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मन की बात- 51वीं कड़ी में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ
नई-दिल्ली, 30 दिसम्बर को 51वीं कड़ी में प्रधानमंत्री ने अपने "मन की बात" में अपने सम्बोधन में कहा कि,
"मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार।
साल 2018 ख़त्म होने वाला है। हम 2019 में प्रवेश करने वाले हैं। स्वाभाविक रूप से ऐसे समय, बीते वर्ष की बातें चर्चा में होती हैं, तो आने वाले वर्ष के संकल्प की भी चर्चा सुनाई देती है। चाहे व्यक्ति का जीवन हो, समाज का जीवन हो, राष्ट्र का जीवन हो; हर किसी को पीछे मुड़कर के देखना भी होता है और आगे की तरफ जितना दूर तक देख सकें, देखने की कोशिश भी करनी होती है और तभी अनुभवों का लाभ भी मिलता है और नया करने का आत्मविश्वास भी पैदा होता है। हम ऐसा क्या करें जिससे अपने स्वयं के जीवन में बदलाव ला सकें और साथ-ही-साथ देश एवं समाज को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे सकें।
आप सबको 2019 की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।
आप सभी ने सोचा होगा कि 2018 को कैसे याद रखा जाए। 2018 को भारत एक देश के रूप में, अपनी एक सौ तीस करोड़ की जनता के सामर्थ्य के रूप में, कैसे याद रखेगा - यह याद करना भी महत्वपूर्ण है। हम सब को गौरव से भर देने वाला है।
2018 में, विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना 'आयुष्मान भारत' की शुरुआत हुई। देश के हर गाँव तक बिजली पहुँच गई। विश्व की गणमान्य संस्थाओं ने माना है कि भारत रिकॉर्ड गति के साथ, देश को ग़रीबी से मुक्ति दिला रहा है। देशवासियों के अडिग संकल्प से स्वच्छता कवरेज बढ़कर के 95% को पार करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
आजादी के बाद लाल-किले से पहली बार, आज़ाद हिन्द सरकार की 75वीं वर्षगाँठ पर तिरंगा फहराया गया। देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले, सरदार वल्लभभाई पटेल के सम्मान में विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा 'Statue of Unity' देश को मिली। दुनिया मेंं देश का नाम ऊँचा हुआ। देश को संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार 'Chapions Of the Earth' Award से सम्मानित किया गया। सौर ऊर्जा और Climate Change में भारत के प्रयासों को विश्व में स्थान मिला। भारत में, अन्तर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की पहली महासभा International Soalar Alliance का आयोजन हुआ। हमारे सामूहिक प्रयासों का ही नतीजा है कि हमारे देश की ease of doing business ranking में हमें अभूतपूर्व सुधार हुआ है। देश के self defence को मजबूती मिली है। इसी वर्ष हमारे देश ने सफलतापूर्वक Nuclear triad को पूरा किया है, यानीअब हम जल, थल और नभ- तीनों में परमाणुशक्ति संपन्न हो गए हैं। देश की बेटियों ने नाविका सागर परिक्रमा के माध्यम से पूरे विश्व का भ्रमण कर देश को गर्व से भर दिया है। वाराणसी में भारत के पहले जलमार्ग की शुरुआत हुई। इससे water ways के क्षेेेत्र में नयी क्रांति का सूत्रपात हुआ है। देश के सबसे लम्बे रेल-रोड पुल बोगीबील ब्रिज का लोकार्पण किया गया। सिक्किम के पहले और देश के 100वें एयरपोर्ट- पाक्योंग की शुरुआत हुई।
Under-19 क्रिकेट विश्व कप और Blind क्रिकेट विश्व कप में भारत ने जीत दर्ज करायी। इस बार, एशियन गेम्स में भारत ने बड़ी संख्या में मेडल जीते। Para Ashian Games में भी भारत ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। वैसे, यदि मैं हर भारतीय के पुरुषार्थ की हमारे सामूहिक प्रयासों की बाते करता रहूँ, तो हमारा 'मन की बात' इतनी देर चलेगा कि शायद 2019 ही आ जायेगा। यह सब 130 करोड़ देशवासियों के अथक प्रयासों से संभव हो सका है। मुझे उम्मीद है कि 2019 में भी भारत की उन्नति और प्रगति की यह यात्रा यूं ही जारी रहेगी और हमारा देश और मजबूती के साथ नयी ऊंचाइयों को छुयेगा।
मेरे प्यारे देशवासियो, इस दिसम्बर में हमने कुछ असाधारण देशवासियों को खो दिया। 19 दिसम्बर को चेन्नई के डॉक्टर जयाचंद्रन का निधन हो गया। डॉक्टर जयाचंद्रन को प्यार से लोग 'मक्कल मारुुुथुवर' कहते थे क्योंकि वे जनता के दिल में बसे थे। डॉक्टर जयाचंद्रन ग़रीबों को सस्ते-से-सस्ता इलाज उपलब्ध कराने के लिए जाने जाते थे। लोग बताते हैं कि वे मरीजों के इलाज के लिए हमेशा ही तत्पर रहते थे। अपने पास इलाज के लिए आने वाले बुजुर्ग मरीजों को वो आने-जाने का किराया तक दे देते थे। मैंने thebetterIndia.com website में समाज को प्रेरणा देने वाले उनके अनेक ऐसे कार्यों के बारे में पढ़ा है।
इसी तरह, 25 दिसम्बर को कर्नाटक की सुलागिट्टी नरसम्मा के निधन की जानकारी मिली। सुलागिट्टी नरसम्मा गर्भवती मातााओं-बहनों को प्रसव में मदद करने वाली सहायिका थीं। उन्होंने कर्नाटक में, विशेषकर वहाँ के दुर्गम इलाकों में हजारों माताओं-बहनों को अपनी सेवायें दीं। इस साल की शुरुआत में उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था। डॉ• जयाचंद्रन और सुलागिट्टी नरसम्मा जैसे कई प्रेरक व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने समाज में सब की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। जब हम Health Care की बातें कर रहे हैं, तो मैं यहाँ उत्तर प्रदेश के बिजनौर में डॉक्टरों के सामाजिक प्रयासों के बारे में भी चर्चा करना चाहूँगा। पिछले दिनों हमारी पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया कि शहर के कुछ युवा डॉक्टर कैंप लगाकर ग़रीबों का फ्री उपचार करतेहैं। यहाँ के Heart Lungs Critical centre की ओर से हर महीने ऐसे मेडिकल कैंप लगाये जाते हैं जहाँ कई तरह की बीमारियों की मुफ्त जाँच और इलाज की व्यवस्था होती है। आज, हर महीने सैकड़ों ग़रीब मरीज़ इस कैंप से लाभान्वित हो रहे हैं। निस्वार्थ भाव से सेवा में जुटे इन डाक्टर मित्रों का उत्साह सचमुच तारीफ़ के काबिल है। आज मैं यह बात बहुत ही गर्व के साथ बता रहा हूँ कि सामूहिक प्रयासों के चलते ही 'स्वच्छ भारत' मिशन एक सफल अभियान बन गया है। मुझे कुछ लोगों ने बताया कि कुछ दिनों पहले मध्यप्रदेश के जबलपुर में एक साथ तीन लाख से ज्यादा लोग सफाई अभियान में जुटे। स्वच्छता के इस महायज्ञ में नगर निगम, स्वयं सेवी संगठन, स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी, जबलपुर की जनता-जनार्दन, सभी लोगों ने बढ़-चढ़ करके भाग लिया।मैंने अभी thebetterindia.com का उल्लेख किया था। जहाँ मुझे डॉ• जयाचंद्रन के बारे में पढ़ने को मिला और जब मौका मिलता है तो मैं जरुर thebetterindia.com website पर जाकर के ऐसी प्रेरित चीजों को जानने का प्रयास करता रहता हूँ। मुझे ख़ुशी है कि आजकल ऐसी कई websites हैं, जो ऐसे विलक्षण लोगों के जीवन से प्रेरणा देने वाली कई कहानियों से हमें परिचित करा रही है। जैसे thepositiveindia.com समाज में positivety फ़ैलाने और समाज को ज्यादा संवेदनशील बनाने का काम कर रही है। इसी तरह yourstory.com उस पर young innovator और उद्यमियों की सफलता की कहानी को बखूबी बताया जाता है।इसी तरह sanskritbharati.in के माध्यम से आप घर बैठे सरल तरीके से संस्कृत भाषा सीख सकते हैं। क्या हम एक काम कर सकते हैं - ऐसी website के बारे में आपस में share करें। positivety को मिलकर viral करें। मुझे विश्वास है कि इसमें अधिक.से.अधिक लोग समाज में परिवर्तन लाने वाले हमारे नायकों के बारे में जान पाएँगे। negativety फैलाना काफी आसान होता है, लेकिन, हमारे समाज में, हमारे आस-पास बहुत कुछ अच्छे काम हो रहे हैं और ये सब 130 करोड़ भारतवासियों के सामूहिक प्रयासों से हो रहा है।
हर समाज में खेल-कूद का अपना महत्व होता है। जब खेल खेले जाते हैं तो देखने वालों का मन भी ऊर्जा से भर जाता है। खिलाड़ियों को नाम, पहचान, सम्मान बहुत सी चीज़ें हम अनुभव करते हैं। लेकिन, कभी-कभी इसके पीछे की बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जो खेल-विश्व से भी बहुत बढ़ करके होती है; बहुत बड़ी होती है। मैं कश्मीर की एक बेटी हनाया निसार के बारे में बताना चाहता हूँ जिसने कोरिया में Karate Championship में Gold medal जीता है। हनाया 12 साल की है और कश्मीर अनंतनाग में रहती है। हनाया ने मेहनत और लगन से Karate का अभ्यास किया, उसकी बारीकियों को जाना और स्वयं को साबित करके दिखाया। मैं सभी देशवासियों की ओर से उसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ। हनाया को ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ और आशीर्वाद। वैसे ही 16 साल की एक बेटी रजनी के बारे में media में बहुत चर्चा हुई है। आपने भी जरुर पढ़ा होगा। रजनी ने junior महिला मुक्केबाजी championship में गोल्ड मेडल जीता है। जैसे ही रजनी ने पदक जीता वह तुरंत पास के एक दूध के stall पर गई और एक गिलास दूध पिया। इसके बाद, रजनी ने अपने पदक को एक कपड़े में लपेटा और बैग में रख लिया। अब आप सोच रहे होंगे कि रजनी ने एक गिलास दूध क्यों पिया?- उसने ऐसा अपने पिता जसमेर सिंह जी के सम्मान में किया, जो पानीपत के एक stall पर लस्सी बेचते हैं। रजनी ने बताया कि उनके पिता ने उसे यहाँ तक पहुँचाने में बहुत त्याग किया है, बहुत कष्ट झेले हैं। जसमेर सिंह हर सुबह रजनी और उनके भाई-बहनों के उठने से पहले ही काम पर चले जाते थे। रजनी ने जब अपने पिता से boxing सीखने की इच्छा जताई तो पिता ने उसमें सभी संभव साधन जुटा कर उसका हौसला बढ़ाया। रजनी को मुक्केबाजी का अभ्यास पुराने gloves के साथ शुरू करना पड़ा क्योंकि उन दिनों उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इतनी सारी बाधाओं के बाद भी रजनी ने हिम्मत नहीं हारी और मुक्केबाजी सीखती रही। उसने सर्बियामें भी एक पदक जीता है। मैं रजनी को शुभकामनाएँ और आशीर्वाद देता हूँ और रजनी का साथ देने और उसका उत्साह बढ़ाने के लिए उसकेमाता-पिता जसमेर सिंह जी और उषारानी जी को भी बधाई देता हूँ। इसी महीने पुणे की एक 20 साल की बेटी वेदांगी कुलकर्णी साइकल से दुनिया का चक्कर लगाने वाली सबसे तेज एशियाई बन गयी हैं। वह 159 दिनों तक रोजाना लगभग 300 किलोमीटर साइकल चलाती थी। आप कल्पना कर सकते हैं- प्रतिदिन 300 किलोमीटर cycling ! साईकिल चलाने के प्रति उनका जुनून वाकई सराहनीय है। क्या इस तरह की achievement ऐसी सिद्धि के बारे में सुनकर हमें inspiration नहीं मिलती। खासकर के मेरे युवा मित्रों, जब ऐसी घटनाएँ सुनते हैं तब हम भी कठिनाइयों के बीच कुछ कर गुजरने की प्रेरणा पाते हैं। अगर संकल्प में सामर्थ्य है, हौसले बुलंद हैं तो रुकावटें खुद ही रुक जाती हैं। कठिनाइयाँ कभी रुकावट नही बन सकती हैं। अनेक ऐसे उदाहरण जब सुनते हैं तो हमें भी अपने जीवन में प्रतिपल एक नयी प्रेरणा मिलती है।
मेरे प्यारे देशवासियों, जनवरी में उमंग और उत्साह से भरे कई सारे त्योहार आने वाले हैं - जैसे लोहड़ी, पोंगल, मकर संक्रान्ति, उत्तरायण, माघ बिहू, माघीय इन पर्व त्योहारों के अवसर पर पूरे भारत में कहीं पारंपरिक नृत्यों का रंग दिखेगा, तो कहीं फसल तैयार होने की खुशियों में लोहड़ी जलाई जाएगी, कहीं पर आसमान में रंग-बिरंगी पतंगे उड़ती हुई दिखेंगी, तो कहीं मेले की छठा बिखरेगी, तो कहीं खेलों में होड़ लगेगी, तो कहीं एक-दूसरे को तिल गुड़ खिलाया जायेगा। लोग एक-दूसरे को कहेंगे "तिल गुड घ्या - आणि गोड़ - गोड़ बोला।" इन सभी त्योहारों के नाम भले ही अलग-अलग हैं लेकिन सब को मनाने की भावना एक है। ये उत्सव कहीं-न-कहीं फसल और खेती-बाड़ी से जुड़े हुए हैं, किसान से जुड़े हुए हैं, गाँव से जुड़े हुए हैं, खेत खलिहान से जुड़े हुए हैं। इसी दौरान सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है। इसी के बाद से दिन धीरे.धीरे बड़े होने लगते हैं और सर्दियों की फसलों की कटाई भी शुरू हो जाती है। हमारे अन्नदाता किसान भाई-बहनों को भी खूब-खूब शुभकामनाएं। "विविधता में एकता" - "एक भारतश्रेष्ठ भारत" की भावना की महक हमारे त्योहार अपने में समेटे हुए हैं। हम देख सकते हैं हमारे पर्व, त्योहार प्रकृति से कितनी निकटता से जुड़े हुए हैं। भारतीय संस्कृति में समाज और प्रकृति को अलग-अलग नहीं माना जाता। यहाँ व्यक्ति और समष्टि एक ही है। प्रकृति के साथ हमारे निकट संबंध का एक अच्छा उदाहरण है - त्योहारों पर आधारित कैलेंडर। इसमें वर्ष भर के पर्व, त्योहारों के साथ ही ग्रह नक्षत्रों का लेखा-जोखा भी होता है। इस पारंपरिक कैलेंडर से पता चलता है कि प्राकृतिक और खगोलीय घटनाओं के साथ हमारा संबंध कितना पुराना है। चन्द्रमा और सूर्य की गति पर आधारित, चन्द्र और सूर्य कैलेंडर के अनुसार पर्व और त्योहारों की तिथि निर्धारित होती है। ये इस पर निर्भर करता है कि कौन किस कैलेंडर को मानता है। कई क्षेत्रों में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार भी पर्व, त्योहार मनाये जाते हैं। गुड़ी पड़वा, चेटीचंड, उगादि ये सब जहाँ चन्द्र कैलेंडर के अनुसार मनाये जाते हैं, वहीँ तमिल पुथांडु, विषु, वैशाख, बैसाखी, पोइला बैसाख, बिहु - ये सभी पर्व सूर्य कैलेंडरके आधार पर मनाये जाते हैं। हमारे कई त्योहारों में नदियों और पानी को बचाने का भाव विशिष्ट रूप से समाहित है। छठ पर्व - नदियों, तालाबों में सूर्य की उपासना से जुड़ा हुआ है। मकर संक्रान्ति पर भी लाखों-करोड़ों लोग पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं। हमारे पर्व, त्योहार हमें सामाजिक मूल्यों की शिक्षा भी देते हैं। एक ओर जहाँ इनका पौराणिक महत्व है, वहीं हर त्योहार जीवन के पाठ - एक दूसरे के साथ भाई-चारे से रहने की प्रेरणा बड़ी सहजता से सिखा जाते हैं। मैं आप सभी को 2019 की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ और आने वाले त्योहारों का आप भरपूर आनन्द उठाएँ इसकी कामना करता हूँ। इन उत्सवों पर ली गई photos को सबके साथ share करें ताकि भारत की विविधता और भारतीय संस्कृति की सुन्दरता को हर कोई देख सके।
मेरे प्यारे देशवासियो, हमारी संस्कृति में ऐसी चीज़ों की भरमार है, जिन पर हम गर्व कर सकते हैं और पूरी दुनिया को अभिमान के साथ दिखा सकते हैं - और उनमें एक है कुंभ मेला। आपने कुंभ के बारे में बहुत कुछ सुना होगा। फ़िल्मों में भी उसकी भव्यता और विशालता के बारे में काफी कुछ देखा होगा और ये सच भी है। कुंभ का स्वरूप विराट होता है - जितना दिव्य उतना ही भव्य। देश और दुनिया भर के लोग आते हैं और कुंभ से जुड़ जाते हैं। कुंभ मेले में आस्था और श्रद्धा का जन.सागर उमड़ता है। एक साथ एक जगह पर देश-विदेश के लाखों करोड़ों लोग जुड़ते हैं। कुंभ की परम्परा हमारी महान सांस्कृतिक विरासत से पुष्पित और पल्लवित हुई है। इस बार 15 जनवरी से प्रयागराज में आयोजित होने जा रहा विश्व प्रसिद्ध कुंभ मेला जिसकी शायद आप सब भी बहुत ही उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे होंगे। कुंभ मेले के लिए अभी से संत-महात्माओं के पहुँचने का सिलसिला प्रारंभ भी हो चुका है। इसके वैश्विक महत्व का अंदाज़ा इसी से लग जाता है कि पिछले वर्ष UNESCO ने कुंभ मेले को Intangible Cultural Humanity की सूची में चिन्हित किया है। कुछ दिन पहले कई देशों के राजदूत ने कुंभ की तैयारियों को देखा। वहाँ पर एक साथ कई देशों के राष्ट्रध्वज फहराए गए। प्रयागराज में आयोजित हो रहे इस कुंभ के मेले में 150 से भी अधिक देशों के लोगों के आने की संभावना है। कुंभ की दिव्यता से भारत की भव्यता पूरी दुनिया में अपना रंग बिखेरेगी। कुंभ मेला self discovery का भी एक बड़ा माध्यम है, जहाँ आने वाले हर व्यक्ति को अलग.अलग अनुभूति होती है।सांसारिक चीज़ों को आध्यात्मिक नज़रिए से देखते.समझते हैं। खासकर युवाओं के लिए यह एक बहुत बड़ा Learning Experience हो सकता है। मैं स्वयं कुछ दिन पहले प्रयागराज गया था। मैंने देखा कि कुंभ की तैयारी ज़ोर-शोर से चल रही है। प्रयागराज के लोग भी कुंभ को लेकर काफी उत्साही हैं। वहाँ मैंने Inegerated Command and Control Centre का लोकार्पण किया। श्रद्धालुओं को इससे काफी सहायता मिलेगी। इस बार कुंभ में स्वच्छता पर भी काफी बल दिया जा रहा है। आयोजन में श्रद्धा के साथ-साथ सफाई भी रहेगी तो दूर-दूर तक इसका अच्छा संदेश पहुंचेगा। इस बार हर श्रद्धालु संगम में पवित्र स्नान के बाद अक्षयवट के पुण्य दर्शन भी कर सकेगा। लोगों की आस्था का प्रतीक यह अक्षयवट सैंकड़ों वर्षों से किले में बंद था, जिससे श्रद्धालु चाहकर भी इसके दर्शन नहीं कर पाते थे। अब अक्षयवट का द्वार सबके लिए खोल दिया गया है। मेरा आप सब से आग्रह है कि जब आप कुंभ जाएं तो कुंभ के अलग-अलग पहलू और तस्वीरें social media पर अवश्य Share करें ताकि अधिक-से-अधिक लोगों को कुंभ में जाने की प्रेरणा मिले।
अध्यात्मका ये कुंभ भारतीय दर्शन का महाकुंभ बने।
आस्था का ये कुंभ राष्ट्रीयता का भी महाकुंभ बने।
राष्ट्रीय एकता का भी महाकुंभ बने।
श्रद्धालुओं का ये कुंभ वैश्विक टूरिस्टों का भी महाकुंभ बने।
कलात्मकता का ये कुंभ, सृजन शक्तियों का भी महाकुंभ बने।
मेरे प्यारे देशवासियो, 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर हम देशवासियों के मन में बहुत ही उत्सुकता रहती है। उस दिन हम अपनी उस महान विभूतियों को याद करते हैं, जिन्होंने हमें हमारा संविधान दिया।
इस वर्ष हम पूज्य बापू का 150वाँ जयन्ती वर्ष मना रहे हैं। हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति श्री सिरिल रामाफोसा, इस साल गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में भारत पधार रहे हैं। पूज्य बापू और दक्षिण अफ्रीका का एक अटूट सम्बन्ध रहा है। यह दक्षिण अफ्रीका ही था, जहाँ से मोहन, "महात्मा" बन गए। दक्षिण अफ्रीका में ही महात्मा गांधी ने अपना पहला सत्याग्रह आरम्भ किया था और रंग-भेद के विरोध में डटकर खड़े हुए थे। उन्होंने फीनिक्स और टॉलस्टॉय फार्म्स की भी स्थापना की थी, जहाँ से पूरे विश्व में शान्ति और न्याय के लिए गूँज उठी थी। 2018 - नेल्सन मंडेला के जन्म शताब्दी वर्ष के रूप में भी मनाया जा रहा है। वे "मड़ीबा" के नाम से भी जाने जाते हैं। हम सब जानते हैं कि नेल्सन मंडेला पूरे विश्व में नस्लभेद के खिलाफ संघर्ष की एक मिसाल थे और मंडेला के प्रेरणास्रोत कौन थे?- उन्हें इतने वर्ष जेल में काटने की सहनशक्ति और प्रेरणा पूज्य बापू से ही तो मिली थी। मंडेला ने बापू के लिए कहा था "महात्मा हमारे इतिहास के अभिन्न अंग है क्योंकि यहीं पर उन्होंने सत्य के साथ अपना पहला प्रयोग किया था। यहीं पर उन्होंने न्याय के प्रति अपनी दृढ़ता का विलक्षण प्रदर्शन किया था। यहीं पर उन्होंने अपने सत्याग्रह का दर्शन और संघर्ष के तरीके विकसित किये। वे बापू को रोल मॉडल मानते थे। बापू और मंडेला दोनों, पूरे विश्व के लिए ना केवल प्रेरणा के स्रोत हैं, बल्कि उनके आदर्श हमें प्रेम और करुणा से भरे हुए समाज के निर्माण के लिए भी सदैव प्रोत्साहित करते हैं।
मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ दिन पहले गुजरात के नर्बदा के तट पर केवड़िया में DGP Conference हुई, जहाँ पर दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा "Statue of Unity" है, वहाँ देश के शीर्ष पुलिसकर्मियों के साथ सार्थक चर्चा हुई। देश और देशवासियों की सुरक्षा को और मजबूती देने के लिए किस तरह के कदम उठाये जाएँ, इस पर विस्तार से बात हुई। उसी दौरान मैंने राष्ट्रीय एकता के लिए "सरदार पटेल पुरस्कार" शुरू करने की भी घोषणा की। यह पुरस्कार उनको दिया जाएगा, जिन्होंने किसी भी रूप में राष्ट्रीय एकता के लिए अपना योगदान दिया हो। सरदार पटेल ने अपना पूरा जीवन देश की एकता के लिए समर्पित कर दिया।वे हमेशा भारत की अखंडता को अक्षुण्ण रखने में जुटे रहे। सरदार साहब मानते थे कि भारत की ताकत यहाँ की विविधता में ही निहित है। सरदार पटेल जी की उस भावना का सम्मान करते हुए एकता के इस पुरस्कार के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
मेरे प्यारे देशवासियो, 13 जनवरी गुरु गोबिंद सिंह जी की जयन्ती का पावन पर्व है। गुरुगोबिंद सिंह जी का जन्म पटना में हुआ। जीवन के अधिकांश समय तक उनकी कर्मभूमि उत्तर भारत रही और महाराष्ट्र के नांदेड़ में उन्होंने अपने प्राण त्यागे। जन्मभूमि पटना में, कर्मभूमि उत्तर भारत में और जीवन का अंतिम क्षण नांदेड़ में। एक तरह से कहा जाए तो पूरे भारतवर्ष को उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उनके जीवन-काल को देखें तो उसमें पूरे भारत की झलक मिलती है। अपने पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के शहीद होने के बाद गुरुगोबिंद सिंह जी ने 9 साल की अल्पायु में ही गुरु का पद प्राप्त किया। गुरु गोबिन्द सिंह जी को न्याय की लड़ाई लड़ने का साहस सिख गुरुओं से विरासत में मिला। वे शांत और सरल व्यक्तित्व के धनी थे, लेकिन जब-जब, ग़रीबों और कमजोरों की आवाज़ को दबाने का प्रयास किया गया, उनके साथ अन्याय किया गया, तब-तब गुरु गोबिन्द सिंह जी ने गरीबों और कमजोरों के लिए अपनी आवाज़ दृढ़ता के साथ बुलंद की और इसलिए कहते हैं-
"सवा लाख से एक लड़ाऊँ,
चिड़ियों सों मैं बाज तुड़ाऊँ,
तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ।"
क्रमशः
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