बीते 17 सालों में कोयला बिजली उत्पादन को नहीं मिला सार्वजनिक बैंकों की फंडिंग का ख़ास साथ
लखनऊ: Climate कहानी की विशेष प्रस्तुति में बताया गया है कि, सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी (सीएफए) की नई रिपोर्ट 'द कोल टेल : ट्रैकिंग इन्वेस्टमेंट्स इन कोल फायर्ड थर्मल पावर प्लांट्स इन इंडिया' ने देश में कोयले से चलने वाले बिजली घरों को दी गई वित्तीय सहायता का खुलासा करते हुए बताया है कि साल 2005 से 2022 के बीच भारत में 84 राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय ऋणदाताओं ने 1000 मेगा वाट या उससे ज्यादा की क्षमता वाले थर्मल पावर प्लांट संबंधी परियोजनाओं के लिए 7.62 लाख करोड़ रुपए का कर्ज उपलब्ध कराया है।
यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब पिछले दिनों मिस्र के शर्म अल शेख में जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन COP27 का समापन हुआ है, जहां भारत ने प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी लाने और विकास की अपनी दीर्घकालिक रणनीतियों का ऐलान किया है। इसके अलावा भारत ने हाल ही में एक दिसंबर को जी-20 देशों की शिखर बैठक की अध्यक्षता भी संभाली है। इस बैठक में भी ऊर्जा रूपांतरण पर चर्चा होगी।
इस रिपोर्ट में वर्ष 2005 से 2022 के बीच देश के 16 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 140 थर्मल पावर प्लांट्स के डाटा का विश्लेषण किया गया है। इनमें से 122 चालू हो चुके हैं और 18 अपने निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। इनमें से वर्ष 2005 से 2022 के बीच स्थापित 122 प्लांट्स 204 गीगावाट की कुल स्थापित क्षमता में से लगभग 196 गीगावॉट का उत्पादन करते हैं। कुल बिजली उत्पादन में से 122 गीगा वाट का उत्पादन सार्वजनिक क्षेत्र के थर्मल पावर प्लांट द्वारा और 73 गीगा वाट का उत्पादन निजी स्वामित्व वाले संयंत्रों के जरिए होता है।
सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी में डाटा एनालिस्ट और इस रिपोर्ट के लेखक कैनेथ गोम्स ने कहा "परियोजना की साध्यता की किसी भी जांच के लिए उसके वित्त पोषण संबंधी जानकारी बेहद जरूरी है। न सिर्फ दक्षता और आवश्यकता के मामले में बल्कि ऐसी परियोजनाओं से जुड़े पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के मामले में भी यह जरूरी है। मगर इसके बावजूद ऐसी सूचना विरले ही आम लोगों तक पहुंच पाती है। ऐसा मुख्य रूप से पारदर्शिता की कमी और बैंक तथा उपभोक्ता के बीच विश्वास आधारित संबंधों के चालाकी भरे इस्तेमाल के कारण होता है। इस रिपोर्ट का मकसद इस विषमता को खत्म करना और ऐसी सूचनाओं को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना है ताकि वित्तीय संस्थानों से जवाबदेही की मांग को प्रोत्साहन मिल सके।
इस साल के शुरू में भारतीय रिजर्व बैंक आरबीआई ने एक विमर्श पत्र (डिस्कशन पेपर) जारी किया था जिसमें क्लाइमेट रिलेटेड फिनेंशियल डिस्क्लोजर (टीसीएफडी) को लेकर एक टास्क फोर्स बनाने की जरूरत पर जोर दिया गया था। टीसीएफडी जलवायु संबंधी जोखिमों के खुलासे के लिए अपनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय मानक है।
घरेलू स्तर पर दिए गए 7.12 लाख करोड़ रुपए के कर्ज में से पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) और रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कारपोरेशन लिमिटेड (आरईसी) ने कुल 4.19 लाख करोड़ रुपए के कर्ज बांटे हैं जो गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा दिए गए कुल ऋण का करीब 90% है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में से भारतीय स्टेट बैंक ने कुल 55 थर्मल पावर प्लांट्स को कर्ज दिया है जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा बांटे गए कुल ऋण का 35.21% है। भारत के अंदर निजी बैंकों ने कोयले से चलने वाले बिजली घरों की परियोजनाओं को 0.2 78 लाख करोड़ रुपए का कर्ज दिया है। इनमें से आईसीआईसीआई बैंक ने सबसे ज्यादा 0.073 लाख करोड़ रुपए का ऋण दिया है। इसके बाद एक्सिस बैंक ने 0.071 लाख करोड़ और एचडीएफसी में 0.0615 लाख करोड़ रुपए का कर्ज बांटा है। राज्यवार आंकड़े देखें तो तमिलनाडु ने थर्मल पावर प्लांट संबंधी परियोजनाओं के लिए सबसे ज्यादा 0.847 लाख करोड़ रुपए का कर्ज हासिल किया है। उसके बाद तेलंगाना, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की बारी आती है।
इस रिपोर्ट में 22 अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के आंकड़ों को शामिल किया गया है जिन्होंने भारत में थर्मल पावर प्लांट संबंधी परियोजनाओं के लिए 0.503 लाख करोड़ रुपए का कर्ज दिया है। जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन ने 0.0734 लाख करोड़ रुपए का ऋण दिया है। वहीं, चाइना डेवलपमेंट बैंक ने 0.0641 लाख करोड़ रुपए का कर्ज दिया है। भारत में कोयला क्षेत्र को दिए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय ऋण में जापान और चीन का दबदबा है। कर्ज देने वाले वित्तीय संस्थानों में जेबीआईसी, जेआईसीए, चाइना एक्जिम बैंक, मिज़ूहो कॉरपोरेशन बैंक लिमिटेड, इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना तथा अन्य शामिल हैं।हालांकि हाल के वर्षों में थर्मल पावर उत्पादन क्षमता में वृद्धि में गिरावट देखी गई है। कोकिंग और गैर कोकिंग कोयले समेत कोयले की कुल आपूर्ति पिछले पांच साल के दौरान 808 मिलियन टन से बढ़कर 955 मिलियन टन हो गई है। वित्तीय संस्थान हालांकि संबंधित जोखिमों को देखते हुए थर्मल पावर प्लांट्स को कर्ज देने से पहले से ज्यादा कतरा रहे हैं। हाल ही में जारी 'कोल वर्सेस आरई इन्वेस्टमेंट्स' रिपोर्ट के मुताबिक फेडरल बैंक ऐसा पहला वाणिज्यिक बैंक था जिसने कोयले से चलने वाले बिजली घर संबंधी परियोजनाओं को कर नहीं देने संबंधी नीति का ऐलान किया था। हाल ही में सर्वोदय स्मॉल फाइनेंस बैंक ने भी कोयला आधारित परियोजनाओं के लिए कर्ज नहीं देने की घोषणा की थी।