विश्वविद्यालयों में खेल कूद संबंधी अवसंरचनात्मक सुविधा का पूर्ण अभाव: पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी - 'राकेश साहू'
प्रयागराज: 'बंगाल' के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी - 'राकेश साहू', जो वर्तमान में असिस्टेंट प्रोफेसर (प्रयागराज) हैं, ने कहा है कि, शीतलहर के साथ ही ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स टूर्नामेंट का दौर शुरू हो गया है। सारे कोच और टीम के मैनेजर अपनी अपनी टीमों के साथ टूर्नामेंट के गंतव्य स्थल पर पहुंच रहें हैं।
राकेश साहू ने कहा कि, 'विश्वविद्यालय', जो कि खेल-कूद के मुख्य स्तंभ कहे जा सकते हैं; जहां से प्रतिभा अपनी पहचान बना सकती है। खेल-कूद की इस महफिल में जब भी नज़र डालता रहा हूं, तो नॉर्थ जोन की टीमों की स्थिति अन्य जोनों से बेहतर और प्रतिस्पर्धी दिखाई देती है।
उन्होंने कहा कि, नॉर्थ-जोन की टीमों में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली की टीम काफ़ी बेहतर प्रदर्शन करती मिलती हैं, जबकि उसके मुकाबले कानपुर,जम्मू, इलाहाबाद गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ तथा अन्य सटे हुए इलाक़े उनका मुक़ाबला करने में सफल नहीं हो पाती हैं। मेरा कहने का मंतव्य है कि इन बड़े जगहों पर बड़ी खेल प्रतियोगी अयोजित की जाती रही हैं जहां पर खिलाड़ी को उनका राज्य भी विशेष महत्व देता है जबकि अन्य कम प्रतिस्पर्धी खेल कूद राज्य राजनीतिक गतिविधियों में ही व्यस्त रहती है।
राकेश साहू ने कहा कि, ऊपरी तौर पर खेल-कूद सम्मान, पुरुस्कार की घोषणा दिखाई देती हैं, किंतु खेल कूद संबंधी अवसंरचनात्मक सुविधा का पूर्ण अभाव मिलता है। ऐसे में खिलाड़ी को न तो अधिक वैज्ञानिक उपकरण मिल पाते हैं, ना ही वह उनसे परिचित हो पाता है।
उन्होंने कहा कि, दीन-हीन अवस्था में किसी तरह वह निरंतर अभ्यास करता रहता है और कुछ नई जैव प्रौद्योगिकी से अनजान रहता है। सरकारों को चहिए कि प्रत्येक वर्ष कम से कम दो विश्वविद्यालय में खेल कूद से जुड़े अवसंरचनात्मक सुविधा को तेज़ी से विकसित करें और जैव प्रौद्योगिकी से जुड़ी तकनीकी शिक्षा को वहां पर विशेषज्ञ के रूप में उपलब्ध कराती रहे। अपनी इस खेल कूद की तीर्थ यात्रा में बहुत सी चीजें भी नजदीक से अवलोकन किया कि, जहां पर खेल विशेषज्ञ और पूरी सुविधा उपलब्ध है फिर भी शीर्ष पदों पर आसीन पदधारी खेलकूद से इतर अन्य विषयों के लोगो को बैठाया जा रहा है। उन्हे मैनेजमेंट विशेषज्ञ के नाम पर कार्य भार दिया गया है। बड़े नामी-गिरामी विश्वविद्यालयों में 2010 में हुए कॉमनवेल्थ के फंडों का दुरुपयोग ही दिखाई दिया है। करोड़ों के तकनीकी उपकरण सड़ गए है। उस पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है। राष्ट्रीय संपत्तियों की जवाबदेही नहीं रह गई है।
बंगाल के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी - 'राकेश साहू', जो वर्तमान में असिस्टेंट प्रोफेसर (प्रयागराज) हैं, का कहना है कि, अब सरकार को चाहिए कि, 'खेलो इंडिया' के तहत शुरू किया गया खेलकूद विकास कार्यक्रम में कम से कम राष्ट्र के अंदर दो विश्वविद्यालय 1 वर्ष में तकनीकी साज-सज्जा के साथ विकसित किया जाए। नियुक्ति खेलकूद से संबंधित व्यक्ति की ही की जाए जिसने सही मायने में खेलकूद को जाना समझा है। वह ईमानदार और कर्तव्य परायण होना चाहिए। सारे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के रख रखाव के लिए अलग विभाग होना चाहिए। समय समय पर उसके निरीक्षण के लिए देश की आईआईटीयंस की टीम को नियुक्त किया जाना चाहिए। विश्वविद्यालय की स्पोर्ट्स कंपलेक्स की पूरी रखरखाव और तकनीकी विकास का ऑडिट की रिपोर्ट राष्ट्र की खेल मंत्रालय में प्रत्येक वर्ष भेजना चाहिए।
बंगाल के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी - राकेश साहू जो वर्तमान में असिस्टेंट प्रोफेसर (प्रयागराज) हैं का यह भी कहना है कि, इस प्रकार विश्वविद्यालय विकास की यात्रा में छोटे जिलों में स्थापित विश्वविद्यालय लाभ उठा सकेंगे। खिलाड़ियों को थकने वाली यात्रा से निजात मिल सकेगा और अपने क्षेत्र में ही रहकर वह सारी तकनीकी सुविधाओं का लाभ ले सकेंगे। सरकारों की इच्छा शक्ति अगर दिखाई दे तो खेलो के विकास की सही दिशा यही होगी। वर्तमान में खेल शक्ति ही राष्ट्र शक्ति होगी और विश्व में वही राष्ट्र अपनी लोहा को मनवा सकेगा जिसने अपनी खेल कूद की गतिविधियों का विकास उच्च स्तर पर कर लिया है।अब प्रत्यक्ष युद्ध का समय नहीं रहा बल्कि खेल के द्वारा राष्ट्र अपनी श्रेष्ठता का दावा करता है।
[लेखक- 'राकेश साहू' बंगाल के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी और वर्तमान में असिस्टेंट प्रोफेसर (प्रयागराज) हैं।]