13अप्रैल पर विशेष: जलियावाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि: एस. एन. श्रीवास्तव, प्रदेश अध्यक्ष (उ. प्र.), लोसपा
क्या अंग्रेजों का अत्याचार भूल गए हिंदुस्तानी ?-
लखनऊ: आज लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक - रघु ठाकुर ने भोपाल में और उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष ने लखनऊ में जलियावाले बाग़ में हुयी निर्मम ह्त्या के शिकार शहीदों को पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
(फाइल फोटो)
लोसपा प्रदेश अध्यक्ष (उत्तर प्रदेश) - सच्चिदा नन्द श्रीवास्तव ने इस अवसर पर एक वक्तव्य जारी किया जिसमे पूछा गया है कि, क्या आज हम हिन्दुस्तानियों पर अंग्रेजों द्वारा किये अत्याचार को भूल गए हैं?
उत्तर में वे लिखते हैं कि, 'जी नहीं'।
उन्होंने बताया है कि, यह ऐतिहासिक सच्चाई है कि, ब्रिटिश औपनिवेशिक इतिहास के सबसे दमनकारी अत्याचारों की वजह "रॉलेट एक्ट" नाम से प्रसिद्ध क़ानून था और 13 अप्रैल 1919 को नृशंस जलियाँवाला बाग हत्याकांड की वजह यही क़ानून था। खबरों के अनुसार महात्मा गांधी ने "रॉलेट एक्ट" के ख़िलाफ़ ही अपने पहले अहिंसक सत्याग्रह की शुरुआत की थी, तब तक उनका शुमार हिन्दुस्तान के राष्ट्रीय नेताओं की अग्रणी पंक्ति में नहीं हुआ था।
इस क़ानून के तहत साम्राज्य के खिलाफ षड्यंत्र के महज शक के आधार पर नागरिक अधिकारों को छीन लेने का प्रावधान था और इसके मायने ये थे कि किसी राजद्रोही अख़बार की एक प्रति रखने पर भी बिना किसी मुक़दमे के दो साल की सजा हो सकती थी।
इसी क़ानून का विरोध करने के लिए गांधी के आह्वान पर हजारों हिन्दुस्तानी 13 अप्रैल 1919 को चहारदीवारी से घिरे जलियाँवाला बाग में जमा हुए थे। उद्देश्य था, सिडनी रॉलेट के बनाए इस क़ानून के खिलाफ अपने क्षोभ और ग़ुस्से की अभिव्यक्ति।
आज लगभग एक सदी बाद भी अमृतसर की उस बेहद शर्मनाक और क्रूर घटना को याद रखना ज़रूरी है। मैं लगभग चार वर्ष पहले पहली बार अपने मित्र- लखवंत सिंह जी, जो रेलवे में हमारे बैच के ही एक ब्रिज इंजिनियर हैं, के साथ जलियाँवाला बाग गया। वहाँ की कहानी, दृश्य और वहां के चित्रों ने मुझे हिलाकर रख दिया था।
श्री लखवंत सिंह ने बताया कि लोग यहां बताते हैं कि, नरसंहार के दिन सैनिकों ने दो अर्द्धवृत्ताकार घेरे बनाकर बाहर जाने के एकमात्र मार्ग को अवरुद्ध कर दिया और निर्दोष भीड़ को निशाना बनाने लगे।
डायर और उसके सैनिकों ने बिना किसी चेतावनी के गोलियां बरसानी शुरू कर दीं थी।
10 मिनट तक चली गोलियां
श्रीवास्तव ने अपने वक्तव्य में लिखा है कि, उन्होंने पढ़ा भी है कि, कैसे सिपाहियों ने आंदोलनकारियों को सीधा निशाना बनाया था। वे 10 मिनट तक गोलियां बरसाते रहे थे, 1650 राउंड गोलियां चलीं और 379 लोग मार डाले गए थे (गैर-सरकारी भारतीय स्रोतों के मुताबिक मृतकों की संख्या कहीं अधिक थी)।
खबरों कि माने तो, इस नरसंहार में 1137 लोग घायल हुए। लखवंत सिंह जी ने मुझे वह कुआं भी दिखाया था,जहां कई लोग अपनी जान बचाने के लिए कूद गए थे।
खबरों के अनुसार बाद में कुएं से लगभग 120 शव निकाले गए थे।
जनरल डायर ने सैनिकों की गोलियां लगभग ख़त्म होने पर ही अपनी सैन्य टुकड़ियों को गोलीबारी बंद करने और वापस लौटने का हुक्म दिया था।
जनरल डायर ने घायलों की कोई मदद नहीं की और कर्फ़्यू लगा दिया तथा सड़क पर किसी भी भारतीय को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया था। घायल ज़मीन पर पड़े पीड़ा में कराहते रहे।
अमृतसर का नरसंहार भारत के आजादी के इतिहास में एक प्रमुख निर्णायक मोड़ था।
गांधी ने किया क़ानून का इस्तेमाल
प्रदेश अध्यक्ष - श्री श्रीवास्तव ने अपने वक्तव्य में लिखा है कि, खबरों कि मानें तो तुषार गांधी के मुताबिक,"रॉलेट क़ानून की खासियत यह थी कि महात्मा गांधी को लोगों को यह समझाने के लिए कोई मशक्कत नहीं करनी पड़ी कि यह क़ानून कितना अन्यायपूर्ण है'। महात्मा गांधी आसानी से इसका इस्तेमाल कर लोगों में ग़ुस्सा और नाराजगी पैदा करने और फिर इस ग़ुस्से को अहिंसक आंदोलन में तब्दील करने में सफल रहे।"
अंत में पुनः शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए श्रीवास्तव ने अपनी लेखनी को विराम देते हैं।
(फोटो साभार- मल्टी मीडिया)
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