बारूद के ढ़ेर पर खड़ा विश्व, धर्म-धम्म की आवश्यकता!
पटियाला (पंजाब): पंजाब के स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार- सुनील कुमार महला ने "बारूद के ढ़ेर पर खड़ा विश्व, धर्म-धम्म की आवश्यकता!" शीर्षक से प्रस्तुत विशेष लेख में बताया है कि, हाल ही में भारत के मध्यप्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल में 3 मार्च को कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में तीन दिवसीय सातवें अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का शुभारंभ हुआ तथा जिसका समापन पांच मार्च को हो गया।
यह सम्मेलन ‘नए युग में मानववाद का सिद्धांत” विषय पर सांची यूनिवर्सिटी ऑफ बुद्धिस्ट-इंडिक स्टडीज के सहयोग से इंडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें 15 देशों से 350 से भी अधिक विद्वान शामिल हुए। निश्चित ही इस प्रकार के सम्मेलन से धर्म धम्म के वैश्विक विचारों को एक साझा मंच मिला। इस सम्मेलन में भूटान, मंगोलिया, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाइलैंड, वियतनाम, नेपाल, दक्षिण कोरिया, मॉरिशस, रूस, स्पेन, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों से विभिन्न प्रतिनिधियों, विद्वान लोगों ने अपनी सहभागिता की।
इस सम्मेलन में विषयों का निरूपण हुआ, मानववाद सिद्धांत पर लगातार तीन दिनों तक विभिन्न लोगों द्वारा शोध-पत्र पढ़े गए। यह सम्मेलन धर्म-धम्म पर आधारित था और धर्म तथा धम्म दो अलग विषय-वस्तु हैं। साधारण शब्दों में 'धर्म' का अर्थ यदि हम समझें तो धर्म का मतलब धारण करने से है। मतलब 'धारयेत इति: धर्म:' यानी कि जो धारण करने योग्य हो वही धर्म है। वास्तव में, धर्म शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृति भाषा के 'धृ' शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ है 'धारण करना' अर्थात् सभी जीवों के प्रति मन में दया धारण करने को ही धर्म कहा गया है। हिंदू धर्म-ग्रंथों में सात्विक गुणों को धारण करने को ही धर्म माना गया है। वास्तव में धर्म ही मानव को मानव बनाता है। धर्म मतलब धारणा,जिसे सबको धारण करना चाहिए। धर्म का संबंध कर्तव्य, अहिंसा, सदाचरण व अच्छे गुणों या सद्गुणों से लिया जा सकता है। वैसे, हिन्दू समाज में 'धारणात धर्ममाहुः' अर्थात् धारण करने के कारण ही किसी वस्तु को धर्म कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो धर्म से हमारा आशय 'अलौकिक शक्ति' पर विश्वास है। अलौकिक हम उसे कहते हैं जो लौकिक जगत से परे है। इंद्रियगम्य नहीं है। जो अगम और अगोचर है। कहा भी गया है कि- 'बिनु पग चलै, सुनै बिनु काना।