लहू बोलता भी है: आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- युसुफ़ ज़फर मेहर अली
आईये, जानते हैं,
आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- युसुफ़ ज़फर मेहर अली को.......
युसुफ़ ज़फर मेहर अली की पैदाइश 3 सितम्बर सन् 1903 को बाम्बे के एक कारोबारी घराने में हुई। आपने वकालत की तालीम पूरी कर मुल्क़ की आज़ादी की लड़ाई के लिए अपने को वक़्फ कर दिया।
वकालत की पढ़ाई के दौरान ही आपने एक आर्टिकल लिखा, जिसमें ब्रिटिश हुकूमत के अमानवीय व्यवहार पर कड़ा हमला किया गया था। आपने लिखा कि ब्रिटिश शासक कुत्ते के समान हैं। अगर आप उन्हें लात मारेंगे तो वे आपके तलवे चाटेंगे, लेकिन जब आप उनके तलवे चाटेंगे तो वे लात मारेंगे। इसके लिए ब्रिटिश अख़बारों ने बड़ी नाराज़गी ज़ाहिर की।
मेहर अली ने सन् 1925 में 22 साल की उम्र में यंग इण्डिया सोसायटी के नाम से नौजवानों की एक टीम बनाकर ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ उन्हें मुल्क की आज़ादी की लड़ाई के लिए ट्रेनिंग दी।
21 जनवरी सन् 1928 को सोसायटी की मीटिंग में एक प्रस्ताव के ज़रिये टोटल इंडीपेंडेंस और साइमन कमीशन के बाइकाट का फैसला लिया गया।
कांग्रेस के बड़े नेताओं ने इसे एक बचकाना हरकत बताया। युसुफ मेहर अली ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि मुल्क की आज़ादी के लिए वक़्त पर बच्चे को भी बाप बनना पड़ता है।
जब साइमन कमीशन की शिप बाम्बे के मोले शिपिंग यार्ड स्टेशन पर पहुंची और साइमन ने जैसे ही पैर नीचे उतारा, वैसे ही युसुफ मेहर अली ने छापा मारकर अपनी नौजवान सेना के साथ पुलिस को धक्का देते हुए "साईमन गो बैक" का नारा बुलंद किया।
अंग्रेज़ नौकरशाहों ने सबकी बहुत पिटाई की और गिरफ़्तार कर लिया। मेहर अली को सज़ा के साथ-साथ लीगल प्रैक्टिस से भी डीबार कर दिया गया।
जेल से आने के बाद आपने वीकली मैग़ज़ीन वैनगार्ड शुरू की जिसने नौजवानों में लड़ाई के लिए जोश पैदा करने का काम किया। उनके द्वारा यूथ इण्डिया के नौजवानों को टेªनिंग देने के काम की जानकारी मिलने पर अंग्रेज़ अफ़सर बहुत परेशान और नाराज हुए।
नौजवानों में आपकी बढ़ती मक़बूलियत और लीडरशिप को तोड़ने के लिए आपको कई बार गिरफ़्तार किया गया और यातनाएं भी दी गयी। आपने शाप एण्ड इस्टेबलिस्मेंट एक्ट के ज़रिए दुकानों पर काम करनेवाले मुलाज़िमों का शोषण बंद कराया।
मेहर युसुफ़ अली साहब ने सत्याग्रह मूवमेंट में भी नुमाया किरदार अदा किया। आपने सभी आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और पुलिस का ज़ुल्म और ज़्यादतियां भी सहीं।
आपको सन् 1942 के क्विट इण्डिया आंदोलन का हीरो भी कहा जाता था। मेहर ने सोशलिस्ट पार्टी की तरफ़ से मार्च 1948 में बाम्बे लेजिसलेटिव एसेम्बली का चुनाव भी जीता।
आज़ादी के लिए दी गयी आपकी कुर्बानी और सादगी मुल्क़ के नौजवानों के लिए रोल माडल भी है। यरवदा जेल में मेहर पर अंग्रेज़ अफ़सरों ने इतना ज़ुल्म किया था कि उस वक़्त की अंदरूनी चोट की वजह से जून सन् 1950 में आप बहुत सख़्त बीमार पड़े और अस्पताल में ही 2 जुलाई सन् 1950 को जंगे-आज़ादी के इस बहादुर सिपाही का इंतक़ाल हो गया।
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