प्रधानमंत्री ने 'प्रबुद्ध भारत' के 125वें वर्षगांठ समारोह को संबोधित किया
- स्वामी विवेकानंद ने पत्रिका की शुरुआत की थी
- गरीबों को सशक्त बनाने में भारत, स्वामी विवेकानंद का अनुसरण कर रहा है: प्रधानमंत्री
- महामारी के दौरान और जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में भारत का दृष्टिकोण स्वामी विवेकानंद के दृष्टिकोण के अनुरूप है: प्रधानमंत्री
- युवाओं को स्वामी विवेकानंद की शिक्षा - निडर होने और आत्म-विश्वास से परिपूर्ण होने - का अनुसरण करना चाहिए: प्रधानमंत्री
नई दिल्ली (PIB): प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज स्वामी विवेकानंद द्वारा शुरू की गई रामकृष्ण परंपरा की मासिक पत्रिका, ‘प्रबुद्ध भारत’ के 125वें वर्षगांठ समारोह को संबोधित किया।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने हमारे राष्ट्र की भावना को प्रकट करने के लिए पत्रिका का नाम ‘प्रबुद्ध भारत’ रखा। स्वामी जी एक राजनीतिक या क्षेत्रीय इकाई से अलग एक 'जागृत भारत' का निर्माण करना चाहते थे। प्रधानमंत्री ने कहा, "स्वामी विवेकानंद ने भारत को एक सांस्कृतिक चेतना के रूप में देखा जो सदियों से जीवित है और सांस ले रहा है।”
मैसूर के महाराजा और स्वामी रामकृष्णनंद को लिखे गए स्वामी विवेकानंद के पत्रों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने गरीबों को सशक्त बनाने के स्वामी जी के दृष्टिकोण के दो स्पष्ट विचारों को रेखांकित किया। सबसे पहले, वह सशक्तिकरण को गरीबों तक ले जाना चाहते थे, यदि गरीब खुद आसानी से सशक्त नहीं हो सकते। दूसरा, उन्होंने भारत के गरीबों के बारे में कहा, "उन्हें विचार दिए जाने चाहिए; उनकी आंखें खोलनी हैं कि उन्हें पता चले कि उनके आसपास की दुनिया में क्या चल रहा है, और फिर वे अपना स्वयं उद्धार करेंगे।" प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी दृष्टिकोण के साथ भारत आज आगे बढ़ रहा है।प्रधानमंत्री ने जोर देते हुए कहा, "यदि गरीब बैंकों तक नहीं पहुंच सकते हैं,तो बैंकों को गरीबों तक पहुंचना चाहिए। यही काम जन धन योजना ने किया। यदि गरीब बीमा का उपयोग नहीं कर सकते हैं,तो बीमा को गरीबों तक पहुंचना चाहिए। यही काम जन सुरक्षा योजनाओं ने किया है। यदि गरीब स्वास्थ्य-देखभाल तक नहीं पहुंच सकते हैं, तो हमें स्वास्थ्य-देखभाल को गरीबों तक पहुंचाना चाहिए। आयुष्मान भारत योजना ने यही काम किया है। सड़क, शिक्षा, बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी विशेष रूप से गरीबों के लिए देश के हर कोने में ले जायी जा रही हैं। यह गरीबों के बीच आकांक्षाओं को प्रज्वलित कर रहा है। इन आकांक्षाओं से देश के विकास को गति मिल रही है।”
श्री मोदी ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत का सक्रिय रुख स्वामीजी के संकट में खुद को असहाय महसूस नहीं करने के दृष्टिकोण का उदाहरण है। इसी तरह, जलवायु परिवर्तन की समस्या के बारे में शिकायत करने की बजाय, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के रूप में एक समाधान पेश किया। श्री मोदी ने कहा,“यह स्वामी विवेकानंद की दृष्टि का प्रबुद्ध भारत है। यह एक ऐसा भारत है, जो दुनिया की समस्याओं के लिए समाधान पेश कर रहा है।”
प्रधानमंत्री ने खुशी व्यक्त की कि स्वामी विवेकानंद के भारत के लिए बड़े सपने और युवाओं में उनका विश्वास,देश के उद्यमियों, खिलाड़ियों, टेक्नोक्रेट, पेशेवरों, वैज्ञानिकों, नवाचार करने वालों और कई अन्य लोगों में दिखाई देता है। प्रधानमंत्री ने युवाओं को ‘व्यावहारिक वेदांत’ पर स्वामीजी की व्याख्यानों में दी गयी सलाह का पालन करते हुए आगे बढ़ने के लिए कहा, जहां वे असफलताओं पर काबू पाने और उन्हें सीखने की प्रक्रिया के एक भाग के रूप में देखने की बात करते हैं। दूसरी बात जो लोगों में होनी चाहिए, वह है: निडर होना और आत्म-विश्वास से परिपूर्ण होना। श्री मोदी ने युवाओं को स्वामी विवेकानंद का अनुसरण करने के लिए भी कहा जिन्होंने दुनिया के लिए मूल्यवान रचना करके अमरता हासिल की। प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिक और आर्थिक प्रगति को अलग-अलग नहीं देखा। सबसे महत्वपूर्ण बात, वह उस दृष्टिकोण के खिलाफ थे,जहां लोग गरीबी का महिमामंडन करते हैं। स्वामी जी को आध्यात्मिक रूप से महान, उच्च कोटि की आत्मा करार देते हुए,प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि उन्होंने गरीबों की आर्थिक प्रगति के विचार का कभी त्याग नहीं किया।
श्री मोदी ने निष्कर्ष के तौर पर कहा कि स्वामी जी के विचारों का प्रसार करते हुए प्रबुद्ध भारत ने 125 वर्षों तक काम किया है। उनके दृष्टिकोण के अनुरूप युवाओं को शिक्षित करने और राष्ट्र को जागृत करने का काम हुआ है। स्वामी विवेकानंद के विचारों को अमर बनाने की दिशा में इसने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
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