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कुम्भ के नाम पर इलाहाबाद का विनाश !
अर्द्ध कुम्भ से कुम्भ हुए कुम्भ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति 14/15 जनवरी, सोमवार/मंगलवार को पड़ रहा है और करोड़ों के प्रचार का सच इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने बेहद पीड़ा भरे मन से अपनी फेसबुक-वाल पर लिखा है, उसे जस का तस हम यहाँ पाठको के लिए दे रहे हैं, जिससे इन धर्म ध्वजाधारियों और बेशर्म भाजपा के संस्कारों से पाठक भी परिचित हो सकें।
सम्पादक
इलाहाबाद: हमारे इलाहाबाद को लेकर प्रदेश सरकार ने एक वर्ष के अंदर दो महत्वपूर्ण निर्णय लिये- पहला अर्द्धकुम्भ को कुम्भ घोषित कर दिया और इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया। प्रयागराज करना कोई बहुत बुरा नहीं है क्योंकि धार्मिक दृष्टिकोण से इसे प्रयागराज के नाम से जाना जाता था। अर्द्ध कुम्भ को कुम्भ नाम देने के बाद धड़ाधड़ केन्द्र एवं राज्य सरकार ने फंड भी जारी कर दिया। थोड़ा बहुत नहीं 3600 करोड़ केवल कुम्भ के मद में आया है और इसके अतिरिक्त सैकड़ों करोड़ अलग से आया। चार ऊपरगामी सेतु अलग बजट से बन रहे थे। यह सूचना पढ़कर ऐसा लगा अब तो इलाहाबाद वास्तव में प्रयागराज (राजा शहर/ विकसित शहर) हो जायेगा। धीरे-धीरे मंद गति से विकास की पंखुड़ीयां अपने कली से फूल बनने की लालसा में हिलोरे मार रही थी। फिर चालू हुआ विकास के साथ विनास का खेल। पुराने शहर से लेकर नये शहर तक पूरा शहर मलवों के ढेर, टूटी फूटी सड़के, बजबजाती नालियां, सड़कों पर बिखरे टूटे हुए मकानों का मलवा, यह सब देखकर ऐसा लगा मानों भूंकप आ गया हो। प्रकृति की अपनी लीला, मानसून का मौसम भी अपने सबाब पर आया। शहर की मुख्य सड़के मौसमी नदियों में और गलियों की सड़के नालों के रूप में दिखाई पड़ने लगी। इलाहाबाद की शांतप्रिय जनता ये सब मौन रहकर देखती रही। आये दिन सड़क की खूबसूरती बढ़ा रहे तीन-तीन, चार-चार फूट के गढढों में स्कूटर/ बाईकों का पलटना, कारों का गूं-गूं, गर्र गर्र की आवाज, खैर यह भी दौड़ निकला। खैर जनता इलाहाबाद के ख्याली विकास की ओट लगाये जनता सब समस्याओं से रूबरू होते हुए भी शांत रही। मौसम ने करवट बदली, विकास अपनी कछुआ की चाल से ऊफान पर आने लगा। शहर की मुख्य सड़कें 10 से 20 फीट तक चौड़ी हो गई। अभी एक वर्ष पूर्व बने सड़क विभाजक तोड़कर नये रूप में तैयार होने लगे। सड़के दोनों छोर पर नाली का निर्माण, चौराहों पर छोटे-छोटे पार्क बनने लगे। करते-करते अक्टूबर निकल गया। मुख्यमंत्री जी ने 15 नवम्बर तक का समय दिया, निकल गया, नगर विकास मंत्री, उपमुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव विकास कार्य की निगरानी करने लगे। धीरे-धीरे कुम्भ मेला आने में मात्र 15 दिन शेष बचा। साधू-संतो का डेरा जमने लगा, प्रधानमंत्री भी आये उद्घाटन करके चले गये। पर विकास कार्य पूरा होने की अंतिम तिथि दलित, जाट, मुसलमान बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी की पूंछ की तरह समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही है। विकास कार्यो की गति को देखकर तो ऐसा लगता है कि ये भी लोकसभा चुनाव के बाद अगली केन्द्र सरकार का इन्तजार कर रहे है। और अगर इसके पूर्व कहीं दो-तीन अच्छी बरसात हो गई तब तो विकास पूरा होने की बात ही खत्म हो जाएगी तब हमें लालटेन लेकर विकास को ही ढूढना पड़ेगा। कहां गया तू तूझे ढूढूँ मैं.......... इसके लिए स्थानीय प्रशासन पूरी तरह कमर कसकर तैयार बैठा है। बहु प्रचारित/प्रसारित अर्द्धकुम्भ/ कुम्भ के क्षेत्र की बात करे तो कागज पर पूरा मेला क्षेत्र सेक्टर, उपसेक्टर में बँटा हुआ है लेकिन धरातल पर देखे तो आप दिन में टार्च लेकर ढू़ढते रहो, पूछते रहो कोई बताने को तैयार नहीं है कि कौन सा विभाग कहां है, कौन सा सेक्टर किधर है, कौन सी सड़क किधर है?- पुलिस प्रशासन से लेकर विशेष रूप से कुंभ मेला के लिए गठित मेला प्राधिकरण तक को पता नहीं है। आम आदमी की तो बात ही छोड़िये। ऐसे कुम्भ के लिए हमारे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, विदेशी सैलानियों से लेकर दूसरे राज्यों के राज्यपालों/ मुख्यमंत्रियों को आमंत्रण देने के लिए पूरा उत्तर प्रदेश मंत्रालय निकला हुआ है। ऊपर से यह मेला जिला खूबसूरत दिखाया जा रहा है। उसका पचास प्रतिशत भी धरातल पर होता तो दिल बाग-बाग हो जाता। फिर इलाहाबाद जो कुछ दिनों से प्रयागराज हो गया है, लोगों को कहना पड़ेगा कि मुख्यमंत्री जी मुझे कम से कम मेरा पूराना इलाहाबाद ही लौटा दो, पूराना 12 वर्ष पर कुम्भ, 6 वर्ष पर अर्द्धकुम्भ ही ठीक था। 3600 करोड़ रुपये में लोकसभा चुनाव तो निपट ही जाऐगे आपके, अभी विधानसभा चुनाव बाकी है। तब तीन साल पर अर्द्ध कुम्भ लगवा लेना। मुझे इलाहाबादी अमरूद, इलाहाबादी तहजीब, इलाहाबादी विकास ही पसंद है। यह प्रयागराज का विकास, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ सिटी का ख्वाब नहीं देखना। साभार,
गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी,
पत्रकार, इलाहाबाद।
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