कल मंगलवार से पूंजीपतियों के लिए स्वर्ण योजना के अंतर्गत बिशेष सुबिधाओं से युक्त पहली शताब्दी ट्रेन नयी दिल्ली से काठगोदाम तक शुरू
कल मंगलवार से पूंजीपतियों के लिए स्वर्ण योजना के अंतर्गत बिशेष सुबिधाओं से युक्त पहली शताब्दी ट्रेन नयी दिल्ली से काठगोदाम तक शुरू
रेलवे कल मंगलवार से पूंजीपतियों के लिए स्वर्ण योजना के अंतर्गत बिशेष सुबिधाओं से युक्त पहली शताब्दी ट्रेन नयी दिल्ली से काठगोदाम तक चलने जा रहा है, जिसमें विमान की तर्ज पर शौचालय के दरवाजे होंगे, दरवाजे में विमान की तर्ज पर लॉक लगाए गए हैं तथा ट्रेन के अंदर शौचालय के अंदर भी विनायल रैपिंग की गई है। सफेद रंग पर बैगनी रंग से बनी आकृतियों वाली ये रैपिंग ऐसा अनुभव देती है, जैसे टाइल्स लगी होंगी। काठगोदाम शताब्दी ट्रेन में जहां यात्री बैठते हैं, वहां जमीन पर मैराथन सील लगाई गई है। इससे फर्श हर वक्त चमकती रहेगी। यदि फर्श पर चाय या कोई खाने -पीने की चीज गिर भी जाती है तो उसका दाग नहीं पड़ेगा। ट्रेन के बाहर भी ग्रा¨फ्टग की गई है। इसके चलते बाहर के हिस्से पर भी कोई दाग नहीं लगेगा।
एक बार यात्री अंदर दाखिल हो जाए तो दरवाजा अपने आप बंद हो जाता है। ट्रेन में सीट के ऊपर लगे लगेज रैक पर ब्रेल लिपी में सीट नंबर लिखे गए हैं। वहीं, शौचालय व अन्य जगहों पर ब्रेल में सूचनाएं लिखी हुईं हैं। ऐसे में नेत्रहीन लोगों को काफी सुविधा होगी।
ट्रेन में मैजिक बॉक्स नाम से एक सेवा दी गई है। इसके तहत यात्री ट्रेन में इंटरनेट के माध्मय से फ्री में एचडी कंटेंट डाउनलोड कर सकेंगे। इस सेवा को फिलहाल ट्रायल पर लगाया गया है।
रेलवे की ओर से शुरू की गई स्वर्ण योजना के तहत राजधानी व शताब्दी ट्रेनों की सूरत बदलनी शुरू हो गई है। नई दिल्ली से काठगोदाम के बीच चलने वाली कल मंगलवार से शताब्दी ट्रैन स्वर्ण योजना के तहत बेहतर सुविधाओं के साथ चलने वाली पहली ट्रेन होगी। यात्री मंगलवार से बेहतर सुविधाओं के साथ काठगोदाम शताब्दी में यात्र करेंगे।
ऐसा लगता है कि, रेलवे की पुरानी परिभाषा और उद्देश्य बदल चुकी है जिसका एक मात्र उद्देश्य-
कम से कम कीमत पर देश के करोङो - अरबों जन-मानस/ रेल यात्रिओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना और रेलवे को रोज़गार देने का सबसे बड़ा साधन बनाना था।
आज अफ्शोष होता है कि देश का एक तरफ करोङो -अरबों रुपये खर्च कर विकाश तो होता है, परन्तु रोज़गार समाप्त करने के भी रोज़ संसाधन कि तलाश होती है, जैसे लखनऊ मेट्रो में स्टेशन पर टिकट बैंक कर्मी देंगे जिससे मेट्रो को टिकट बुकिंग के लिए कर्मचारिओं की भर्ती नहीं करनी पड़ेगी।
ऐसा विकाश जिससे रोज़गार समाप्त हो,वह विकाश नहीं-
बल्कि बिनाश है।
सवाददाता, स्वतंत्र भारत न्यूज़