केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा- आईएएस/सिविल सेवाओं के लिए पाठ्यक्रम भारत के बदलते परिदृश्य के अनुरूप होना चाहिए और इसलिए समय-समय पर इसमें निरंतर संशोधन की आवश्यकता है
मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए) में आयोजित संयुक्त नागरिक-सैन्य कार्यक्रम (जेसीएम) के समापन सत्र को संबोधित किया
प्रमुख सुधारों की दिशा में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा उठाये गए एक कदम के बारे में जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा, "मिशन कर्मयोगी" की स्थापना की जा रही थी, जिसे परिभाषित करने पर 'नियम से भूमिका' के कामकाज पर जोर दिया जाएगा।
एक सप्ताह के संयुक्त नागरिक-सैन्य कार्यक्रम के सफलतापूर्वक संचालन के लिए अकादमी के पाठ्यक्रम समन्वयक एवं कर्मचारियों को बधाई देते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कार्यक्रम में भाग लेने वाले अधिकारियों की भी सराहना की, इसका उद्देश्य सिविल सेवा अधिकारियों और सशस्त्र बलों के अधिकारियों के बीच संरचनात्मक इंटरफेस प्रदान करना है। जिसका मकसद संयुक्त कर्तव्यों के दौरान एक बेहतर और साझा समझ, समन्वय तथा सहयोग व देश की राष्ट्रीय सुरक्षा सेवा करना है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह कार्यक्रम 2001 में कारगिल युद्ध के बाद शुरू किया गया था और प्रतिभागियों को बाहरी एवं आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों से परिचित कराने में एक लंबा सफर तय किया है तथा भाग लेने वाले अधिकारियों को अनिवार्य नागरिक-सैन्य सेना के सामने लाने में व्यापक भूमिका निभाता है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत अपनी आजादी के 75 साल में प्रवेश कर रहा है, और अगले 25 वर्षों की योजना बना रहा है, तो ऐसे कार्यक्रम हमें नागरिक तथा सैन्य अधिकारियों को आंतरिक एवं बाहरी रूप से विभिन्न संघर्ष स्थितियों में संयुक्त रूप से काम करने के लिए तैयार करने में सक्षम बनाते हैं।
इससे पहले एलबीएसएनएए के निदेशक के श्रीनिवास ने नागरिक-सैन्य कार्यक्रम और उसके उद्देश्यों के बारे में एक रूपरेखा दी।
<><><><><>