
मजहब नहीं संस्कृति होती है राष्ट्र का आधार : योगी
मजहब नहीं संस्कृति होती है राष्ट्र का आधार : योगीउन्होंने कहा कि हमारा देश 1947 मे नहीं बना, इससे बहुत पहले से यह राष्ट्र की अवधारणा के साथ मौजूद था। क्योंकि इसकी आत्मा सनातन धर्म में बसती थी।गोरखपुर (जेएनएन)। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि पंथ या मजहब किसी राष्ट्र का आधार नहीं हो सकता। इस तरह की धारणा ही मिथ्या है। राष्ट्र का आधार केवल और केवल संस्कृति होती है। यदि मजहब राष्ट्र का आधार होता तो 1947 में भारत विभाजन के फलस्वरूप बना पाकिस्तान 1971 आते-आते विभाजित नहीं हो जाता। आइएसआइएस के नाम पर दुनिया में जो मारकाट मची है, वह उपद्रव देखकर भी यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मजहब तो राष्ट्र का आधार हरगिज नहीं है। मुख्यमंत्री योगी सोमवार को ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ के पुण्यतिथि समारोह के तहत आयोजित साप्ताहिक संगोष्ठी के शुभारंभ अवसर पर अध्यक्षीय संबोधन दे रहे थे।गोरखनाथ मंदिर परिसर के दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में 'भारत की सनातन संस्कृति में राष्ट्र व राष्ट्रवाद विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी में मुख्यमंत्री ने संस्कृति और राष्ट्र के संबंध को उद्घाटित करते हुए कहा कि भारत राष्ट्र का आधार संस्कृति है। यही वजह है कि इसकी एकता हजारों वर्षों से बरकरार है। उन्होंने कहा कि हमारा देश 1947 मे नहीं बना, इससे बहुत पहले से यह राष्ट्र की अवधारणा के साथ मौजूद था। क्योंकि इसकी आत्मा सनातन धर्म में बसती थी।देश की सांस्कृतिक एकता को मुख्यमंत्री ने रामायण और महाभारत से जोड़ा। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम ने वनगमन के दौरान उत्तर को दक्षिण से जोडऩे का कार्य किया तो महाभारत काल में भी ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं। राष्ट्रीय एकता की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि हमारे देश में बहुत से पंथ है और सबकी उपासना विधि अलग-अलग है। लेकिन, जब भी राष्ट्र की बात आई, सबने अपनी उपासना विधि से ऊपर उठकर राष्ट्र को धर्म माना। इसके लिए मुख्यमंत्री ने कारगिल युद्ध का उदाहरण भी दिया।राष्ट्रीय एकता की भावना के निर्माण की चर्चा में मुख्यमंत्री ने आदि शंकराचार्य को याद किया। उन्होंने कहा कि केरल से निकलकर इस सन्यासी ने देश के चारों कोनों पर पीठ की स्थापना की। द्वादश ज्योतिर्लिंगों और 51 शक्तिपीठों की राष्ट्रीय एकता में भूमिका को चर्चा में जोड़कर उन्होंने अपने पक्ष को मजबूती दी। इसी क्रम में उन्होंने गोरक्षपीठ के आध्यात्मिक व्यापकता के बारे में भी बताया और पीठ की राष्ट्रीय एकता में भूमिका को उद्घाटित किया।उन्होंने कहा कि गोरक्ष पीठ शैव पीठ है लेकिन जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात आई तो यहां के संत दिग्विजयनाथ और अवेद्यनाथ न केवल वैष्णव आंदोलन से जुड़े बल्कि उसका नेतृत्व भी किया। यही भारतीय राष्ट्रीय संस्कृति है। अपने संबोधन का समापन मुख्यमंत्री ने इस आह्वान के साथ किया कि भारतीय सांस्कृतिक एकता के खिलाफ रचे जा रहे षडयंत्र को कामयाब न होने देने के लिए समस्त देशवासी आगे आए और अपनी राष्ट्रीय जिम्मेदारी का निर्वहन करें। By Ashish Mishra Let's block ads! (Why?)