भारत रत्न और गणतंत्र दिवस: देश के महान लोगों की कुर्बानी को किया जा रहा है उपेक्षित!
"भारत रत्न" भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है और यह सम्मान असाधारण राष्ट्रीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है।
इन सेवाओं में कला, साहित्य, विज्ञान, सेवा और खेल शामिल है।
इस सम्मान की स्थापना 2 जनवरी 1954 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी।
नई-दिल्ली: भारत सरकार के द्वारा घोषित भारत-रत्न व राष्ट्रीय पुरस्कारों की सूची तथा बुन्देलखण्ड के दो महानायकों डाॅ• हरीसिंह गौर व मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न नहीं देेेेकर देेश की भावनाओं की उपेक्षा करने से आहत लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- विख्यात समाजवादी चिंतक, विचारक व राजनैतिक पैगम्बर- रघु ठाकुर ने कहा कि, "बहुतेरे पुराने नवाब राजे महाराजे अमीर सेठ सत्ताधीश मु•मन्त्री मंत्री सांसद विधायक इतिहास के कबाड़ खाने में दफन है।
याद उन्ही की होगी जो अपने वतन और दुनिया के लिए कुछ करके जायेंगे।
बुन्देलखण्ड दुखी है अपमानित महसूस कर रहा है।
हमारे महान लोगों की कुर्बानी को उपेक्षित किया जा रहा है।
रघु ठाकुर ने लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि,
कब तक घरों में दुबके रहोगे।
आओ, निकलो -बोलो -लड़ो -पर कुछ करो।
उन्होंने कहा कि, "भारत सरकार के द्वारा घोषित भारतरत्न व राष्ट्रीय पुरूस्कारों की सूची में कोई नयापन नहीं है। पहले भी सत्ता चयनित पुरुस्कृत होते थे और अभी भी।"
उन्होंने कहा कि, "मेरी राय में अब राष्ट्रीय पुरस्कारों का चयन जनमत संग्रह से कराया जाना चाहिए तथा पूर्व में दिए गए पुरस्कारों पर भी जनमत संग्रह करा कर पुनर्निर्णय होना चाहिये।
आपकी राय क्या है, बतायें।
रघु ठाकुर ने कहा कि, "बुन्देलखण्ड के दो महानायकों डॉ हरीसिंह गौर व मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न नहीं दिया गया।
ऐसा नहीं है कि सरकार की घोषणा से उनका मान बढ़ेगा बल्कि मान तो उस सरकार का बढ़ता जो यह निर्णय करती।
भारत रत्न की घोषणा तो महज उनके महान कार्य का स्मरण व अन्यों को उन जैसे बनने की कुछ प्रेरणा करती।
दरअसल बुन्देलखण्ड के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने आजादी के बाद से आज तक अपनी कमर व गर्दन सीधी नहीं की।
चुनाव हेतु पार्टी के टिकिट, फिर थोड़ी और बड़ी कुर्सी फिर धन दौलत फिर सन्तानों को टिकिट के लिये गिड़गिड़ाना यही उनकी राजनीति है।
जनमत ने भी कभी अपने इतिहास के इन गौरवशाली व्यक्तियों के सम्मान के साथ खड़ा होने का प्रयास नहीं किया।
केवल साल में दो दिन मूर्ति पूजा कर अपने दायित्व की इतिश्री कर ली।"
उन्होंने बताया कि, "बुन्देलखण्ड सर्वदलीय नागरिक संघर्ष मोर्चा पिछले अनेक वर्षों से दिल्ली में आवाज देता रहा परन्तु आश्वासनों के अलावा कुछ हुआ नहीं क्योंकि सत्ता जानती है कि राजनीति के इस बन्धुआ काल में वोट तो जाति, धर्म, पैसा, शराब, पद के लिए मिलता है।
इतिहास गौरव ज्ञान चरित्र ईमानदारी तो केवल जुमले और वोट कबाड़ने के औजार हैं।"
उन्होंने बताया कि, "राष्ट्रीय पुरस्कार इतने हल्के हो गए हैं कि लगता है कि अब डॉ• गौर जैसे दानवीर व महान व्यक्ति को व मेजर ध्यानचंद जैसे राष्ट्रभक्त हॉकी के जादूगर को ये पुरस्कार अपात्रों की लम्बी श्रृंखला में डाल देंगे।
कुल मिलाकर आज गणतंत्र दिवस पर सत्ताधीशों का संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग पक्षपात दु:खद व निन्दनीय है।
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