विशेष: भारत को धर्म नहीं, रोटी चाहिए: स्वामी विवेकानंद
हिंदू धर्म के बारे में क्या बोले थे स्वामी विवेकानंद, आइये, आज 'विशेष' में देखते हैं:
विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद का सबसे लंबा भाषण हिंदू धर्म के बारे में था, जो उन्होंने 19 सितंबर 1893 को दिया था। अपने इस भाषण में स्वामी जी ने बताया था कि हिंदू धर्म का असली संदेश लोगों को अलग-अलग धर्म-संप्रदायों के खांचों में बांटने का नहीं, बल्कि पूरी मानवता को एक सूत्र में पिरोने का है।
उन्होंने कहा कि गीता में खुद भगवान कृष्ण ने यही संदेश दिया है:
अलग-अलग रंगों के कांच से होकर हम तक पहुंचने वाला प्रकाश एक ही है....।
ईश्वर ने भगवान कृष्ण के रूप में अवतार लेकर हिंदुओं को बताया:
मोतियों की माला को पिरोने वाले धागे की तरह मैं हर धर्म में समाया हुआ हूं.....। तुम्हें जब भी कहीं ऐसी असाधारण पवित्रता और असामान्य शक्ति दिखाई दे, जो मानवता को ऊंचा उठाने और उसे सही रास्ते पर ले जाने का काम कर रही होए तो समझ लेना मैं वहां मौजूद हूं।
भारत को धर्म नहीं, रोटी चाहिए
1893 की विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद का चौथा भाषण इतना छोटा था कि उसे एक संक्षिप्त टिप्पणी भी कह सकते हैं। लेकिन 20 सितंबर 1893 को अपनी इस संक्षिप्त टिप्पणी में वो एक ऐसी बात कह गए, जिसकी अहमियत आज भी बहुत बड़ी है।
पूरब की दुनिया की सबसे बड़ी जरूरत धर्म से जुड़ी हुई नहीं है। उनके पास धर्म की कमी नहीं है, लेकिन भारत की लाखों पीड़ित जनता अपने सूखे हुए गले से जिस चीज के लिए बार-बार गुहार लगा रही है, वो है रोटी।
वो हमसे रोटी मांगते हैं, लेकिन हम उन्हें पत्थर पकड़ा देते हैं। भूख से मरती जनता को धर्म का उपदेश देना, उसका अपमान है। भूखे व्यक्ति को तत्वमीमांसा की शिक्षा देना उसका अपमान है।
विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद का आखिरी संदेश:
स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद में अपना छठा और अंतिम भाषण 27 सितंबर 1893 को सम्मेलन के समापन सत्र में दिया था। उनका वो संदेश सारी दुनिया को सदियों तक राह दिखाता रहेगा।
धर्म संसद ने दुनिया के सामने ये साबित कर दिया है कि पवित्रता, शुद्धता और उदारता, दुनिया के किसी एक धर्म की मिल्कियत नहीं है, सभी धर्मों ने सर्वश्रेष्ठ गुणों वाले महान पुरुषों और महिलाओं को जन्म दिया है। इस बात के साबित होने के बाद भी अगर कोई व्यक्ति सिर्फ अपने धर्म के आगे बढ़ने और बाकी धर्मों के नष्ट होने का सपना देखता है, तो मुझे उस पर दिल की गहराइयों से तरस आता है।
मैं ऐसे लोगों को बताना चाहूंगा कि तमाम विरोध के बावजूद हर धर्म के बैनर पर बहुत जल्द लिखा होगा 'युद्ध नहीं, सहयोग', 'श्विनाश नहीं, मेल-मिलाप', 'आपसी कलह नहीं, शांति और सद्भावना' चहिये।
स्वामी विवेकानंद ने सवा सौ साल पहले दुनिया के लोगों, खासतौर पर धर्म की बात करने वालों से जो उम्मीद लगाई थी, क्या वो अब तक पूरी हो सकी है?-
इस सवाल का जवाब तलाशने और उन अधूरी उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश ही स्वामी विवेकानंद के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धा की कसौटी है।
(साभार- मल्टी मीडिया)
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