निजता विधेयक में बदलाव असंवैधानिक
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश तथा भारत के निजता संबंधी विधेयक के मुख्य वास्तुकार न्यायाधीश बी एन श्रीकृष्ण ने केंद्र सरकार द्वारा निजी डेटा संरक्षण विधेयक में किए गए बदलावों पर अपनी असहमति जाहिर की। न्यायाधीश श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाली समिति ने इस विधेयक को तैयार किया था जिसे कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद हाल ही में सदन पटल पर रखा गया। न्यायाधीश श्रीकृष्ण ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के पवन लाल को बताया कि सरकार द्वारा किए गए बदलाव असंवैधानिक हैं।
विधेयक में किए गए किन बदलावों से आप असहमत हैं?-
उन्होंने व्यक्ति के डेटा तक पहुंच बनाने से संबंधित नियंत्रण प्रणाली के नियमों को खुर्द-बुर्द कर दिया है जिसे कानून तथा संसदीय प्रणाली द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए। सरकार द्वारा किया गया यह बदलाव सरकार की निरंकुशता को दर्शाती है।
आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?-
क्योंकि यह किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का अतिक्रमण कर रहा है और किसी सरकारी कार्यालय में बैठा एक अफसरशाह एक पेन चलाकर आपके सभी डेटा तक पहुंच बना सकता है। विधेयक के मूल मसौदे में ऐसे प्रावधान नहीं थे। हम इसके लिए संसदीय प्रक्रिया का उपयोग करने के पक्ष में थे। यहां तक कि संसद द्वारा बनाए जाने वाले कानून को पुट्टास्वामी निर्णय के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित मापदंड़ों का पालन करना होगा। (पुट्टास्वामी निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसके तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14ए 19 और 21 के तहत निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के तौर पर संरक्षित किया गया है।)
इस पूरी प्रक्रिया का सार क्या है, क्या इसका कोई निदान है?-
सार यह है कि इस तरह का विधेयक नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा नहीं करता और यह बहुत खतरनाक है। इसे चुनौती दी जा सकती है और व्यक्ति उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकते हैं। हालांकि यह फिर एक लंबी प्रक्रिया होगी और अहम बात यह है कि यह कानून हमारी रक्षा के उद्देश्य से लाया गया था जिसे नागरिकों तथा सरकारोंए सभी पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। कानून इसलिए बनाए जाते हैं जिससे सरकार भी इससे इतर कदम न उठा सके।
(साभार- बी एस)
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