राजा राम मोहन राय के जन्मदिन पर शत-शत नमन किया
लखनऊ (उत्तर प्रदेश): समतामूलक समाज निर्माण मोर्चा के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा रेल सेवक संघ के संस्थापक व महामंत्री- सचिदानन्द श्रीवास्तव ने आधुनिक भारत का निर्माण करने वाले राजा राम मोहन राय के जन्मदिन पर शत-शत नमन किया तथा समतामूलक समाज निर्माण मोर्चा के मुख्यालय, लखनऊ में एक गोष्ठी आयोजित की।
समतामूलक समाज निर्माण मोर्चा के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा रेल सेवक संघ के संस्थापक व महामंत्री- सचिदानन्द श्रीवास्तव ने गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए बताया कि, आधुनिक भारत के निर्माता कहे जाने वाले तथा कुरीतियों को दूर करने वाले राजा राम मोहन रॉय का जन्म सन 1772 में आज ही के दिन पश्चिम बंगाल में हुगली जिले के राधा नगर गांव में हुआ था।
सचिदानंद श्रीवास्तव ने बताया कि, उन्होंने जितना पढ़ा है और जाना है, उस आधार पर हम कह सकते हैं कि, राजा राम मोहन राय दिमाग के इतने तेज थे कि महज 15 साल की उम्र में उन्होंने बांग्ला, अरबी, संस्कृत और पारसी भाषा सीख ली थी। राय की प्रांरभिक शिक्षा उनके गांव में ही हुई थी तथा बाद में उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए बिहार की राजधानी पटना भेज दिया गया था।
राजा राम मोहन राय के पिता रमाकांत राय वैष्णव एक रूढीवादी हिंदू ब्राह्मण थे परन्तु इसके उपरांत भी राजा राम मोहन राय कई हिंदू परंपराओं और रीति रिवाजों के खिलाफ थे। वे अंधविश्वास के भी खिलाफ थे। इन बातों को लेकर उनमें और उनके पिता में अक्सर मतभेद होते थे और इसी वजह से वे घर छोड़कर चले गए थे। जब कुछ समय बाद वे घर आए तो परिवार वालों ने उनकी शादी यह सोचकर कर दी कि शायद इनमें कोई बदलाव आए लेकिन मोहन राय में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला। बाद में मोहन राय उत्तर प्रदेश के वाराणसी चले गए जहां उन्होंने वेदों और उपनिषदों को पढ़ा और जब 1803 में उनके पिता का देहांत हुआ तो वे वापस बंगाल लौट गए थे।
समतामूलक समाज निर्माण मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष- सचिदानंद श्रीवास्तव ने आगे बताया कि, राजा राममोहन राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व विभाग में भी नौकरी की थी जिसे उन्होंने छोड़ दिया था और समाज में फैली कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों का पुरजोर बिरोध करते रहे। यहां तक कि, उन्होंने गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक के जरिए सती प्रथा के खिलाफ तो कानून भी बनवा दिया था। उनका मानना था जब वेदों में सती प्रथा का जिक्र नहीं है तो ये समाज भी नहीं होने चाहिए।
अंत में सचिदानन्द श्रीवास्तव ने कहा कि, आज हम सबको राजा राम मोहन रॉय के जन्मदिन पर उनसे प्रेरणा लेते हुए भारत को आर्थिक रूप से 'फ्री ट्रेडिंग एग्रीमेंट' के माध्यम से अंग्रेजों का फिर से गुलाम बनाने की साजिश का और आर्थिक आतंकवाद व आर्थिक आतंकवादियों का पुरजोर विरोध करना चाहिए।