विशेष: कोरोना महामारी बनाम भारतीय संस्कृति
कोरोना महामारी पर हावी होती भारतीय संस्कृति!
कोरोना महामारी पर हावी होती भारतीय संस्कृति कोरोना (कोविड-19) महामारी से पहले भी विश्व में कई महामारियां आ चुकी हैं जैसे प्लेग, टायफायड, टाइफस, इन्फ्लुएन्जा, चेचक (वेरियोला), एशियाई फ्लू, स्पेनिश फ्लू, हांगकांग फ्लू, मार्स वायरस, सार्स वायरस, इबोला वायरस, निपाह वायरस, जीका वायरस और स्वाइन फ्लूद्यवैश्विक महामारी ने हमेशा मानव जाती को आगाह किया है कि विश्व प्रकृति के साथ खिलवाड़ न करेद्य वैश्विक महामारी हमें अपनी पुरानी संस्कृति और सभ्यता की याद दिलाती है।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति कि पूजा की गई है। प्रकृति ही जीवन देती है। प्रकृति प्रदत्त चीजों से मानव को खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।
शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है___
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। ये तत्व मनुष्य के शरीर में एक विशिष्ट स्थान पर स्थित हैं। हडडी, मांस, त्वचा, रंध्र, नाखून में पृथ्वी का वास है। खून, लार, पसीना, मूत्र, वीर्य में जल का वास है। भूख, आलस्य, निंद्रा, जंभाई में अग्नि का वास है। बोलना, सुनना, सिकुडना, फैलना, बल लगाना में वायु का वास है। शब्द, आविर्भाव, रस, गंध, स्पर्श में आकाश का वास है, अर्थात मानव शरीर में पृथ्वी का केंद्र बिंदु गुदा, जल का केंद्र बिंदु लिंग, अग्नि का केंद्र बिंदु मुख, वायु का केंद्र बिंदु नाभि और आकाश का केंद्र बिंदु सुषमना नाड़ी है। ये पांच तत्व पर्यावरण से मिलकर बने हैं। पर्यावरण का सम्बन्ध प्रकृति से है। प्रकृति का सम्बन्ध संस्कृति से है। अतएव जीवन जीने के लिए प्रकृति से खिलवाड़ को रोकना होगा। संस्कृति संस्कार से बनती है ओर सभ्यता नागरिकता से। भारतीय संस्कृति एक सतत संगीत है। आधुनिक काल में मनुष्य अपने ज्ञान का दुरुपयोग कर रहा है, क्षद्म विकाश के नाम पर संस्कृति और प्रकृति दोनों को नष्ट कर रहे हैं। और यही कारण है कि, हम और हमारा देशअपनी सभ्यता तथा प्राचीन संस्कृति को खो दिया है। यूँ तो भारतीय संस्कृति ने देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी अपना नाम कमाया। संस्कृति का एक उदाहरण यह भी है कि, यंहा के रहन-सहन, खान-पान, वैदिक क्रिया-कलाप (आयुर्वेद) आदि को विदेशों ने भी अपनाया है।
संस्कृति का दर्शन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। दर्शन जीवन का आधार है। संस्कृति बौद्धिक व मानसिक विकास में सहायक है। कवी रामधारी सिंह "दिनकर" के अनुसार संस्कृति जीवन जीने का तरीका है। भारत का 'संस्कृति' शब्द 'संस्कृत' से आया है। संस्कृति शब्द का उल्लेख, तरेय ब्राह्मण में मिलता है। एतरेय, ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रन्थ है। ऋग्वेद सम्पूर्ण ज्ञान व ऋचाओं का कोष है। ऋग्वेद मानव ऊर्जा का स्रोत है। ऋग्वेद भारतीय संस्कृति व सभ्यता का कोष है। ऋग्वेद हिंदुत्व का मूल है। इस सम्बन्ध में महात्मा गाँधी ने एक बार कहा था कि हिंदुत्व सत्य के अनवरत शोध का ही दूसरा नाम है। संस्कृति ही मानव की आधार शिला है। यह भारत कि राष्ट्रीयता का मुख्य आधार हैद्ययही कारण है कि भारत विकासशील होते हुए भी अन्य देशों के बीच अपनी पहचान बनाए हुए है।
इस समय विश्व कोरोना (कोविड-19) महामारी से परेशान है, जिसकी वजह से विश्व के बहुत से देशों को लॉक-डाउन का आदेश जारी करना पड़ा है। इस लॉक डाउन का प्रकृति पर प्रभाव देखें। 'हवा' शुद्ध हुई, 'पानी'' शुद्ध हुआ, 'पृथ्वी' शुद्ध हुई, 'आकाश' शुद्ध हुआ और 'अग्नि' शुद्ध हुई है। कहने का तात्पर्य पूरे विश्व का पर्यावरण शुद्ध हुआ है। प्रकृति प्रदूषण की गुलाम हो चुकी थी। प्रकृति, प्रदूषण से स्वतंत्र हुई है। प्रकृति में स्वच्छंदता आई है। मानव इस लॉक-डाउन की स्थिति में स्वछन्द प्रकृति का आनंद ले रहा है। इससे पहले मानव प्रदूषित प्रकृति में जकड़ा था। प्रदूषित प्रकृति तनाव व बीमारियां पैदा करती हैं जबकि स्वछन्द प्रकृति जीवन देती है। अतएव विश्व के हर एक देश को वर्ष में कुछ दिन के लिए लॉक डाउन रखना चाहिए। जिससे हम प्रदूषित प्रकृति को स्वछन्द प्रकृति का रूप दे सकें। इतिहास हमेशा हमें सचेत करता रहा की विकास उतना ही करें, जिससे प्रकृति का दोहन या विनाश न हो। ऐसा विकास, जिससे शहीद ए आजम- क्रांतिकारी भगत सिंह और डॉक्टर लोहिया के सैद्धांतिक लक्ष्य के अनुसार समतामूलक समाज की स्थापना हो, जिसमें कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति का शोषण न कर सके और किसी प्रकार का अप्राकृतिक या अमानवीय विभेद न हो, मानव की जीवन प्रत्याशा (जीने की इच्छा) बढ़े अर्थात मानव स्वस्थ रहे, दीर्घायु हो, 'विकास' कहलाता है जिसके लिए वर्त्तमान में राजनैतिक पैगम्बर कहे जाने वाले महान समाजवादी चिंतक व विचारक- रघु ठाकुर पिछले कई दशक से सक्रीय हैं। अन्यथा किसी भी प्रकार का 'विकाश', 'विनाश' की श्रेणी में ही आता है। गौतम बुद्ध ने कहा था कि, "वीणा का तार उतना ही कसो, जितने में मधुर ध्वनि निकले", इतना ज्यादा भी 'वीणा के तार' को मत कस दो कि वो टूट जाए। अर्थात 'विकास' के तार को भी उतना ही कसिये, जितना जरुरत हो अन्यथा ज्यादा विकास के चक्कर में 'विकास' का तार टूट जाएगा।
कोरोना महामारी की वजह से लोग हाथ नहीं मिला रहे हैं, गले नहीं मिल रहे हैं, साफ़-सफाई का ध्यान रख रहे हैं, और नमस्ते (प्रणाम) को अपना रहे हैं। प्रत्येक धर्म के लोगों का अपने-अपने ईश्वर के प्रति आस्था बढ़ी है। कहने का तात्पर्य प्रत्येक धर्म के लोगों ने इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना शुरू कर दी है। ऐसा लगता है कि, इस बीमारी ने लोगो को भारतीय संस्कृति और सभ्यता की याद दिला दी है। अब लोग संस्कारववान हो गए हैं। यही भारतीय संस्कृति थी, जिसको हमने विकाश और आधुनिकीकरण के नाम पर पाश्चात्य सभ्यता अपनाकर खो दिया था। भारत के प्रधानमंत्री के आह्वान पर 05 अप्रैल 2020 रविवार को सभी लोगों ने रात्रि 9 बजे 9 मिनट तक अपने घरों के दरवाजे, बालकनी, खिड़की, छत आदि जगहों पर दिया जलाकर, टोर्च जलाकर या मोमबत्ती जलाकर कोरोना के खिलाफ सेवा दे रहे लोगों का आभार प्रगट किया, जिससे कोरोना वायरस जैसी बीमारी से जंग जीती जा सके।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी बाजपाई जी की कविता -
"आओ दिया जलाएं-" को लोगों ने खूब गुनगुनाया।
तनाव नकारात्मकता का प्रतीक है। तनाव अंधकार का कारक है। समाज की अवनति का कारण है तनाव। सकारात्मकता से तनाव पर विजय पाई जा सकती है।
अतएव असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मामृतं गमय ॥ (बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.२८)।
अर्थ: मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥ यही अवधारणा समाज को चिंतामुक्त और तनाव मुक्त बनाती है। 21 दिनों के लॉक डाउन में लोग तनाव के शिकार ना हों और स्वस्थ रहें, इसी आधार पर मोदी जी ने - "आओ दिया जलाएं-" का आह्वान किया था। विश्व का कोई भी देश अब संक्रामक बीमारी को हल्के में ना ले।
लेखक: डॉ शंकर सुवन सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर एंड प्रॉक्टर, सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एटेक्नोलॉजी एंड सइंसेस, नैनी, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) हैं।
(लेख-सम्पादित:संपादक)
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