न्यासियों की व्यक्तिगत संपत्ति हो सकती है जब्त.
नई-दिल्ली: अगर कोई परोपकारी संस्था कर छूट या संस्थाओं के पंजीकरण से जुड़े नियमों का उल्लंघन करती है तो उसके न्यासियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। आम बजट में इसका प्रावधान किया जा सकता है।
सरकार के एक सूत्र ने कहा कि इसके लिए आय कर कानून में एक नया प्रावधान जोड़ा जा सकता है। इसके तहत अगर कोई पंजीकृत परोपकारी संस्था नियमों का उल्लंघन करती है तो अधिकारियों को उसके न्यासियों की व्यक्तिगत परिसंपत्तियों को जब्त करने का अधिकार दिया जा सकता है। टाटा ट्रस्ट्स का मामला सामने आने के बाद इस पर विचार किया जा रहा है।
अभी इस तरह के उल्लंघन के मामले में जिम्मेदारी ट्रस्ट पर ही होती है और न्यासियों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। नया प्रावधान वित्त विधेयक 2020 का हिस्सा हो सकता है।
सूत्र ने कहा, "सार्वजनिक ट्रस्ट काले धन को सफेद करने का सबसे आसान जरिया बन गए हैं क्योंकि उनके कामकाज पर बराबर नजर नहीं रखी जाती है।"
उन्होंने कहा कि, "चूंकि इन ट्रस्टों को सही लोगों से चंदा मिलता है, इसलिए उनके प्रबंधकों से सवाल जवाब होना चाहिए और ट्रस्ट के उद्देश्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की होनी चाहिए।"
सरकार साथ परोपकारी और गैर लाभकारी संस्थाओं के विदेशी चंदे की राशि भी सीमित करने पर विचार कर रही है। इसके तहत ये संस्थाएं अपनी कुल आय की 5 से 10 फीसदी राशि ही विदेशी चंदे के रूप में दे सकती हैं। अभी उनके लिए ऐसी कोई सीमा नहीं है और अगर उनकी गतिविधियां आय कर कानून की धारा 11 (1) के तहत आती हैं तो वे कर छूट का दावा कर सकती हैं। हालांकि, कुछ परोपकारी ट्रस्ट इस श्रेणी में शामिल नहीं होने के बावजूद विदेशी चंदे पर छूट का दावा कर रही हैं।
साथ ही सरकार ने कर छूट का लाभ उठा रही परोपकारी संस्थाओं को उनके स्थापना वर्ष के आधार पर समान मौके देने के लिए राय मांगी है। एक अधिकारी ने कहा कि उन्हें अपना निवेश निकालने के लिए तीन साल का समय दिया जा सकता है। अभी आय कर कानून में 1952, 1973 और 1982 में या इससे पहले किए गए निवेश के तौर तरीकों के लिए अलग-अलग तारीखों का प्रावधान है।
एक अन्य सूत्र ने कहा कि कई ऐसे ट्रस्ट हैं जिनके पास 1973 से पहले किया गया निवेश है। ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है, जिससे साबित हो कि यह निवेश ट्रस्टों की आय से 1973 में किया गया या उससे पहले। यह भी देखा गया है कि इन ट्रस्टों के कोष का इस्तेमाल उनमें बहुलांश हिस्सेदारी के जरिये अपने कारोबारी समूह की कंपनियों पर नियंत्रण के लिए किया जा रहा है, न कि किसी परोपकारी उद्देश्य के लिए। रकम निवेश के लिए विभिन्न न्यासों को अलग-अलग रूपों एवं विधियों से रियायत उपलब्ध है, इसलिए उनके साथ होने वाले व्यवहार में भी भिन्नता होती है।
कर विशेषज्ञों के अनुसार इससे समीक्षा करना मुश्किल हो जाता है। इन बातों के मद्देनजर नियम समान किए जाने से सभी न्यासों को समान लाभ मिलेंगे। हाल में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने 2019 की अपनी रिपोर्ट में कर प्रावधानों के तहत अनियमितताएं एवं रियायत के तरीकों की चर्चा की गई है। इस मामले में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने शुरू में रियातयत का दावा यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि ट्रस्ट की प्रस्तावित गतिविधियां उन अंतरराराष्ट्रीय पर उन परोपकारों को बढ़ावा नहीं दे रही है, जिनमें भारत की दिलचस्पी है।
(साभार- बी. एस.)
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