30 अगस्त - अनैच्छिक लापता होने वाले पीड़ितों के अन्तर्राष्ट्रीय दिवस पर कुशलता की प्रार्थना!
अपनों का अचानक लापता हो जाना संसार की एक बड़ी दुखदायी वैश्विक समस्या है!
- प्रदीप कुमार सिंह, लेखक, लखनऊ
संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के अनुसार 30 अगस्त को अनैच्छिक लापता होने वाले पीड़ितों का अन्तर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में सारे विश्व में मनाया जाता है। 21 दिसंबर, 2010 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस दिवस की स्थापना की गई थी। इस वैश्विक दिवस का उद्देश्य गिरफ्तारी, हिरासत, अपहरण, मानव तस्करी, शरणार्थी समस्या, प्राकृतिक अपदाओं आदि कारणों से पूरी दुनिया में भारी संख्या में लोगों के अनैच्छिक लापता होने की विस्तृत श्रृंखला के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
किसी राज्य के एजेंटों या व्यक्तियों या समूहों द्वारा स्वतंत्रता के अभाव या ठिकाने के अभाव के कारण गायब व्यक्ति, कानूनीे संरक्षण के अभाव के कारण लापता लोगों को ऐसी विशेष श्रेणी में गिना जाता है। यह दिन विभिन्न देशों को अंतर्राष्ट्रीय समझौते तथा अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के संरक्षण के लिए उनके दायित्वों की पूर्ति के लिए विवश करता है। यूएन का मानवाधिकार कमीशन इस वैश्विक समस्या का स्थायी समाधान खोजने का निरन्तर प्रयास कर रहा है।
21वीं नई सदी में वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था के गठन के मुकाबले संकुचित राष्ट्रीयता, राजनैतिक दमन, सैन्य तानाशाही, विस्तारवाद, धार्मिक उन्माद, गृह युद्ध, आतंकवाद, मानव तस्करी, शरणार्थी समस्या, रूढ़िवादिता आदि की दर्दनाक घटनायें अधिक हो रही हंै, जो किसी भी परिवार, समुदाय के लिए तथा विश्व एकता, विश्व शान्ति तथा विश्व बन्धुत्व की प्रगति में बाधक हंै। अपराधों की त्वरित प्रभावी जांच के द्वारा पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करना सर्वोपरि प्राथमिकता होना चाहिए।
यह प्यारी धरती हमें अपने पूर्वजों से केवल भोगने के लिए ही विरासत में नहीं मिली है वरन् भावी पीढ़ी को सुरक्षित धरोहर के रूप में वापिस सौंपने के लिए भी मिली है। भविष्य में आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित वातावरण निर्मित करने के लिए ऐसे अत्याचारों को हतोत्साहित करने की रणनीति वल्र्ड लीडर्स, वल्र्ड जुडीशियरी तथा वल्र्ड मीडिया को मिलकर बनानी चाहिए। यह दुखदायी समस्या केवल लापता लोगों के करीबी रिश्तेदारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उनके समुदायों, समाज तथा सारे विश्व को भी अत्यधिक दुखी तथा आर्थिक व सामाजिक रूप से प्रभावित करती हैं।
वर्तमान में विश्व स्तर पर लापता लोगों की बढ़ती संख्या ने इसे एक वैश्विक समस्या का स्वरूप प्रदान किया है। विश्वव्यापी स्वरूप धारण कर चुकी वैश्विक समस्याओं को हल किसी राष्ट्रीय सरकार द्वारा अब नहीं किया जा सकता। लापता लोगों की समस्या अब दुनिया के किसी एक विशिष्ट क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है। मानव जाति के लिए यह विशेष चिंता की बात है। मानवाधिकार रक्षकों, पीड़ितों के रिश्तेदारों, गवाहों और गायब होने के मामलों से निपटने वाले कानूनी वकील के प्रति चल रहे उत्पीड़न, जानलेवा हमले, हत्याऐं आदि के मामलें आये दिन सामने आते हैं। इस हिंसा तथा अन्याय की रोकथाम के लिए वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था का गठन शीघ्र करना होगा। इसके अन्तर्गत प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सख्ती से पालन कराने के लिए वल्र्ड पुलिस तथा वल्र्ड सेना की आवश्यकता होगी।
गुफाओं से प्रारम्भ मानव सभ्यता की यात्रा के सबसे विकसित युग में अभी भी विश्व में व्यापक रूप से गायब लोगों के बारे में भारी अराजकता है। विशेष रूप से कमजोर लोगों जैसे विश्व के बच्चों, महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों और विकलांग लोगों के प्रति विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। आतंकवाद-रोधी गतिविधियों को कुछ देशों द्वारा एक बहाने के रूप में अर्थात अपने दायित्वों के उल्लंघन के लिए उपयोग किया जाता है।
वर्तमान समय की बात करे तो पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी घट रही है और इसकी मुख्य वजह हिन्दू लोगांे पर हो रहे अत्याचार हैं। इस वजह से वहां के हिन्दू समुदाय के लोग भारत की ओर पलायन करने लगे हैं। आज के समय पाकिस्तान की कुल जनसंख्या 20 करोड़ के पार है। वर्तमान में पाकिस्तान में 25 लाख हिन्दू लोगों की जनसंख्या है। यह पाकिस्तान की कुल आबादी का 2 प्रतिशत से कम है। इसकी मुख्य वजह हिन्दू और गैरमुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार है। ऐसे में बहुत से लोग भारत और दूसरे देशों की ओर पलायन कर रहे हैं।
बांग्लादेश के सांख्यिकीय आंकड़ों के अनुसार सन 2011 में वहां हिंदुओं की आबादी 8.4 प्रतिशत थी, जो 2017 में बढ़कर 10.7 प्रतिशत हो गई। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और वहां अक्सर उन पर हमले होते रहते हैं। इसके चलते उनके वहां से पलायन की खबरें भी आती रहती हैं। बांग्लादेश में पहली जनगणना में (जब वह पूर्वी पाकिस्तान था) मुस्लिम आबादी 3 करोड़ 22 लाख थी जबकि हिन्दुओं की जनसंख्या 92 लाख 39 हजार थी। वर्तमान में हिन्दुओं की संख्या केवल 1 करोड़ 20 लाख है जबकि मुस्लिमों की संख्या 12 करोड़ 62 लाख हो गई है। भारत में हिन्दुओं तथा मुस्लिमों के आंकड़े कुछ और कहानी कहते हैं। भारत माता ने सदैव खुले दिल से सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों को सदैव अंगीकार किया है। भारत को एक देश कहना ठीक नहीं होगा, वास्तव में भारत एक लघु विश्व का आदर्श माॅडल है। अब इसे एक साहसिक कदम बढ़ाकर व्यापक रूप देकर विश्व सरकार का स्वरूप भर देने की आवश्यकता है।
व्यापार, खेल, संगीत, विज्ञान, प्रकृति, सूरज, चांद, आसमान, भाषा, इण्टरनेट, फेसबुक, यूटयूब, ट्यूटर आदि ने विश्व की मानव जाति को आपस में जोड़ दिया हैं। वर्तमान में तकनीकी ग्लोबल हो गयी है लेकिन हमारी मानसिकता उसकी तुलना में अभी भी दकियानुसी है। हमारी संस्कृति का उद्घोष ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के अनुरूप हमें यूरोपियन यूनियन के गठन के साहसिक तथा विश्वास से भरे कदम से सीख लेकर हमें भी साहस तथा विश्वास के साथ एक कदम बढ़ाकर दक्षिण एशिया यूनियन, उसके बाद एशिया यूनियन तथा अन्त में विश्व सरकार बनानी चाहिए। युद्धों तथा आतंकवाद की समाप्ति का यहीं आज के नये युग में समझदारी भरा समाधान है।
यूरोपियन यूनियन के गठन के समय दकियानुसी मानसिकता के लोगों ने शंका व्यक्त की थी कि 27 यूरोपी देशों को वीसा मुक्त बनाने से इन देशों के लोग पेरिस तथा लंदन जैसे विकसित महानगरों की ओर भागेंगे और इससे भारी अराजकता फैल जायेगी। लेकिन यूरोपियन यूनियन के गठन के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ। दक्षिण एशिया यूनियन, उसके बाद एशिया यूनियन तथा अन्त में विश्व सरकार के गठन के रास्ते दकियानुसी मानसिकता के लोग सबसे बड़े बाधक हैं। भारत सरकार का गठन होने के बाद ऐसा नहीं हुआ कि सभी लोगों में मुम्बई, दिल्ली, कलकत्ता आदि महानगरों में बसने की होड़ लगी हो। जिस व्यक्ति का जहां रोजी-रोटी होती है वह वहीं रहता है। हां कुछ लोग रोजी-रोटी के तलाश में महानगरों की ओर जाते हैं लेकिन सभी लोग नहीं जाते।
विश्व के विभिन्न देशों की सरकारों को जनता का टेक्स का पैसा युद्धों की तैयारी से बचाकर सर्वसुलभ शिक्षा, सृजनात्मक कलाओं व खेलों के विकास तथा सभी के रहने के लिए आवास उपलब्ध कराने में लगाना चाहिए। हमें अपने मानव संसाधन भूख, गरीबी, कुपोषण तथा बेरोजगारी से लड़ने में लगाना चाहिए। भावी विश्व सरकार द्वारा युद्धों से बचे इस पैसे को विश्व के प्रत्येक वोटर को यूनिवर्सल बेसिक इनकम की तरह वोटरशिप के रूप में वितरित करना चाहिए। यह दिन जब साकार होगा तब वास्तविक लोकतंत्र की उच्चतम अवस्था का सुखद आभास धरती के प्रत्येक विश्व नागरिक को होगा।
जगत गुरू सबसे बड़े लोकतांत्रिक तथा युवा भारत को वैश्विक स्तर पर हर क्षेत्र में अग्रणी बनना है ताकि शक्तिशाली भारत अपनी संस्कृति के अनुरूप सारी वसुधा को कुटुम्ब बना सके। अर्थात वीटो पाॅवर रहित तथा युद्धरहित वैश्विक लोकतांत्रिक तथा न्यायपूर्ण व्यवस्था का गठन कर सके। संसार को एक वैश्विक परिवार की तरह समझना चाहिए। संसार छोड़कर जाने के पूर्व हमें इस नये युग की सच्चाई को स्वीकारते हुए अपना सर्वोत्तम साहस तथा विश्वास विश्व शान्ति, विश्व एकता तथा विश्व बन्धुत्व के लिए समर्पित करना चाहिए। कान लगाकर धरती माता की गोद में पल-बढ़ रही पीड़ित मानवता की चीत्कार को सुनना चाहिए। हर कीमत पर सदैव मानवता की जीत होनी चाहिए।
(प्रदीप कुमार सिंह, लेखक, लखनऊ)
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