
'परख' राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट-2024: बुनियादी शिक्षा के विकास से बेहतर नागरिक और आत्मनिर्भरता संभव !
उत्तरकाशी (उत्तराखंड): 'परख' राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट-2024 पर आज 'विशेष' में उत्तराखंड के फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार - सुनील महला द्वारा 'विश्लेषण करने के उपरांत एक समीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी है जिसमें बताया गया है कि, हाल ही में शिक्षा मंत्रालय द्वारा 'परख' राष्ट्रीय सर्वेक्षण, 2024 की रिपोर्ट जारी की गई है, जो बुनियादी शिक्षा में सुधार की जरूरतों को रेखांकित करती है।
वास्तव में आज जरूरत इस बात की है कि, प्राथमिक शिक्षा में सुधार किया जाए।
कहना ग़लत नहीं होगा कि, प्राथमिक शिक्षा ही वास्तव में देश व समाज का भविष्य तय करती है, क्यों कि यहीं से शिक्षा की असली नींव शुरू होती है और यदि प्राथमिक शिक्षा की नींव मजबूत है तो देश और समाज का भविष्य भी उज्ज्वल है।
हमारे देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद यह बात कहां करते थे कि, भारत के भाग्य और भविष्य का निर्माण देश के स्कूलों में ही तय होगा। अगर स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था आगे बढ़ेगी, तो भारत भी आगे बढ़ेगा। यह बुनियादी शिक्षा ही होती है जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देती है, लेकिन प्राथमिक शिक्षा अब भी कोरोना महामारी के असर से बाहर नहीं निकल पायी है।
परख सर्वे 2024 बताता है कि, 9वीं क्लास में पढ़ने वाले 63 प्रतिशत बच्चे बड़ी संख्याओं का गुणा भाग नहीं कर पाते हैं। यह बात भारत के 21 लाख से ज्यादा स्कूली बच्चों पर हाल ही में किए गए सर्वे में सामने आई है।
पाठकों को बताता चलूं कि, राष्ट्रीय सर्वेक्षण (परख) के तहत पिछले साल दिसंबर में 21,15,022 विद्यार्थियों का सर्वे किया गया था। इस सर्वेक्षण में 36 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के 781 जिलों के 74,229 सरकारी और निजी स्कूलों को शामिल किया गया था। यह सर्वे तीसरी, छठी और नौवीं के विद्यार्थियों को लेकर किया गया था।
केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के सर्वे द्वारा यह पता चला है कि, 2024 में देश की बेसिक शिक्षा का स्तर कोरोना के बाद से नीचे आ गया है।
रिपोर्ट में सामने आया है कि, कक्षा 6 वीं तक के केवल 53 प्रतिशत बच्चो को ही 10 का पहाड़ा आता है। वहीं दूसरी ओर कक्षा 3 तक के केवल 55 % बच्चो को ही 1 से लेकर 100 तक की गिनती आती है। इतना ही नहीं, कक्षा 3 के करीब 45 % बच्चे 1 से 100 तक गिनती को बढ़ते या घटते क्रम में भी नहीं लगा पाये। दूसरी ओर करीब 42 % बच्चे संख्याओ के बीच जोड़-घटाना नहीं कर पाए।
रिपोर्ट बताती है कि, कक्षा 6 के 47 % बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें 4 बेसिक सामान्य गणित ऑपरेशन जोड़, घटाना, गुणा,भाग ठीक से हल करना नहीं आता और न ही इन्हें 10 तक की संख्याओ के ठीक से पहाड़े याद है और न ही उन संख्याओ के बीच गुना करना जानते है।
कक्षा 6 में पर्यावरण और सोसाइटी में बच्चों का परफॉर्मेंस 49% है तथा भाषा में औसत परफॉर्मेंस 57% है, जबकि गणित में सबसे कम 46% है।
शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार 50 फीसदी से कम छात्रों के सही जवाब देने से उनके सीखने की क्षमता में अंतर का साफ पता चलता है। वहीँ कक्षा 3 में केंद्रीय सरकारी स्कूलों का सबसे कम परफॉर्मेंस गणित विषय में ही है। कक्षा 6 में भी गणित सबसे खराब परफॉर्मेंस वाला विषय रहा है।
पाठकों को बताता चलूं कि, सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों के नतीजे भी एक जैसे ही रहे, लेकिन गणित में प्रदर्शन सबसे खराब रहा। हालांकि भाषा के मामले में सभी स्कूलों का बेहतरीन प्रदर्शन रहा। सर्वे में ग्रामीण और शहरी स्कूलों के परिणामों पर भी गौर किया गया है। इसमें ग्रामीण इलाकों के कक्षा तीन के विद्यार्थियों ने गणित और भाषा में बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि शहरी क्षेत्रों के छठी और नौवीं के विद्यार्थियों ने ग्रामीण इलाकों के विद्यार्थियों को सभी विषयों में पछाड़ दिया।
वास्तव में यह सब दर्शाता है कि, प्राथमिक शिक्षा में बच्चों का प्रदर्शन बहुत ही खराब है। दूसरे शब्दों में कहें तो ये आंकड़े इस बात की ओर संकेत करते हैं कि, स्कूलों की शैक्षणिक गुणवत्ता में असमानता अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
वास्तव में कोविड आने से छात्रों की सीखने की क्षमताओं पर व्यापक असर पड़ा, क्यों कि जो लर्निंग (अधिगम) छात्र आफलाइन कक्षाओं में कर पाते थे, कोविड के समय आनलाइन कक्षाओं से छात्रों को वह अधिगम नहीं हो पाया। दूसरे शब्दों में कहें तो महामारी के कारण स्कूल बंद होने और हाइब्रिड/वर्चुअल लर्निंग पर स्विच करने से कई माध्यमों से छात्रों की उपलब्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, जिसमें कौशल संचय में गिरावट और सहकर्मी प्रभाव और सहकर्मी-समूह गठन में व्यवधान शामिल हैं।
अंत में यही कहूंगा कि, परख-2024 की रिपोर्ट बुनियादी शिक्षा में सुधार किए जाने की बात करती है। बुनियादी शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए, मातृभाषा में शिक्षा दिया जाना आवश्यक है, क्यों कि मातृभाषा ही वह भाषा है जिसमें विद्यार्थियों को अधिगम में सहजता, सरलता महसूस होती है और वे चीजें आसानी से ग्रहण कर पाते हैं। शिक्षा को कार्य-केंद्रित बनाने की भी जरूरत है।
टास्क सेंटर्ड लर्निंग से छात्र व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर आत्मनिर्भर बन सकते हैं।इसके अतिरिक्त, शिक्षा में लोकतांत्रिक नागरिकता, राष्ट्रीय एकीकरण, और सर्वोदय समाज के विकास के मूल्यों को शामिल करना भी बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षक प्रशिक्षण, मूल्यांकन प्रक्रिया, सामुदायिक भागीदारी, डिजिटल शिक्षा, आधारभूत और जीवन कौशल तथा शिक्षण सामग्री आदि पर भी पर्याप्त ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इतना ही नहीं, शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए लचीला बुनियादी ढांचा विकसित करने की आवश्यकता है।
हमें यह याद रखना चाहिए कि, यदि हमारी बुनियादी शिक्षा प्रभावी व अच्छी है तो छात्रों को ज्ञान और कौशल तो प्राप्त होगा ही, साथ ही साथ छात्र देश के बेहतर नागरिक और आत्मनिर्भर व्यक्ति भी बन सकेंगे।
कहना ग़लत नहीं होगा कि, बुनियादी शिक्षा बालकों के समग्र विकास पर आधारित होनी चाहिए। बुनियादी शिक्षा वह आधारशिला है,जिस पर व्यक्ति और किसी भी राष्ट्र का भविष्य टिका होता है।
अतः हमें यह चाहिए कि हम बुनियादी शिक्षा को सुदृढ़ करने की दिशा में आवश्यक और जरूरी कदम उठाएं।
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