ड्रोन ले जाएगा इंसानी अंग
बेंगलूरु, 18 जून अगली बार जब आप किसी घरेलू उड़ान में सफर करें और आपको किसी बेचैन व्यक्ति की अगली सीट पर एक पिकनिक कूलर बंधा हुआ नजर आए तो इससे चौंकने की जरूरत नहीं है। पिकनिक कूलर लगभग उसी प्रकार का बक्सा है जिसमें बियर ठंडी की जाती है। इस बक्से में अनमोल सामान है जो किसी की जान बचाने के लिए जा रहा है। देश में एक शहर से दूसरे शहर मानव अंग खासकर दिल को ले जाने की खबरें अक्सर मीडिया में सुर्खियां बनती हैं। हालांकि यह प्रक्रिया बेहद जटिल और बोझिल है। दिल को 25 किलोग्राम के एक बक्से में बर्फ के साथ पैक किया जाता है और दान करने वाले के शरीर से निकाले जाने के बाद इसका चार घंटे के भीतर ग्रहण करने वाले के पास पहुंचना जरूरी है। अगर विमान छोटा है और बक्सा सामान रखने के लिए ऊपर बनी जगह में नहीं आ रहा है तो फिर टिकट लेकर इसे सीट पर रखा जाता है। यही वजह है कि अंग प्रत्यारोपण से जुड़े सभी पक्ष डॉक्टर, अस्पताल, मरीज और उनके परिवार चाहते हैं कि अंगों को एक जगह से दूसरे जगह ले जाने की प्रक्रिया बेहतर होनी चाहिए। इसे आसान बनाने की जरूरत है।
भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलूरु में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर बी गुरुमूर्ति की अगुआई में शोधकर्ताओं की एक टीम इसी कोशिश में जुटी है। टीम एक ऐसा उपकरण बना रही है जिससे अंगों को ले जाने वाले बक्से के आकार और वजन में उल्लेखनीय कमी आएगी। अनाधिकारिक तौर पर इसे 'लाइफ बॉक्स' नाम दिया गया है। इससे मानव अंग लेने जाने के लिए उपलब्ध समय भी दोगुना हो जाएगा क्योंकि नया उपकरण दिल को आठ घंटे तक सही स्थिति में रखेगा। इतना ही नहीं, गुरुमूर्ति के मार्गदर्शन में दुनिया में पहली बार एक ऐसा बक्सा विकसित किया जा रहा है जिससे ड्रोन के जरिये मानव अंगों को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाया सकता है। गुरुमूर्ति ने कहा, 'अगर ड्रोन के जरिये मानव अंग ले जाना संभव हुआ तो फिर इसमें लगने वाले समय में उल्लेखनीय कमी आ सकती है।'
गुरुमूर्ति आईआईएससी में सोसाइटी फॉर इनोवेशन ऐंड डेवलपमेंट के भी प्रमुख हैं और संस्थान में प्रोडक्ट डिजाइन एवं प्रोटोटाइपिंग पढ़ाते हैं। वह अपने सहयोगी प्रोफेसर अशिताभ घोषाल और दो छात्रों देवल करिया तथा रोहित नांबियार के साथ एक प्रोटोटाइप पर काम कर रहे हैं। देश में हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) परियोजना के पहले निदेशक कोटा हरिनारायण अपनी स्टार्टअप कंपनी में ड्रोन विकसित करने में जुटे हैं। उनकी कंपनी को आईआईएससी प्रोत्साहित कर रहा है। लाइफ बॉक्स के प्रोटोटाइप को आकार लेने में मात्र 15 सप्ताह का समय लगा। इस प्रणाली में सबसे बड़ा इनोवेशन चार से आठ डिग्री सेल्सियस का तापमान बरकरार रखने की है जो दिल को शरीर के बाहर आठ घंटे तक जिंदा रखने के लिए अहम है। टीम ने पहले ही इसके पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया है।
अंगों को सुरक्षित रखने की मौजूदा व्यवस्था में थर्मोइलेक्ट्रिक कूलिंग का इस्तेमाल होता है जिसमें बहुत सारी ऊर्जा की जरूरत होती है। यही वजह है कि बक्से का वजन बढ़ जाता है। आईआईएससी के शोधकर्ता रेफ्रिजरेंट के लिए शुष्क बर्फ का इस्तेमाल कर रहे हैं और उन्होंने दिल को स्वस्थ तथा प्रत्यारोपण के लिए फिट रखने के लिए अधिकतम तापमान चार से छह डिग्री सेल्सियस रखने के वास्ते एक अनूठी नियंत्रण प्रणाली विकसित की है। लाइफ बॉक्स दिल में गैर ऑक्सीजनयुक्त कार्डियोप्लेजिक सॉल्यूशन पंप करके इसका जीवन और बढ़ा देता है। यह सिस्टम ओपन लूप है, यानी एक बार दिल में पंप किए जाने के बाद यह सॉल्यूशन दोबारा परिसंचरण के बजाय एक अपशिष्टï जलाशय में जमा होता है। बक्सा दिल का पीएच डेटा भेजता है जिससे दूर बैठा हृदय रोग विशेषज्ञ यह तय कर सकता है कि कितनी देर बार दिल में सॉल्यूशन डाला जा सकता है।
लाइफ बॉक्स और दिल को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए जरूरी दूसरी चीजों की लागत अमेरिका और यूरोप में अभी इस्तेमाल हो रहे इस तरह के उपकरण से बहुत कम है। पश्चिमी देशों में मानव अंग को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में 5 लाख डॉलर तक खर्चा आ सकता है। इससे जुड़ी दूसरी चीजों का खर्च भी 35,000 डॉलर तक हो सकता है। अगर भारतीय अस्पताल इन उपकरणों को खरीद भी लें तो बहुत कम मरीज इनका खर्च वहन कर सकते हैं। गुरुमूर्ति ने कहा, 'अब हमारे पास ऐसा डिजाइन है जिससे हम आठ घंटे तक सही तापमान बनाए रख सकते हैं। इस उपकरण का कुल वजन 4.5 किलो से कुछ ज्यादा है। चूंकि ड्रोन 4.5 किलो से कम वजन उठा सकता है, इसलिए हमें इस पर और काम करने की जरूरत है।'
इंजीनियरों और शोधकर्ताओं के अलावा गुरुमूर्ति की टीम हृदय रोग विशेषज्ञों और अंतरिक्ष वैमानिकी से जुड़े इंजीनियरों के साथ काम कर रही है। टीम ने इस साल की शुरुआत में एक संगोष्ठïी आयोजित की थी जिसमें 100 से अधिक अंग प्रत्यारोपण विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। इसमें अमेरिका, कनाडा और यूरोप के विशेषज्ञ भी शामिल थे। संगोष्ठïी में गुरुमूर्ति ने देश के जाने माने हृदय रोग विशेषज्ञ और चेन्नई स्थित फोर्टिस मलार हॉस्पिटल में हृदय विज्ञान विभाग के निदेशक के आर बालकृष्णन से मुलाकात की। बालकृष्णन का मानना है कि ड्रोन के जरिये अंगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वाले उपकरण बहुत अहम होगा क्योंकि देश में अभी हर साल करीब 200 हृदय प्रत्यारोपण होते हैं जो संख्या अगले 5 साल में बढ़कर करीब 2,000 पहुंच सकती है। बालकृष्णन ने कहा, 'दिल का वजन केवल 250 ग्राम होता है। तो फिर इसे ठंडा रखने वाले बक्से का वजन 25 किलो क्यों होना चाहिए। क्या हम इसे हल्का बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर सकते हैं और साथ ही यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि यह काम करता रहे। हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि दिल हमेशा धड़कता रहे जैसे हमने शुक्राणु के मामले में किया है।' गुरुमूर्ति और उनकी टीम पशुओं के दिल के साथ इस उपकरण का परीक्षण करेगी और उसके बाद नष्टï हो चुके मानव दिल पर परीक्षण होगा। टीम यह साबित करना चाहती है कि उनका उपकरण दिल को और खराब होने से बचा सकता है। इसके बाद सक्रिय मानव दिल पर इसका परीक्षण किया जाएगा। लेकिन इस परियोजना के लिए कोष की समस्या बनी हुई है।
गुरुमूर्ति कहते हैं कि उनकी टीम को कुछ शुरुआती प्रोटोटाइप विकसित करने के लिए करीब एक करोड़ रुपये की जरूरत है। इनका इस्तेमाल क्लीनिकल ट्रायल के लिए हो सकता है। उपकरण का परीक्षण भी एक चुनौती है क्योंकि भारत में पशुओं और इंसान पर चिकित्सा उपकरणों के परीक्षण के बारे में कोई नियम नहीं है। यही वजह है कि कंपनियां और स्टार्टअप अक्सर अपने उपकरणों का ऑस्ट्रेलिया या यूरोप में सत्यापन कराती हैं क्योंकि वहां इस बारे में स्पष्टï कानून हैं। गुरुमूर्ति ने कहा कि अगर सबकुछ सही रहा तो उनका उपकरण अगले दो साल में काम करने लगेगा। एक बार यह सफल हो गया तो फिर कीमत से लिहाज से इसे व्यावहारिक बनाना कोई बड़ी बात नहीं होगी।
अलनूर पीरमोहम्मद और विभु रंजन मिश्रा
(साभार- बिजनेस स्टैण्डर्ड)
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