Climate कहानी: यह तेल कम्पनी 50 साल डाले रही अपनी काली करतूतों पर पर्दा
Climate कहानी में प्रस्तुत है,
कार्यवाई की जगह चलाया गया जलवायु परिवर्तन को विवादित बनाने के लिए शंकाओं और गलत जानकारियों का कुचक्र:
मामला है फ्रांस की तेल और गैस उत्पादन क्षेत्र की प्रमुख कंपनी ‘टोटल एनर्जी’ का, जिसमें ताज़ा प्रमाण इस बात के मिलते हैं कि टोटल एनर्जी को अपने उत्पादों के दहन से उत्पन्न होने वाले जलवायु परिवर्तन संबंधी जोखिमों के बारे में साल 1971 से ही पता था लेकिन वह न सिर्फ़ 1988 तक इस मामले पर सार्वजनिक रूप से चुप्पी साधे रही, बल्कि 1980 के दशक के उत्तरार्ध में उसने ग्लोबल वार्मिंग के बारे में सामने आ रहे वैज्ञानिक सबूतों पर शंका को बढ़ावा देना भी शुरू किया।
टोटल एनर्जी ने अंततः 1990 के दशक के अंतिम वर्षों में जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल पर नियंत्रण में नीति संबंधी विलंब करते हुए वैज्ञानिक सुबूतों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया।
ग्लोबल एनवायरमेंटल चेंज में प्रकाशित एक ताज़ा अध्ययन में इसका सारांश रूप प्रस्तुत किया गया है और इस शोध में फ्रांस के क्रिस्टोफ बोनोए (सीएनआरएस में रिसर्च डायरेक्टर), पियरे लुइस चोके (साइंस-पो पेरिस) और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में इतिहास के पीएचडी कैंडिडेट डॉक्टर बेंजामिन फ्रंटा शामिल हैं। इतना ही नहीं, इस शोध के दौरान शोधकर्ताओं ने इस बात का नया सुबूत भी सामने रखा कि एक्सोन ने इंटरनेशनल पेट्रोलियम इंडस्ट्री इन्वायरमेंटल कंजर्वेशन एसोसिएशन (आईपीआईईसीए) के माध्यम से एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय अभियान चलाया जिसमें जलवायु विज्ञान को विवादित बनाने तथा अंतरराष्ट्रीय जलवायु नीति को कमजोर करने का कुचक्र रचा गया। यह काम 1980 के दशक के शुरू से ही किया गया। अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ग्लोबल एनवायरमेंटल चेंज में आज प्रकाशित लेख के मुताबिक तीन इतिहासकारों ने इस बात का खुलासा किया है कि टोटल एनर्जीज (तत्कालीन टोटल एंड एल्फ) के प्रबंधकों तथा कर्मचारियों को वर्ष 1971 में ही जीवाश्म ईंधन के उत्पादन के कारण होने वाले अभूतपूर्व जलवायु परिवर्तन की आशंका के बारे में आगाह कर दिया गया था। दस्तावेज में इस बात का खुलासा किया गया है कि किस तरह से इस बहुराष्ट्रीय तेल उत्पादक कंपनी ने जनता नीति निर्धारकों और निवेशकों को 50 साल से ज्यादा समय तक धोखा दिया इसके लिए उसने निम्नलिखित चालें चली:
- जलवायु विज्ञान का श्रेय छीनने और जलवायु संबंधी आपात स्थिति को लेकर संदेह उत्पन्न करने के लिए अनेक रणनीतियां बनाई।
- अपनी गतिविधियों पर किसी भी तरह की रोक टोक और नियमन को रोकने के लिए जबरदस्त लामबंदी की।
- धरती और उस पर रहने वाले लोगों पर संभावित विध्वंसकारी प्रभावों के बारे में जानने के बावजूद जीवाश्म ईंधन के इर्द-गर्द लगभग अकेले अपने कारोबार को और सघन रूप से विकसित करना जारी रखा।
इन रहस्योद्घाटनों को सबके सामने लाने के लिए नोट्र अफेयरे टाउस और 350.org एक अभियान शुरू कर रही है, जिसके तहत वे सार्वजनिक प्राधिकारियों का इन कंपनियों को जवाबदेह ठहराने और प्रमुख बैंकों का टोटल के साथ अपने तमाम संबंध तोड़ने का आह्वान कर रही हैं।
नोट्र अफेयरे टाउस और 350.ओआरजी के मुताबिक इन रहस्योद्घाटनों से इस बात के सुबूत मिलते हैं कि टोटल एनर्जी और तेल तथा गैस उत्पादन क्षेत्र की अन्य प्रमुख कंपनियों ने जलवायु संकट को एक समस्या के तौर पर समझने के लिए एक पीढ़ी के बराबर कीमती वक्त चुराया। अगर टोटल के जिम्मेदार अधिकारियों ने 50 साल पहले यह तय कर लिया होता कि उनके मुनाफे के मुकाबले धरती का भविष्य ज्यादा महत्वपूर्ण है तो जलवायु परिवर्तन के उन गंभीर परिणामों को टाला जा सकता था, जिन्हें हम इस वक्त भुगत रहे हैं।
पिछले 50 वर्षों के दौरान टोटल द्वारा अपनाई गई रणनीतियों से जाहिर होता है कि हमेशा से इस बहुराष्ट्रीय कंपनी की नजर में उसका मुनाफा ही सब कुछ रहा है। चाहे मानवता और जलवायु को इसकी कितनी भी बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। यहां तक कि आज भी टोटल एनर्जीज अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ा रही है और संरक्षित क्षेत्रों में ईस्ट अफ्रीकन क्रूड ऑयल पाइपलाइन और आर्कटिक एलएनजी2 जैसी नई विध्वंसकारी परियोजनाओं को विकसित करने में जुटी है। कंपनी की मौजूदा योजनाओं के मुताबिक वर्ष 2030 तक इस ग्रुप में होने वाले निवेश का 80% से ज्यादा हिस्सा जीवाश्म ईंधन संबंधी परियोजनाओं पर खर्च किया जाएगा।
350.ओआरजी के फ्रांस टीम लीड क्लेमेंस डूबवा ने कहा "तेल और गैस की नई परियोजनाओं का सघन विकास दरअसल मानवता के खिलाफ जंग का ऐलान है। आने वाले वर्षों में बड़े पैमाने पर तेल और गैस की नई परियोजनाओं का विकास जारी रखने की टोटल की योजना का अंत लाखों लोगों की जिंदगी के खात्मे के साथ हो सकता है। यह इसीलिए संभव हो पा रहा है क्योंकि उन्हें वित्तीय क्षेत्र से व्यापक सहयोग मिल रहा है। हम पूरी दुनिया के बैंकों से अपील कर रहे हैं कि अब टोटल को वित्त पोषण बंद करने का वक्त आ गया है।"
जैसा कि सीओपी26 वार्ता कुछ हफ्तों बाद ही शुरू होने वाली है। ऐसे में ये खुलासे सरकारों द्वारा जीवाश्म ईंधन उद्योग और उसके वित्तीय समर्थकों पर लगाम लगाने की तत्काल आवश्यकता को जाहिर करते हैं। बजाय इसके कि सरकारें उन कंपनियों के स्वेच्छा से खुद को रूपांतरित करने का इंतजार करें।
नोट्र अफेयरे टाउस के अभियान प्रबंधक जस्टिन रिपोल ने कहा "जलवायु संबंधी अपने संकल्पों का आदर करने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मजबूर करने के लिए कानूनी कार्य योजना और मुकदमे ज्यादा से ज्यादा प्रभावशाली साबित होते हैं। जैसा कि नीदरलैंड्स में शेल के मामले में नजर आया था। लेकिन हमें सतर्क रहना होगा। बड़े कारोबारियों की लाॅबी की तरफ से इन कानूनी पहलों पर लगातार हमले हो रहे हैं। जैसा कि हम इस वक्त यूरोपीय संघ के कॉरपोरेट्स ड्यू डिलिजेंस और जवाबदेही पहल या ट्रांसनेशनल कॉरपोरेशंस को लेकर संयुक्त राष्ट्र की बाध्यकारी संधि के साथ देख होते रहे हैं।’’
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों को आबादी और धरती के भविष्य के मुकाबले प्राथमिकता देने के लिए सार्वजनिक प्राधिकरण के साथ लामबंदी की ऐसी हरकतें, जो नए प्रकाशित शोध में लिखी गई हैं, वे वर्तमान में भी हो रही हैं। नोट्र अफेयरे टाउस और 350.ओआरजी ने फ्रांस की सरकार का आह्वान किया है कि वह एक जांच आयोग गठित करे ताकि इस बात पर रोशनी डाली जा सके कि इन दशकों के दौरान किस तरह जलवायु संबंधी नीतिगत निर्णय दिए गए। खास तौर पर तब, जब हम इस बात को जानते हैं कि टोटल एंड एल्फ पहले भी और आज भी फ्रांस की सरकार के साथ करीबी रिश्ते बनाकर काम कर रही है। जैसा कि फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ नामक संस्था की हाल की रिपोर्ट में जाहिर भी किया गया है।
350.ओआरजी और नोट्र अफेयरे टाउस की सरकारों तथा वित्त पोषणकर्ता पक्षों से मांग है कि वे टोटल एनर्जीज को जीवाश्म ईंधन संबंधी नई परियोजनाओं को विकसित करने से रोक कर उसे पेरिस जलवायु समझौते को अपनाने के लिए मजबूर करें।
टोटल एनर्जी की गतिविधियों का नियमन न करने का फैसला करके और उन्हें वित्तीय सहायता जारी रखकर सरकार और वित्तीय संस्थान जलवायु संबंधी रूपांतरण का पूरा भार नागरिकों तथा स्थानीय अधिकरणों पर डाल रहे हैं, जो जीवाश्म ईंधन के बेतहाशा दोहन की अब बड़ी कीमत चुका रहे हैं। टोटल एनर्जीज को 50 साल से भी अधिक समय से दी जा रही वैज्ञानिक चेतावनियों को नजरअंदाज करने के उसके फैसले के कारण हुई क्षति और नुक़सान के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।