उत्तराखंड में हिमालयी क्षेत्र में मसूरी और उसके आसपास के इलाकों में भूस्खलन की संवेदनशीलता का मानचित्रण
उत्तराखंड में हिमालयी क्षेत्र में मसूरी और उसके आसपास के इलाकों के 15 प्रतिशत हिस्से में भूस्खलन का सर्वाधिक खतरा
नई दिल्ली (PIB): अधिकतर पहाड़ी इलाकों की तरह ही उत्तराखंड के लोकप्रिय पर्वतीय पर्यटन स्थल मसूरी में भी भूस्खलन की कई घटनाएं हो चुकी हैं जो संभवत: विकास से जुड़ी गतिविधियों का परिणाम रही हैं। क्षेत्र में ऐसी प्राकृतिक आपदा के बढ़ते खतरों ने वैज्ञानिकों को मसूरी और उसके आसपास के क्षेत्रों की भूस्खलन के प्रति संवेदनशीलता का मानचित्रण करने के लिए प्रेरित किया। अध्ययन से पता चला है कि इस क्षेत्र का 15 प्रतिशत हिस्सा भूस्खलन को लेकर अतिसंवेदनशील है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्लयूआईएचजी) के वैज्ञानिकों ने निचले हिमालयी क्षेत्र में मसूरी और उसके आसपास के 84 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का अध्ययन किया और पाया कि भूस्खलन वाले अतिसंवेदनशील क्षेत्र का बड़ा हिस्सा भाटाघाट, जॉर्ज एवरेस्ट, केम्प्टी फॉल, खट्टापानी, लाइब्रेरी रोड, गलोगीधार और हाथीपांव जैसे बसावट वाले क्षेत्रों के अंतर्गत आता है जो 60 डिग्री से अधिक ढलान वाले अत्यधिक खंडित क्रोल चूना पत्थर से आच्छादित हैं।
भूस्खलन संवदेनशीलता मानचित्रण पर जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित अध्ययन में दिखाया गया है कि क्षेत्र का 29 प्रतिशत हिस्सा हल्के भूस्खलन और 56 प्रतिशत हिस्सा बहुत बड़े स्तर पर भूस्खलन वाले अति संवेदनशील क्षेत्र में आता है।
डब्ल्यूआईएसजी के शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) और उपग्रह से प्राप्त हाई-रिज़ॉल्यूशन चित्रों का उपयोग करते हुए द्विभाजक सांख्यिकीय यूल गुणांक (वाई सी) विधि का उपयोग किया।
वैज्ञानिकों के अनुसार अध्ययन करते समय क्षेत्र में भूस्खलन के विभिन्न संभावित कारकों में लिथोलॉजी, लैंड्यूज-लैंडकवर (एलयूएलसी), ढलान, पहलू, वक्रता, ऊंचाई, सड़क-कटान जल निकासी और लाइनामेंट आदि को शामिल किया गया। अध्ययन टीम ने भूस्खलन के कारणों के एक विशेष वर्ग का पता लगाने के लिए लैंडस्लाइड ऑक्युवेशन फेवरोबिलिटी स्कोर (एलओएफएस) के आंकड़े एकत्र किए और बाद में जीआईएस प्लेटफॉर्म में लैंडस्लाइड सुसाइड इंडेक्स (एलएसआई) बनाने के लिए भूस्खलन के प्रत्येक कारक के प्रभावों की अलग अलग गणना की । एलएसआई को प्राकृतिक मानकों के आधार पर पांच क्षेत्रों में पुनर्वर्गीकृत किया गया है।
इस मानचित्र की सटीकता को सक्सेस रेट कर्व (एसआरसी) और प्रिडिक्शन रेट कर्व (पीआरसी) का उपयोग करके सत्यापित किया गया जो एसआरसी के लिए एरिया अंडर कर्व (एयूसी) को 0.75 के रूप में और पीआरसी को 0.70 के रूप में दिखाता है। यह भूस्खलन वाले विभिन्नत तरह के अतिसंवेदनशील क्षेत्रों और भूस्खलन की घटना वाले क्षेत्रों के बीच परस्पर संबंधों को दर्शाता है।
अध्ययन से भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर होने वाले भूस्खलन, इसके जोखिम, और इस बारे में पर्वतीय कस्बों की संवेदनशीलता का मूल्यांकन करने में काफी मदद मिल सकती है।
(जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के लिए लिंक: https://doi.org/10.1007/s12040-020-01428-7)
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