विशेष : रेल सुविधायें हकीकत से दूर: रघु ठाकुर
आज "विशेष" में प्रस्तुत है "हक़ीक़त से दूर होती भारतीय रेल" पर भारत के राष्ट्रीय पैगम्बर- महान समाजवादी चिंतक व विचारक तथा लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- रघु ठाकुर द्वारा प्रस्तुत लेख, उन्ही के शब्दों में_____
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद नवगठित सरकार में रेल मंत्रालय जिन महानुभाव को दिया गया है वे अभी तक अक्षम साबित हुए हैं।
एक तो रेल मंत्रालय का बजट जो दशकों से क्या बल्कि आजादी के बाद से अलग ही पेश होता रहा था को आम बजट में मिलाकर महत्वहीन कर दिया गया जबकि रेल मंत्रालय का संबंध देश की आबादी के बड़े हिस्से के साथ होता है। लोकल व अन्य यात्री मिलाकर लगभग 2 करोड़ यात्री रोज़ रेल से यात्रा करते है। और रेल को चलाने और समझने के लिए विशेष योग्यता की आवश्यकता होती है, जिसमें आम जनता के प्रति संवेदनशीलता का गुण महत्वपूर्ण है। आखिर 2 करोड़ लोग अपनी यात्रा के दौरान सुरक्षा, पानी, बिजली, खानपान के सामान की गुणवत्ता और सभी सुविधाओं के लिये रेलवे के ऊपर निर्भर करते है।
वैसे भी न केवल भारत बल्कि समूची दुनिया में रेल सम्बन्धित देशों के आम लोगों के लिए सस्ता यातायात उपलब्ध कराने के दृष्टिकोण से गठित किया गया था परन्तु आमतौर पर अपवाद छोड़कर जो रेलमंत्री बने है उनके लिए रेल के बारे में कोई राष्ट्रीय कल्पना नहीं है। एक तरफ तो रेल का ढाँचा पुराना होता जा रहा है और जिसे कानून के अनुसार बदला नहीं जा रहा। जिसका परिणाम यह है कि आए दिन इंजन रास्ते में खड़े हो जाते है। कभी-कभी तो मूल गंतव्य स्टेशन से अधिकारियों के दबाव में जबरिया निकाले जाते है और कुछ ही दूर पर जाकर बिगड़ जाते है। पटरियों को बदलने का काम, सिग्नल सिस्टम को सुधारने का काम न के बराबर हो रहा है।
यात्री कोचो की स्थितियां नए कोचों को छोड़कर बकाया में लगभग बदतर हालात में हैं। अभी 10 जून को मैंने शताब्दी एक्सप्रेस से ग्वालियर की यात्रा की। कोच सी-8 में न पानी साथ ही एक संडास में बिजली नहीं थी और यहाँ तक कि कोच में चढने के लिए हत्थे होते है, वे भी निकले हुए थे। कोच की सीढ़ी अंदर की तरफ घुसी थी। और वरिष्ठ जनों, महिलाओं आदि को दरवाजे पर बैठ कर नीचे उतरना पड़ रहा या उतारा जा रहा था। रेल टिकिट निरीक्षक उसे देख रहे थे। परन्तु उन्होंने कोई शिकायत नहीं की होगी क्योंकि वे जानते है कि शिकायतों से कुछ होना नहीं है।
वहीं भोपाल में 11 जून को जी टी एक्सप्रेस से गया था। जो कि देश की पुरानी महत्वपूर्ण गाड़ियों में से एक है, उसके कोचो की भी हालात बदतर थी। चूंकि में अमूमन महीने में औसतन 20 दिन अपने राजनैतिक, सामाजिक कारणों से यात्रा पर रहता हूॅ और अधिकांश यात्रा रेल से ही करता हूॅ, इसीलिए बहुत सी रेल-गाड़ियों का अनुभव उनके हालातों के कारण मुझे मालूम है। और यह में किसी राजनैतिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि अपने अनुभवों के आधार पर लिख रहा हूॅ।
चूंकि मेरा संबंध 1973 से रेल कर्मचारी संगठनों के साथ रहा है, अतः आम तौर पर मैं कर्मचारियों के प्रति सदभावना की दृष्टि रखता हूॅ। इसके बावजूद भी यह सत्य तो लिखना ही होगा कि जहाँ कुछ कर्मचारी यात्रियों के प्रति सहयोगी भाव रखते है तो वहीं बहुत सारे केवल पैसा बनाने और खानापूर्ति में विश्वास करते हैं।
बहरहाल 11 जून के समाचार पत्रों में जो समाचार प्रमुखता से छपे थे, वे रेल यात्रा की उस भयावह त्रासदी का खुलासा करते है जिन्हें रेल यात्री रोज बर्दाश्त करने को लाचार है। केरल एक्सप्रेस जो नई दिल्ली से चलकर त्रिवेंद्रम जा रही थी उस ट्रेन में तमिलनाडू के 68 तीर्थ यात्री आगरा से सवार हुए थे। ये यात्री एस-8, और एस-9, कोच में थे। दिन में रेल के इंतजार में प्लेटफार्म पर बैठे-बैठे इन यात्रियों को असहनीय गर्मी को सहना पड़ा। रेलवे स्टेशनों पर ही हालात यह है कि अगर मुख्य प्लेटफार्म को छोड़ दे तो न पंखे होते है न पानी की व्यवस्था होते है न ऊपर की गर्मी से बचाव होता है। मैं रायपुर मंडल के रेल अधिकारियों की प्रशंसा करूॅगा कि उन्होंने प्लेट फार्म पर गर्मी की चुभन को कम करने के लिए एक फव्वारा जैसे यंत्र का इंतजाम किया है जो थोड़ी थोड़ी देर में बरफ जैसी फुहार छोड़कर प्लेटफार्म को ठंडा करता रहता है, परन्तु यह व्यवस्था मैंने अन्य किसी स्थान पर नहीं देखी।
केरल एक्सप्रेस गाड़ी के चलते ही इन यात्रियों को घबराहट होने लगी। गाड़ी ग्वालियर पहुंचते-पहुंचते तक कई लोगों को तेज घबराहट शुरू हो गई तथा जब गाड़ी झांसी पहुंची तो तीन यात्री दम तोड़ चुके थे और बकाया दो यात्रियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। तथा जानकारी प्राप्त हुई कि एक यात्री ने बाद में अस्पताल में दम तोड़ दिया।
रोज़ रेल मंत्रालय की विज्ञप्तियाँ जारी होती है कि रेल में ‘‘फर्स्ट-एड’’ की व्यवस्था है। अगर वह व्यवस्था होती तो रेल यात्रियों को मौत का शिकार नहीं होना पड़ता। यह तो स्लीपर क्लास के आदमी थे परन्तु पिछले एक माह के समाचार पत्रों में शायद ही कोई दिन ऐसी घटना न घटी हो तथा उसका समाचार न छपा हो ।
10-11 दिन पूर्व ही कुशीनगर एक्सप्रेस, जिसमें एक यात्री मुंबई से गोंडा के लिए यात्रा कर रहा था, गर्मी के कारण इटारसी में दम तोड़ दिया था। और अगर तभी रेल मंत्री इस पर गंभीर हुए होते तो ऐसी घटना की पुनःवृत्ति नहीं होती।
ऐसा भी कोई दिन शायद ही गया हो जिसमें लम्बी यात्रा की किसी न किसी गाड़ी का ए.सी. फैल न हुआ हो । लम्बी दूर की तेज गाड़ियां अल्पकाल को रूकती है और चल देती है। यद्यपि उनमें इलेक्टिंशियन होना चाहिए, परन्तु अधिकांश में नहीं होते। यहाँ तक कि राजधानी शताब्दी एक्सप्रेस तेलंगाना ब कर्नाटक एक्सप्रेस जैसी महत्वपूर्ण गाड़ियों में ए.सी. फैल होने के समाचार, समाचार पत्रों में आए है।
मैं जानता हूॅ कि कुछ लोग कहेंगे कि मैं ए.सी. कोच वालों की चिंता क्यों कर रहा, परन्तु मैं कहना चाहूॅगा कि उनकी चिंता दो कारणों से है:-
1- वे रेल यात्री है जो रेलवे के विश्वास पर यात्रा कर रहे है।
और
2- दूसरे उन्होंने अपनी सुविधा के लिए ए.सी. का ज्यादा किराया अदा किया है।
याने उनके मामले में रेलवे का अपराध दो तरफा है। एक यात्री के तौर पर और दूसरा टिकिट किराये को बदले की शर्त पूरी न करने पर।
गर्मी से मरने वाले उन यात्रियों की मौत सामान्य मौत नहीं कही जा सकती बल्कि एक प्रकार से व्यवस्था के द्वारा अपनी कर्तव्यहीनता के द्वारा की गई हत्या है तथा इस अपराधिक कर्तव्यहीनता के लिए जिम्मेदार बड़े अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होना चाहिए।
परन्तु श्री पीयूष गोयल जैसे रेल मंत्री से ऐसी अपेक्षा करना बेकार है। वह स्वतः तो अमूमन हवाई जहाज में चलते है, अफसर साहवान अमूमन सेलून में चलते है बकाया कर्मचारी अपनी-अपनी श्रेणी के अनुसार या फिर रेलवे कर्मचारी भाई-चारा के आधार पर ए.सी. में चलते है।
अब रतलाम मण्डल के रेल अधिकारियों ने एक नया काम शुरू किया है। वह यह कि वे रेल यात्रियों को मालिश की व्यवस्था करा रहे है और अब मालिश वाले लोग रेलवे में चलेंगे। उनसे 100-200-300 रूपये की तीन प्रकार की मालिश की सुविधा देने का प्रस्ताव है।
यह सामान्य ज्ञान की बात है कि मालिश कोई कपड़ों के ऊपर नहीं होती है याने रेलवे रेल में यात्री को सुरक्षा नहीं देता-पानी बिजली नहीं देगा, पर मालिश कराने की सुविधा देगा। आस-पास के यात्री व विशेषतः महिला यात्री इस सब में किस स्थिति में होंगे, इसकी कोई चिंता अफसरों को नहीं है। अफसर तो अपने चमड़े के सिक्के चलवाने में लगे है। मैं नहीं जानता हूॅ कि रतलाम मंडल के अधिकारियों ने इसके पूर्व अनुमति रेल मंत्रालय से ली है या नहीं। परन्तु कुछ भी हो यह समाचार भी देश के मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रमुखता से आया है तथा रेल मंत्री भी इससे अनभिज्ञ नहीं होंगे। हालाकि रेलवे ने इस आदेश को लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी और तत्पश्चात भाजपा के कुछ नेताओं के बिरोध के उपरान्त वापिस ले लिया पर किसी जिम्मेदार के खिलाफ कार्यवाही तो दूर कोई टिप्पणी तक नहीं की।
रेल यात्री गाड़ी में मरे, दुघर्टना से मरे, लुटेरों से मरे, परन्तु रेल मंत्री की चिंता का यह विषय नहीं है। वे तो केवल रेलवे की सुविधाओं का पैसा बढ़ाने को रेल का विकास मानते है। रेलवे की 10 रूपये की चाय की लागत 50 पैसे भी नहीं होगी।
शताब्दी राजधानी का भाड़ा बढ़ गया परन्तु खान-पान के मीनू के सामान कम हो गए। नई रेल लाईनों के निर्माण की कोई चर्चा नहीं है रेल और कोच बदलने की उनकी प्राथमिकता नहीं है।
और
चूंकि वे राज्यसभा से पहुंचे है, अतः उनकी आम आदमी के प्रति कोई जबावदारी भी नहीं है।
मैं चाहूॅगा कि प्रधानमंत्री इन बुनियादी बातों पर विचार करें और किसी योग्य और संवेदनशील व्यक्ति को रेल मंत्री बनाये जो मूल ढांचे मूल सुविधाओं और मूल चरित्र में बदलाव ला सके।
नोट:- हालांकि 13 जून को रेल्वे ने, मसाज के आदेश को वापिस ले लिया है। इसलिये रेलवे को धन्यवाद।
(रघु ठाकुर)
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