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विशेष: धारा 370 और उसके बाद: रघु ठाकुर
विशेष में प्रस्तुत है "धारा 370 और उसके बाद" पर राजनैतिक पैगम्बर तथा लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक - महान समाजवादी चिंतक व विचारक- रघु ठाकुर द्वारा प्रस्तुत लेख:
भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को संसद में धारा 370 को अप्रभावी करने की पहल की है। राष्ट्रपति जी ने पूर्व में इसी धारा के प्रावधान का प्रयोग कर राज्य सरकार तथा विधानसभा की शक्तियों और दायित्वों को राज्यपाल को हस्तांतरित कर दिया था तथा उसी के आधार पर 5 अगस्त 2019 को ही राज्यपाल ने धारा 370 को हटाने की संस्तुति कर दी और राष्ट्रपति जी ने इस धारा को उसी प्रकार समाप्त कर दिया जिस प्रकार से उनके आदेश से इसे जोड़ा गया था। दरअसल धारा 370 को 1954 में जब राष्ट्रपति जी के आदेश से संविधान का हिस्सा बनाया गया था तब भी वह राष्ट्रपति को संविधान के द्वारा दी गई शक्तियों का अमेरिकी उपयोग या दुरुपयोग था। यह बात सही है इस धारा को जोडने के पक्ष में स्व. बाबा साहब अम्बेडकर नहीं थे परन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व जवाहरलाल नेहरु ने कश्मीर घाटी में हो रहे उग्र आंदोलन को शाँत करने के लिए यह एक प्रकार से शाँति खरीदने का प्रयास किया था और जिसके लिए इस धारा को संविधान का हिस्सा बनाया था जो कि संवैधानिक प्रक्रिया का भी दुरुपयोग था और राष्ट्रीय दृष्टिकोण से भी उचित नहीं था । स्व. वल्लभभाई पटेल ने उस समय इस धारा को शामिल करने में नेहरू का साथ दिया । हालांकि आज के सत्ताधीव इस मामले को लेकर सरदार वल्लभभाई पटेल का बचाव कर रहे हैं कि उन्होंने नेहरू के प्रभाव या दबाव में शिष्टाचार बस सहमति दी थी। सरदार पटेल एक कठोर निश्चय वाले व्यक्ति थे और वे किसी के प्रभाव या दबाव में सहमति दें यह बात तथ्य परक नहीं लगती । यह बात निर्विवाद सत्य है कि सरदार पटेल महात्मा गांधी के प्रति सम्पूर्ण ईमानदार निष्ठा के बावजूद भी 1945 के बाद कई सवालों पर नेहरू के सहयोगी बन गए थे। भारत विभाजन को स्वीकार करने के प्रस्ताव पर भी उन्होंने महात्मा गांधी के बजाय नेहरू का साथ दिया था। मैं उनके पौने पांच सो देशी रियासतों को आजाद भारत में विलय करने के निर्णय की सराहना करता हूँ, परन्तु धारा 370 पर उनकी चुप्पी या मूक सहमति को नजर नहीं कर सकता।
हमारे देश का मीडिया अनेक कारणों से इतिहास से छेड़छाड़ और पक्षपात करता है और इसीलिए आज जब देश के सभी अखबार जब धारा 370 के समावेश और उसकी समाप्ति के निर्णय की वाहवाही से भरे पड़े हैं तब उन्होंने इतिहास की कुछ घटनाओं पर पर्दा डालकर दृष्टि ओझल करने का प्रयास किया है । यहाँ तक की मीडिया ने 1930 के गोलमेज सम्मेलन के समय का तत्कालीन कश्मीर के राजा स्वर्ण हरी सिंह के कथन को उद्धृत करते हुए कहा है कि, उन्होंने कहा था कि, जब भारत आजाद हो जाएगा तो कश्मीर उसका अभिन्न अंग बन जाएगा। यद्पि गोलमेज सम्मेलन की रपट में उनका कोई ऐसा बयान औपचारिक रूप से दर्ज नहीं है, फिर उनके बाद के उनके उत्तराधिकारियों की भूमिका 1947 में कितनी भारत विरोधी थी इसकी चर्चा नहीं हो रही है। उनके उत्तराधिकारियों ने कश्मीर को पृथक राष्ट्र रखने का प्रस्ताव शुरू किया। उनके ही उत्तराधिकारी श्री कर्ण सिंह जो विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष भी रहे हैं की पिछले 65 वर्षों में क्या भूमिका रही है और वे किस प्रकार से खेल खेलते रहे हैं इसका भी जिक्र मी़डिया ने नहीं किया। शेख अब्दुल्ला और उनके बाद की पीढ़ी को इसके लिए अपराधी तो मीडिया सिद्ध कर रहा है परन्तु इस अपराध में श्री कर्णसिंह और उनके पूर्वजों की भूमिका पर वह मौन है इसके कारण खोज के विषय हैं।
बहरहाल श्री नरेन्द्र मोदी और श्री अमित शाह की जोड़ी ने अपने स्वभाव के मुताबिक यह निर्णय करके अपनी दृढता सिद्ध की है। यह बात सही है कि श्री मोदी की पूर्ववर्ती सरकारों ने चाहे वे काँग्रेसए जनता पार्टी, जनता दल या भाजपा की रही हों, ने दृढ़ता का परिचय नहीं दिया बल्कि कश्मीर के श्रीनगर की मुस्लिम आबादी के उग्र आंदोलन को जो विदेशी शक्तियों के धन और प्रचार तंत्र पर टिका था को हथियार बनाकर देश के मुस्लिम मतदाताओं को भयादोहन के औजार के रूप में इस्तेमाल किया है।
एक प्रकार का यह ब्लेकमेलिंग का खेल लगातार काँग्रेस, पूर्ववर्ती भाजपा एवं अन्य सरकारें खेलती रहीं। भले ही आज संघ के लोग श्री नरेंद्र मोदी और श्री अमित शाह के संघ के संस्कारों को इसके लिए कारण बता रहे हों, परन्तु इसका भी उत्तर उन्हें देना होगा कि क्या श्री अटलविहारी वाजपेयी एवं श्री लालकृष्ण आडवाणी संघ के स्वयं सेवक नहीं थे और क्या संघ भिन्न भिन्न प्रकार के संस्कार देता है। इसमें कोई दो मत नहीं कि संघ एक अति चतुर राजनीतिक संस्था है जो अपने घोषित अघोषित लक्ष्य को पाने के लिए दूरगामी रणनीति के पाँसो को बड़ी चतुराई के साथ चलता रहा है और एक असीम धैर्य तथा दृढ़ता का परिचय देता रहा है। देश के लगभग छ: दशकों में निरंतरता के साथ संघ ने धारा 370 को राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधा जनमानस में सिद्ध कर दिया और यह भी सही है कि देश का आम आदमी धारा 370 के हटाने के पक्ष में था। काँग्रेस नेतृत्व सदैव मुस्लिम कट्टरपंथ को जगाकर हिंदू कट्टरपंथ का भय दिखाकर मुस्लिम मतदाताओं का भयादोहन करता रहा है। हिन्दू का भय दिखाओ और मुस्लिम मत पाओ यह काँग्रेस की छ: दशकों की रणनीति रही है तथा काँग्रेस देश के जनमत को 2014 और 2019 के चुनाव परिणामों के बाद भी समझने में असमर्थ रही तथा उसी घिसी पिटी मुस्लिम भयादोहन की रणनीति पर चलती रही।
मैं कश्मीर समस्या के सन्दर्भ में कई दशकों से लिखता रहा हूँ और कहता रहा हूँ कि अगर दृढता के साथ, निर्भय और तर्क के मार्ग पर चला जाए तो कश्मीर समस्या न कभी थी और न कभी रहेगी। चाहे इज़राइल और फिलिस्तीन का सवाल हो चाहे अयोध्या, चाहे समान नागरिक संहिता का सवाल हो, काँग्रेस ने सदैव मुस्लिम मतदाता को भयभीत कर वोट लिया है और अब इसके दो तरफा परिणाम सामने आए हैं। एक तरफ हिन्दू ध्रुवीकरण हुआ और दूसरी तरफ मुस्लिम मतदाता के सोच म़े फर्क आया है। और वे अब इन संकीर्ण सवालों से मुक्ति चाहते हैं तथा तकनीक विज्ञान रोजगार और विकास के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहते हैं।
370 के हटाने के साथ साथ राष्ट्रपति और राज्पाल के पूर्व नियोजित पत्राचार के आधार पर जम्मू-कश्मीर को दो केन्द्रशासित प्रदेशों में बाँटा गया है। हालांकि मेरी समझ यह है कि यह एक अस्थाई निर्णय है जिसे कालांतर में सरकार बदलेगी। इस प्रयोग से विधानसभा सीटों की संख्या का पुनः निर्धारण और पुनः परिसीमन हो सकेगा। लेह लद्दाख इलाके के विशाल क्षेत्रफल में जनप्रतिनिधित्व के आधार पर सीटें बढेगी तथा जब इस निर्णय को सरकार बदलेगी तब तक ऐसी स्थिति का निर्माण हो जाएगा जिसमें जम्मू और लेह लद्दाख की सदस्य संख्या कश्मीर घाटी के सदस्यों की संख्या से ज्यादा हो जाएगी और बहुमत उनके साथ होगा।
370 के हटाने के बाद भारत सरकार का कुछ और प्रश्नों पर ध्यान आकर्षित करना चाहिये:
1. सरकार को चाहिए कि भारत पाक सीमा के पास सेना के सेवानिवृत सैनिकों की भूमिआवंटन के साथ साथ अन्य संभव मदद कर बसाएं ताकि सीमा सुरक्षा कवच मज़बूत हो।
2. जम्मू कश्मीर में रोजगार पैदा करने वाले उद्योगों की स्थापना भी करनी होगी ताकि बेरोजगार नौजवानों को उम्मीद जग सके व रोजगार मिल सके।
3. कश्मीर घाटी की सुरक्षा के लिए जम्मू कश्मीर विशेष पुलिस बल की स्थापना करें जिसमें 40% जम्मू कश्मीर के नौजवान तथा शेष 60ः बकाया देश के नौजवान होंए साथ ही स्थानीय प्रशासन में देश की भागीदारी बढ़ाएं।
4. जम्मू -कश्मीर के नौजवानों को वैज्ञानिक और तकनीकी उच्च शिक्षा के लिए देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में प्रवेश दिलाएं और समुचित छात्रवृति भी दें।
5. जो हिंसा समर्थक हों उन्हें मुख्यधारा से जोड़े, उनकी सम्पत्तियों की जाँच करें, और शासकीय सुविधाओं का लाभ किसी भी हिंसा समर्थक या संविधान न मानने को नहीं दिया जाए। जम्मू कश्मीर के अलगाववाद समर्थक राजनेताओं की सुरक्षा वापस करें और उनकी और तथा ऐसे एनजीओज की जिन्हें कश्मीर में अलगाववाद पैदा करने या उसके समर्थन के नाम पर विदेशी फंन्डिग मिल रही हो उसे रोकें और जाँचकर कार्यवाही करे।
6. भाजपा और उनके अभिभावकों को यह समझना होगा कि वे इसे भारत की जीत के रूप में या कश्मीर व पाकिस्तान की पराजय के रूप में देखने की गलती न करें बल्कि इसे सहज और साधारण प्रिक्रिया जो भारत के एकीकरण का हिस्सा है के रूप में ही प्रस्तुत करें।
7. भले ही पाकिस्तान इसे अन्तर्राष्ट्रीय म़ंच पर उठाने का प्रयास करेगाए लेकिन अब इस सवाल पर या पुराने जनमतसंग्रह जैसे प्रश्नों पर उसे कोई सफलता मिलने की उम्मीद नहीं है। कश्मीर का प्रश्न उसका स्वरूप, लोकतांत्रिक ढांचा कैसा हो यह निर्णय भारत का आन्तरिक निर्णय है, इसमें पाकिस्तान या किसी अन्तर्राष्ट्रीय दखल को स्वीकार न करे।
8. धारा 370 जो राष्ट्रपति के आदेश से जुड़ी थी और राष्ट्रपति के आदेश से हट गई यह सरकार का एक साहसी निर्णय तो है परन्तु यह कोई बड़ा और निर्णायक निर्णय नहीं है। निर्णायक सफलता तो तभी होगी जब पाक अधिकृत कश्मीर जो भारत का अभिन्न हिस्सा है को वापस किया जाएगा और इससे ही कश्मीर समस्या का भारत पाक के बीच में कुछ ठोस हल निकल सकता है।
निसंदेह देश का आम जनमानस सरकार के साथ है और रहना भी चाहिए। मैं तो काँग्रेस, टीएमसी तथा उन सभी दलों से जो सरकार के धारा 370 हटाने का विरोध कर रही हैं, से अपील करूँगा की वे इस समय विरोध करने के बजाए सरकार के साथ खड़े हों। इससे वे जनता की नजरों में खलनायक नहीं बन पाएंगे साथ ही वे अपने राष्ट्रीय दायित्व का निर्वहन भी करेंगे।
आज की परिस्थितियों के लिए श्री नरेन्द्र मोदी को छोड़कर काँग्रेस, भाजपा और अन्य सभी सरकारें जिम्मेदार हैं, चाहे वे श्री अटल जी की रही हों, श्री वीपी सिंह या गुजराल आदि की रही हों।
मैं श्री नरेन्द्र मोदी और श्री अमित शाह की जोड़ी को इस साहसी निर्णय के लिए बधाई दूँगा और साथ ही सावधान भी करूँगा कि यह अन्त नहीं बल्कि प्रारम्भ है।
(रघु ठाकुर)
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