COVID-19: विशेष: जो देखो वह कहता है, सब्र करो- धैर्य रखो: रघु ठाकुर
आज 'विशेष' में प्रस्तुत है- कोरोना वायरस महामारी से उत्पन्न स्थितियों का सजीव चित्रण जिसे कवि ने महसूस किया है, देखा है - "जो देखो, वह कहता है, सब्र करो- धैर्य रखो" शीर्षक से लिखी यह कविता, जिसके रचईता हैं___
ख्यातिनाम गांधीवादी - महान समाजवादी चिंतक व विचारक तथा शहीद-ए-आजम भगत सिंह एवं डॉ. लोहिया के सैद्धांतिक लक्ष्य, जो एक ऐसे 'समतामूलक समाज' की स्थापना, जिसमें कोई व्यक्ति किसी का शोषण न कर सके और किसी प्रकार का अप्राकृतिक अथवा अमानवीय विभेद न हो, को पूर्ण करने हेतु समर्पित लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक व राष्ट्रीय संरक्षक- रघु ठाकुर
कविता:
जो देखो वह कहता है, सब्र करो - धैर्य रखो;
सब्र - सब्र सुनते, मेरे कान पक चुके है।
और कितनी सब्र करूं, बोलो;
उपदेश सुनते-सुनते हम थक चुके है।।
घर मे तीन दिन से दाना नही,
भूख से विलखते बच्चो को- रोटी का ठिकाना नही;
सरकार कहती है, होम डिलेवरी देंगे
सांची के बूथ पर, राशन के किट भेजेगें;
पर जब 15 दिनो से मजदूरी बन्द है,
पास का खर्च हो गया .उधारी भी बन्द है;
सरकार तो देती नही मजदूरों को राशन,
सरकार तो उन्ही का ख्याल रखती है, जो चलाते है शासन।
अगर हम विजय माल्या होते,
बैकों से अरबो लेकर विदेश चले जाते;
पर हमने किसी का पैसा नही खाया,
अपनी ही मजूरी की .अपना ही कमाया।
पर अब जब सरकार ने ही रोक दी मजदूरी,
अब क्या करे, कहाँ जाएँ;
रोना है मजबूरी।।
पंडितजी कहते हैं धैर्य रखो,
मौलवी कहते हैं सब्र करो,
भगवान सब ठीक करेगा;
अल्लाह गरीब की जरूर सुनेगा।
पर भगवान तो पत्थर के है,
भूख प्यास लगती नही,
अल्लाह अदृश्य हैं दिखते नहीं,
पर हम तो आदमी है, हमे तो भूख लगती है,
हमारे पेट की आग रोटी से ही बुझती है।
हमारे बच्चो का पेट कैसे भरेगा,
तुम्हारी गीता और कुरान से,
बडे साहब दिल्ली से भाषण पिलाते है,
छोटे साहब भोपाल से डंडो से डराते है,
सेठ जी कहते है चाहे जो करो,
लॉकडाउन बढायो कर्फ्यू लगाओ, हमारी जमात की जान बजाओ।
क्यों न कहें, उनके घरो मे तो ढेर लगे हैं गेहूं चावल दाल के बोरे भरे हैं।
घी भी है, तेल भी, शकर है, सब्जी भी
सब भरा है फ्रिजो मे, उन्हें भला क्या कमी;
पीछे गाय भैंस बंधी है उनके घरों में,
उनके घरों में सिर्फ शुध्द चलता है,
शुध्द घी, शुद्ध दूध, सिर्फ जैविक ही चलता है।
उन्हे क्या फर्क पडता है,
मरे, गरीब तो मरे
कीडा मकोडा ही तो मरता है।
लोग कहते है सब्र करो,
मीडिया कहता है धैर्य रखो,
पर कब तक, आखिर कब तक
अरे सभ्य लोगो साफ-साफ बोलो दिल की बात
मत घुमायो-फिराओ 'मन की बात'
कहो गरीव तुम तो मरने को ही पैदा हुये हो,
तुम्हें भोगना होगा पिछला कर्म दण्ड,
चुकाना होगा सब जो पाप किये हो।
मरो- चिंता मत करो,
तुम्हारी लावरिस लाश सरकार जलायेगी,
हम समाजसेवी तुम्हे मरघट पहुंचायेगे,
खर्च सब संस्था उठाएगी।
तुम मर सकते हो धैर्य के साथ
तुम सीधे स्वर्ग या जन्नतजाओगे,
भगवान दयालु है - सरकार कृपालु है,
मरकर तुम कोरोना शहीद बनकर
सारे जहान में पहचाने जाओगे।
-:रघुठाकुर:-
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