बैंकाक में डा0 प्रदीप कुमार अग्रवाल को सम्मानित कर किया ‘‘साहित्य का सृजन’’
लखनऊ: अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश द्वारा थाइलैण्ड, कम्बोडिया तथा वियतनाम में 20 से 30 दिसम्बर 2018 तक साहित्यिक यात्रा का आयोजन किया गया। इस साहित्यिक यात्रा के अन्तर्गत बैंकॉक (थाइलैण्ड) में सभागार बैकॉक पैलेस में दो दिवसीय अन्तराष्ट्रीय संगोष्ठी ‘‘हिन्दी की वैश्विक सामर्थ्य’’ का आयोजन किया गया, जिसमे देश-विदेश के प्रख्यात साहित्यकारों ने भाग लिया और साहित्य जगत में डा. प्रदीप कुमार अग्रवाल के द्वारा प्रदान की गई सेवाओं को भी लोगों के सामने इस साहित्य मंच पर विशेष रूप से प्रस्तुत किया गया।
इस अन्तराष्ट्रीय संगोष्ठी में बड़ी संख्या में लोगों ने पधार कर साहित्यकारों के वचनों को सुना और सराहा तथा कई महत्वपूर्ण पुस्तकों को लिखने वाले और साहित्य की सर्जना को सृजित कर अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर महिमा मंडित करने वाले डा. प्रदीप कुमार अग्रवाल को सक्रिय सहभागिता करने के लिये ‘‘हिन्दी की महत्वता’’ सम्मान से सम्मानित भी किया गया।
डा. अग्रवाल पूर्व विशेष सचिव, उत्तर प्रदेश के वरिष्ठतम पद से सेवा निवृत्त होकर हिंदी साहित्य सृजन में प्रवृत्त हैं। इसके अलावा संस्कृति, साहित्य, शिक्षा एवं ललित कलाओं के उन्नयन एवं मानवीय मूल्यों के संवर्धन के लिये वैश्विक स्तर पर निरन्तर समर्पित भाव से किये जा रहे सृजनात्मक कार्यो के लिये इस अन्तराष्ट्रीय साहित्य समारोह में राम किशन दास-शान्ति देवी स्मृति हिन्दी सेवा सम्मान के द्वारा डा0 प्रदीप अग्रवाल, लखनऊ उ0प्र0 निवासी को अलंकृत किया गया।
इस सम्मान समारोह में श्री राजकुमार अग्रवाल सरंक्षक के रूप में तथा डा0 विदेश्वरी अग्रवाल निवासी न्यूयार्क, अमेरिका मुख्य अतिथि के रूप में एवं डा0 महेश दिवाकर अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच के आयोजक के रूप में उपस्थिति थे।
इस साहित्य सम्मान समारोह में मुख्य वक्ता और साहित्यकार के रूप में बोलते हुये वरिष्ठ साहित्यकार डा0 प्रदीप कुमार अग्रवाल ने हिन्दी साहित्य जगत में भारत के साहित्यकारों द्वारा हिन्दी साहित्य में किये गये महत्वपूर्ण कार्यो का उल्लेख करते हुये विभिन्न चरणों में किये गये साहित्य सेवा को लोगां के सामने चरणबद्ध तरीके से रखा। डा0 प्रदीप कुमार अग्रवाल ने कहा कि हिन्दी साहित्य का इतिहास वस्तुतः वैदिक काल से आरम्भ होता है। इनका कहना है कि वैदिक भाषा ही हिन्दी है। यह इसका दुर्भाग्य रहा है कि समय-समय पर इसका नाम बदलता रहा है। डा0 अग्रवाल ने कहा की हिन्दी भाषा के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में प्रचलित धारायों पर विचार करने पर हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का सार दसवी शताब्दी के आसपास मिलता है।
डा0 प्रदीप अग्रवाल ने कहा कि हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में प्रस्तुत किये गये है। जिन पर विचार मथंन आवश्यक है। यह साहित्य की दृष्टि में प्रेरणादायी रचनायें, नीति उपदेशो, कविताओं के रूप में बड़े ही आकषर्क ढंग से मिलते हैं। डा0 प्रदीप बहुत ही आकर्षक ढंग से कहते हैं कि हिन्दी साहित्य का आदिकाल 1050 ईसवी तथा 1375 से भक्ति काल, 1700 से रीतिकाल और 1900 से आधुनिक काल का सृजन हुआ। डा0 प्रदीप कुमार अग्रवाल ने अपने सम्बोधन में जिस तरह गहन शोध और चिंतन का मनन कर लोगां को एक दिशा दे गये वह इस समारोह की अनुकरणीय धारा रही।
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