
हिंदी राष्ट्र की गरिमा का आधार है.
संपूर्ण भारत में प्रतिवर्ष सत्र १९५३ ई• से 14 सितंबर को "हिन्दी-दिवस" के रूप में मनाया जाता है। हिन्दी विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा होने के साथ-साथ हिन्दी हमारी "राष्ट्रभाषा" भी है। वह दुनियाभर में हमें सम्मान भी दिलाती है।
यह भाषा है हमारे सम्मान, स्वाभिमान और गर्व की।
हिन्दी ने हमें विश्व में एक नई पहचान दिलाई है। हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है।
हिन्दी हिन्दुस्तान की भाषा है। राष्ट्रभाषा किसी भी देश की पहचान और गौरव होती है। हिन्दी हिन्दुस्तान को बांधती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, साक्षर से निरक्षर तक प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति हिन्दी भाषा को आसानी से बोल-समझ लेता है। यही इस भाषा की पहचान भी है कि इसे बोलने और समझने में किसी को कोई परेशानी नहीं होती है।
हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा के साथ-साथ हमारी संस्कृति के महत्व पर जोर देने के लिए एक महान कदम है।
यह युवाओं को उनकी जड़ों के बारे में याद दिलाने का एक तरीका है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहाँ पहुंचते हैं और हम क्या करते हैं, अगर हम अपनी जड़ों के साथ रहते हैं, तो हम अचूक रहते हैं।
प्रत्येक वर्ष ये दिन हमें हमारी वास्तविक पहचान की याद दिलाता है और हमें अपने देश के लोगों के साथ एकजुट करता है।
हिंदी भाषा को लेकर राज्यों में विवाद तक हो चुके हैं।
हिंदी स्तब्ध है, हिंदी दुखी है, इसलिए "हिंदी" कहती है, "मैं हिन्दी हूं। बहुत दुखी हूं। स्तब्ध हूं। समझ में नहीं आता कहां से शुरू करूं, कैसे शुरू करूं?- मैं, जिसकी पहचान इस देश से है, इसकी माटी से है। इसके कण-कण से हैं। अपने ही आंगन में बेइज्जत कर दी जाती हूं! कहने को संविधान के अनुच्छेद 343 में मुझे राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।
अनुच्छेद 351 के अनुसार संघ का यह कर्तव्य है कि वह मेरा प्रसार बढ़ाएं। पर आज यह सब मुझे क्यों कहना पड़ रहा है। नहीं जानती थी, मेरा किसी 'राज्य - विशेष' में किसी की जुबान पर आना अपराध हो सकता है। मन बहुत दुखता है जब मुझे अपनी ही संतानों को यह बताना पड़े कि मैं भारत के 70 प्रतिशत गांवों की अमराइयों में महकती हूं। मैं लोकगीतों की सुरीली तान में गुंजती हूं। मैं नवसाक्षरों का सुकोमल सहारा हूं। मैं जनसंचार का स्पंदन हूं। मैं कलकल-छलछल करती नदिया की तरह हर आम और खास भारतीय ह्रदय में प्रवाहित होती हूं। मैं मंदिरों की घंटियों, मस्जिदों की अजान, गुरुद्वारे की शबद और चर्च की प्रार्थना की तरह पवित्र हूं। क्योंकि मैं आपकी, आप सबकी- अपनी हिन्दी हूं।
विश्वास करो, मेरा कि मैं दिखावे की भाषा नहीं हूं, मैं झगड़ों की भाषा भी नहीं हूं। मैंने अपने अस्तित्व से लेकर आज तक कितनी ही सखी भाषाओं को अपने आंचल से बांध कर हर दिन एक नया रूप धारण किया है। फारसी, अरबी, उर्दू से लेकर 'आधुनिक बाला' अंग्रेजी तक को आत्मीयता से अपनाया है। आधुनिक काल में मनुष्य अपनी सभ्यता तथा संस्कृति को खो दिया है।
भारतीय संस्कृति एक सतत संगीत है।"
संस्कृति, संस्कार से बनती है। सभ्यता बनती है- नागरिकता से। किसी भी नागरिक की पहचान उसकी भाषा से ही होती है। किसी भी देश की नागरिकता का सम्बन्ध उस देश की भाषा से होता है। संस्कृति व सभ्यता ही मानवता का पाठ पढाती है। संस्कृति आशावाद सिखाती है। संस्कृति का दर्शन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। दर्शन जीवन का आधार है। संस्कृति बौद्धिक व मानसिक विकास में सहायक है। कवि रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार संस्कृति जीवन जीने का तरीका है। भारत का संस्कृति शब्द संस्कृत भाषा से आया है। संस्कृति शब्द का उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है। ऐतरेय, ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रन्थ है। ऋग्वेद संपूर्ण ज्ञान व ऋचाओं (प्रार्थनाओं) का कोष है। ऋग्वेद मानव ऊर्जा का स्रोत है।
अतएव हम कह सकते है कि हिंदी भाषा हिंदुस्तान कि संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है। हमें संस्कृति और मूल्यों को बरकरार रखना चाहिए और हिंदी दिवस इसके लिए एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है। हिंदी भाषा राष्ट्र के गौरव का प्रतीक है।
(लेखक- शंकर सुवन सिंह एक चिंतक हैं तथा असिस्टेंट प्रोफेसर एंड प्रॉक्टर- वार्नर कॉलेज ऑफ़ डेरी टेक्नोलॉजी, सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज, नैनी, प्रयागराज (इलाहाबाद) हैं ।
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