निगरानी से पाक को परेशानी
दुनिया में काले धन को वैध बनाने से रोकने और आतंकवादी गतिविधियों के लिए पूंजी मुहैया कराने के खिलाफ नीतियां बनाने वाले संयुक्त राष्ट्र के 37 देशों के वित्तीय कार्रवाई कार्यदल (एफएटीएफ) की अहम बैठक होने में अब चंद दिन ही बचे हैं। इस बैठक में इस बात का फैसला होगा कि आतंकवादी समूहों को वित्तीय मदद मुहैया कराने और काले धन को वैध बनाने की गतिविधियों के लिए पाकिस्तान के खिलाफ दंडात्मक कदम उठाए जाएंगे या नहीं। इस बीच पाकिस्तान ने देश को काली सूची में डालने की योजना के टाले जाने की उम्मीद में एक पैकेज की घोषणा की है। एफएटीएफ की बैठक पेरिस में 24 से 29 जून तक होनी है। भारत और अमेरिका इस बैठक में अपनाई जाने वाली रणनीति को लेकर एक-दूसरे के संपर्क में हैं।
इस बीच पाकिस्तान के प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग (एसईसीपी) ने काले धन को वैध बनाने की प्रक्रिया पर लगाम लगाने के लिए नए नियमन की पेशकश की है ताकि आतंकवादी गतिविधियों के लिए वित्तीय मदद रोकी जा सके। इन नियमों के तहत पाकिस्तानी और संपर्ककर्ता विदेशी बैंकिंग संस्थानों पर पाकिस्तानी प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग की कड़ी नजर होगी। ऐसे में कोई भी वित्तीय योजना शुरू करने से पहले एसईसीपी को काले धन को वैध बनाने से जुड़े जोखिमों का मूल्यांकन कर पूरा जायजा देना होगा। विदेशी शाखाओं और पाकिस्तानी वित्तीय संस्थानों की सहयोगी कंपनियों को अब एसईसीपी को धनशोधन और आतंकवादी गतिविधियों के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराने की बात का पता लगाने और उस पर नियंत्रण की गारंटी देनी होगी
पाकिस्तान में 26 जुलाई को चुनाव होने है और वहां कार्यवाहक प्रधानमंत्री के जरिये काम चलाया जा रहा है। फरवरी में एफएटीएफ की अंतिम बैठक में लिए गए फैसले के मुताबिक पाकिस्तान पर होने वाली दंडात्मक कार्रवाई को रोकने के लिए वित्त मंत्री शमशाद अख्तर ने पिछले महीने 27 सख्त उपायों को पूरा करने पर विचार किया। फरवरी में एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान को चेतावनी सूची में डालकर उसे आगाह किया गया था कि अगर वह धनशोधन और आतंकवाद के लिए पूंजी न देने को लेकर कोई कदम नहीं उठाता है तो उसे ईरान और उत्तर कोरिया के साथ काली सूची में डाल दिया जाएगा। इस सूची में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा से लगे चमन और तोरखम क्षेत्र के जरिये अवैध तरीके से सीमा पार मुद्रा भेजने पर नियंत्रण करने, धनशोधन विरोधी और आतंकवादी गतिविधियों के लिए पूंजी मुहैया कराने के मामले में कानूनी सुधार, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को लागू करने, खासतौर पर लश्करे तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद द्वारा आतंकी गतिविधियों की आड़ में चलाए जा रहे फलाह-ए-इंसानियत को चंदा नहीं देने की बात भी शामिल है। इसमें पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन न करने के भारत के आग्रह को भी शामिल किया गया था जिसका जिक्र अमेरिका ने किया था।
पाकिस्तानी अखबारों के मुताबिक इस्लामाबाद ने पिछले महीने बैंकॉक में हुई एफएटीएफ की बैठक में अपनी कार्रवाई से जुड़ी योजना का खाका पेश किया था। लेकिन इसमें अंदाजा लगा जैसे कि पाकिस्तान लश्करे तैयबा, जमात उद दावा और फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन के खिलाफ कार्रवाई करने से बच रहा है। हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ की कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव है। लेकिन स्थानीय समाचारपत्रों की खबरों के मुताबिक पाकिस्तान ने यह कहकर अपना बचाव करने की कोशिश की है कि हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान में है।
अगर एफएटीएफ को लगातार यह संदेश मिलता है कि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों को पूंजी मुहैया कराने से रोकने और काले धन को वैध बनाने की प्रक्रिया के खिलाफ कोई पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा है तो इससे पाकिस्तान पर और दबाव बढ़ेगा। इसने पहले से ही पाकिस्तान की क्रेडिट रेटिंग में कमी करने के बारे में सोचा है (हालांकि यह आमदनी का मामूली हिस्सा ही है क्योंकि पाकिस्तान में कुछ पेंशन फंडों में निवेश किया गया है) और पिछले एक साल के दौरान इसकी मुद्रा में 10 फीसदी का अवमूल्यन हुआ है। ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के पास अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के चैप्टर 4 के तहत अपनी वित्तीय सेहत जांचने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा ताकि वह 2001 के बाद से चौथी बार आईएमएफ से कर्ज मांगने के लिए संपर्क कर सके।
एफएटीएफ एक वैश्विक संस्था है जो आंतकवादी गतिविधियों के लिए मुहैया कराई जा रही पूंजी और काले धन को वैध बनाने के खिलाफ कदम उठाती है। इसमें 37 स्थायी सदस्य हैं। इजरायल और सऊदी अरब पर्यवेक्षक की भूमिका में हैं। इस संस्था की फरवरी की बैठक में पाकिस्तान को आतंकवाद के लिए धन मुहैया कराने वाले देशों की निगरानी सूची में डाल दिया गया था जिससे बचने के लिए इसने काफी कोशिश की और चीन और खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) इसका बचाव करने में नाकाम रहे। पाकिस्तानी विश्लेषकों ने यह चेतावनी दी है कि अगर पाकिस्तानी इस निगरानी सूची में बना रहा तो यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका साबित होगा और इससे अमेरिका के साथ इसके संबंध ज्यादा तनावपूर्ण होंगे।
बातचीत से कश्मीर का समाधान: सोज
कश्मीर पर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के आजादी वाले विचार का समर्थन करने की वजह से विवादों में आए कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज ने शुक्रवार को कहा कि किताब में उन्होंने अपनी निजी राय जाहिर की है। उन्होंने यह भी कहा कि बलप्रयोग से कश्मीर मुद्दे का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि बातचीत से ही कोई रास्ता निकलेगा। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि किताब बेचने के लिए सोज के सस्ते हथकंडे अपनाने से यह सच नहीं बदलने वाला है कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस की जम्मू कश्मीर इकाई सोज के खिलाफ उचित कार्रवाई करेगी। किताब को लेकर खड़े हुए विवाद के बीच सोज ने कहा, 'किताब में जो बातें मैंने कहीं, वो मेरी निजी राय है। पार्टी से इसका कोई लेना देना नहीं है। इसको राजनीति से नहीं जोडि़ए।' सोज ने अपनी पुस्तक 'कश्मीर: ग्लिम्पसेज ऑफ हिस्ट्री ऐंड द स्टोरी ऑफ स्ट्रगल' में परवेज मुशर्रफ के उस बयान का समर्थन किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कश्मीर के लोग भारत या पाकिस्तान के साथ जाने की बजाय अकेले और आजाद रहना पसंद करेंगे। संप्रग सरकार में मंत्री रहे सोज ने यह भी दावा किया कि घाटी में मौजूदा हालात के लिए भाजपा नीत केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं।
[अदिति फडणीस]
(साभार- बिजनेस स्टैण्डर्ड)
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