहारी होने की अपनी पहचान छिपाते थे पर आज ऐसा क्या है की हम बड़े बिहारी होने का दंभ भरने लगे है ?
अब दिल्ली के भाजपा प्रमुख मनोज तिवारी ताल कटोरा स्टेडियम में बड़े नेताओं के संग खिचड़ी का त्यौहार मानते हैं उधर डी पी सी सी में दिल्ली कांग्रेस के मुखिया महाबल संग दही - चिउरा का भोज करते हैं | २००० से २०१८ आते आते दिल्ली इतनी बदली की अब सियासतदान यहाँ तक कहने लगे कि पूर्वांचली संस्कृति से दिल्ली अपनी तहजीब सीख रही है | अगर आप दही - चिउरा भोज के गवाह हैं तो आप अजय माकन के उक्त कौल के भी साक्षी हैं |
तब भी महाबल मिश्र के आँख से निरादर के लोर निकल ही जाते हैं | महाबल मिश्र पर यकीन करें न करें पर आज उनकी इस बात को कबूल करना होगा कि नई पीढ़ी यह जाने कि दिल्ली में हमने सम्मान कैसे अर्जित किया | विस्तार में न जाकर यह मानना कि लाल बिहारी तिवारी या महाबल मिश्र जैसों के राजनितिक प्रयास की देन है तो यह बेईमानी होगी | सच कहें तो जो सबसे जरूरी था तब, वह था स्वयं को हीनता से निकालकर अपनी पहचान का लट्ठ गाड़ना और इस काम में भोजपुरी और मैथिलि बोली व सुर ने बड़ा काम किया | भोजपुरी समाज दिल्ली, पूर्वांचल एकता मंच, जैसे अन्य कई सामाजिक संस्थाओं ने बोली और सुर ताल के जरिये अपना संख्या बल दिखाया | दूसरी ओर संख्या बल को वोट में बदलने की जुगत और लोभ ने पूर्वांचलियों को सत्ताई गलियारे का मुखिया बना दिया | यहाँ तक पहुँचने में दिया के नौ मन तेल जले हैं | करीब से जानना हो तो साहित्य अकादमी के सदस्य अजीत दुबे का साक्षात्कार लिया जा सकता है | इस फेहरिस्त में नाम बहुत है लिहाजा कुछ का नाम लेना उचित नही होगा |
विषय वश महाबल मिश्र या लाल विहारी तिवारी की राजनितिक भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता | अगर खुद के लिये ये ताकतवर हुए तो निश्चित रूप से पूर्वांचल को भी ताकत दिये | एक समय मजाक में महाबल को दिल्ली का लालू कहा गया, यह अलग बात है कि नेता के हिसाब से यह लालू बनने की राह में अब भी खड़े हैं |
रीति के आयोजन में धीमे से जो बड़ी बात कही गई उसका जिकर यहाँ जरूरी है | कांग्रेस के प्रदेश मुखिया अजय माकन ने कहा की दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री पूर्वांचली होगा | यह राजनितिक लाभ के लिए कही गई बात हो सकती है पर यहाँ कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए अथाह में पड़ने जैसा होगा | मिडिया के अभाव में बात दूर तक नहीं निकली यह अटपटा जरुर लगा |
लगे हाथ भोजपुरी की भी बात कर लेते है | यहाँ प्रासंगिक इसलिए है कि जब हमारी इस पूछ में भोजपुरी का हाथ बड़ा है फिर भोजपुरी छोटी कैसे हो सकती है ? कांग्रेस हो या भाजपा भोजपुरी की मान्यता को लेकर गुरेज क्यों रखती है ? दिल्ली के लोगों को भी इस बहाने सड़क पर निकलना चाहिए वरना राजनीति के लोग प्रथा को दिखावा तक निर्धारित कर देंगे |
-भारत चतुर्वेदी