असम: नागरिकता विधेयक पर विरोध तेज़, भाजपा प्रवक्ता ने दिया इस्तीफ़ा
ग़ैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने वाले नागरिकता संशोधन विधेयक के लोकसभा में पारित होने के बाद भाजपा के प्रवक्ता मेहदी आलम बोरा ने कहा कि, "यह विधेयक असमिया समाज के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को प्रभावित करेगा, इस पर मैं पार्टी से सहमत नहीं, इसलिए पार्टी छोड़ रहा हूं।"
गुवाहाटी: लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पारित होने के कुछ ही देर बाद भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता मेहदी आलम बोरा ने इसके विरोध में मंगलवार को पार्टी के सभी पदों से त्याग पत्र दे दिया।
इस विधेयक के विरोध में बोरा पहले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने इसके विरोध में भाजपा छोड़ी है। उन्होंने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रंजीत कुमार दास को अपना इस्तीफ़ा सौंपा है।
बोरा ने अपने इस्तीफे में लिखा है, "मैं नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करता हूं। मैं सही अर्थों में महसूस करता हूं कि इससे असमिया समाज को नुकसान होगा।"
उन्होंने कहा, "यह विधेयक असमी समाज के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को प्रभावित करेगा, इसलिए मैं लगातार इसका विरोध करता आ रहा हूँ।"
बोरा ने कहा, "लोकसभा में इस विधेयक के पारित होने के बाद मैं भाजपा से सहमत नहीं हो सका और इसलिए मैं पार्टी की प्राथमिक सदस्यता सहित सभी पदों से इस्तीफा दे रहा हूँ।"
बोरा 2016 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे।
मुख्यमंत्री सोनोवाल इस्तीफा दें और चुनाव का सामना करें: असम गण परिषद
नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे पर असम में भाजपा नीत गठबंधन से बाहर होने के एक दिन बाद असम गण परिषद (एजीपी) ने मंगलवार को मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल का इस्तीफा मांगा और पार्टी को चुनाव का सामना करने को कहा।
एजीपी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने यहां कहा कि सोनोवाल सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है और यदि भाजपा के पास साहस है तो उसे चुनाव का सामना करना चाहिए।
महंत ने संवाददाताओं से कहा, "असम में एजीपी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन के आधार पर भाजपा नीत सरकार बनी थी। चूंकि अब यह गठबंधन अस्तित्व में नहीं है, इसलिए हम असम की मौजूदा सरकार को भंग करने की मांग करते हैं।"
महंत ने भाजपा पर असम विरोधी नीति अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा, "भाजपा अपने बूते एक नयी सरकार बनाए। हम उसका स्वागत करेंगे।"
राज्य की 126 सदस्यीय विधानसभा में एजीपी के 14 विधायक हैं। हालांकि सरकार से उसके हटने का सोनोवाल नीत सरकार के भविष्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जिसे 74 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। विपक्षी कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के क्रमश: 25 और 13 सदस्य हैं।
एजीपी संस्थापक ने कहा, "भाजपा ने चुनाव (2016) में कई सीटें एजीपी के चलते ही जीती थी। एजीपी ने इस विधेयक को प्रस्तावित किए जाने के बाद से ही इसका विरोध किया।"
असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल कुमार महंत के नेतृत्व में नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ नवंबर 2018 में हुई एक रैली में असम गण परिषद के कार्यकर्ता (फोटो: पीटीआई)
उल्लेखनीय है कि विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 मंगलवार को लोकसभा में पारित कर दिया गया जबकि इसके खिलाफ असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र में बंद का आह्वान किया गया था। प्रस्तावित विधेयक को वापस लेने के लिए केंद्र सरकार को मना पाने की अपनी आखिरी कोशिश में भी नाकाम रहने के बाद एजीपी ने भाजपा नीत गठबंधन सरकार से सोमवार को अपना समर्थन वापस ले लिया था।
1979 से 1985 तक चले असम आंदोलन के नेता रहे महंत ने कहा, "यदि यह फैसला (समर्थन वापसी का) पहले ले लिया गया होता तो एजीपी के प्रति लोगों का रोष और हताशा कम रहती।"
वहीं पार्टी अध्यक्ष अतुल बोरा ने मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल पर नागरिकता संशोधन विधेयक पर "सहयोग न करने और असमिया लोगों की भावनाओं और हितों का उचित सम्मान नहीं करने का आरोप लगाया है"।
असम गण परिषद के अध्यक्ष अतुल बोरा ने संवाददाताओं को बताया, "उनकी पार्टी ने कई मौकों पर मुख्यमंत्री से कहा कि वह केंद्र से आग्रह करें कि इस विधेयक पर आगे नहीं बढ़ा जाना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी।"
उन्होंने कहा, हमने सोनोवाल को इशारा किया था कि लोगों ने उन्हें "जाति नायक" (समुदाय के नेता) की उपाधि से सम्मानित किया था, क्योंकि उनकी याचिका पर उच्च्तम न्यायालय ने ट्रिब्यूनल द्वारा अवैध प्रवासियों का निर्धारण अधिनियम को रद्द कर दिया था और यह उनका कर्त्तव्य था कि वह इस मसले पर लोगों की भावनाओं का सम्मान करें।"
ज्ञात हो कि प्रस्तावित कानून में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैर-मुसलमानों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने की व्यवस्था है"।
(साभार- मल्टी मीडिया)
swatantrabharatnews,com