विशेष: संवाद स्वच्छता और संस्कृति पर बट्टा लगाते हुए फिल्मी गलियारों में पहुंची गली की गाली
स्वच्छता संंवाद और देश की संस्कृति को मिटाने की साजिश पर अनिल कुमार श्रीवास्तव, संवाददाता- स्वतंत्र भारत न्यूज़ डाट काम की विशेष प्रस्तुति:
नोएडा: स्वच्छता संवाद अभियान और संंस्कृति पर बट्टा लगाते हुए बिगड़े बोल और भद्दी गालियों का दौर चल निकला है। कुसंगतियो से निकलकर सामाजिक संचार माध्यमों के रास्ते होते हुए गलियों का सफर फिल्मी पर्दो पर खास धूम मचा रहा है।
इससे हम आने वाली पीढ़ियों को क्या सन्देश देना चाहते हैं?-
पहले बिगड़े युवाओं की चौपालों पर माता-बहनों की गालियों का नजारा देखने को मिलता था जिसे शिक्षित व शरीफ परिवार कुसंगति का नाम देकर अपने बच्चों को दूर रहने की सलाह देते थे।
बाद में इसी कुसंगति का विस्तार हो यह घरों में पहुंची, लोग मजाकिया रिश्तों में इस अभद्र भाषा का भरपूर इस्तेमाल करने लगे।
देखा-देखी का प्रसार इस कदर बढ़ा कि गाली युक्त भाषा सामान्य लगने लगी।
पिछले दशक से समाज मे फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर जैसी साइट्स ने पैर फैलाये तो गाली का असर उनपर भी साफ दिखाई दिया। माता-बहनों की गाली ने अपनी खास जगह बनाई, लोग इसे देकर जग जीतने जैसा अनुभव करते हैं।
अब यह सिलसिला टेलीविजन के छोटे और फिल्मी पर्दो पर देखने को मिल रहा है। बिग बास ऐसे सीरियल के किरदार तथा एक के बाद एक आ रही नामचीन हिंदी फिल्मों में प्रसिद्ध अभिनेता और अभिनेत्रियाँ गाली देते ऐसे नजर आ रहे हैं जैसे समाज को कोई बेहतरीन सन्देश दे रहे हो। मोहल्ला अस्सी, मिर्जापुर तथा इम्तियाज अली की फिल्म "जब वी मेट" में जब करीना कपूर को गाली देते हुए सुना और 'वीरे दी वेडिंग' का ट्रेलर देखा, तो यकीन मानिए, जैसे गाली पर से गन्दा कहे जाने वाले लड़कों का कॉपीराइट छिन गया हो।
वीरे दी वेडिंग ट्रेलर:
(साभार- You Tube & मल्टी मीडिया)
'बीरे दी वेडिंग' सरीखे फिल्में समाज मे युवाओं और युवतियों के ह्र्दय-पटल पर इस कदर गहरी छाप छोड़ रही है कि समाज दूषित संवाद की ओर अग्रसर होता जा रहा है।
देश के नौनिहाल भी इन गालियों से अछूते नही है इन फिल्मों का असर उनके मन पर ऐसे घर कर रहा है कि अपनी तोतली जुबान से अभिनेताओं द्वारा दिये गए गाली डायलॉग को बार बार दोहराने की भरपूर कोशिश करते हैं।
समस्या ये है कि सार्वजनिक पटल पर प्रसारित यह गालियों का दौर भारतीय समाज को क्या दिशा देना चाहता है।
कहीं इस प्रसारण में भारतीय समाज को दूषित करने तथा संस्कृति को मिटाने की योजना तो नही।
लगातार बढ़ रहे इस गालियों के दौर से जहाँ संवाद स्वच्छता तो खटाई में पड़ ही रही है, वही बच्चों में इसका विकास तेजी से होने के कारण भारतीय संस्कृति भी प्रभावित हो रही है।
आखिर फ़िल्म निर्माता इन गालियों के माध्यम से भारतीय जनमानस को क्या देना चाहते हैं।
फिल्मों को पास करने की दमखम रखने वाला सेंसर बोर्ड, फ़ेसबुक पर नजर रखने वाली टेक्निकल टीम इस विषय पर संजीदा क्यो नही?-
आये दिन कही न कही फ़ेसबुक टिप्पड़ी के रूप में गालियों के दीदार तो हो ही जाते थे लेकिन अब हिंदी फिल्मों के माध्यम से यह गाली धड़ल्ले से समाज मे परोसी जा रही है।
इसका असर यह हुआ निरक्षर समाज मे व्याप्त गालियों की संस्कृति को बढ़ावा मिला तो साक्षर समाज मे अबोध बालको में भी इसका असर साफ देखने को मिला।
कहीं कहीं बालक इन गालियों का मतलब भी नही जानते लेकिन पढ़कर, देखकर व सुनकर डायलॉग दोहराते हैं और परिजनों से उसका अर्थ जानने का प्रयास करते हैं, जिससे शिक्षित समाज के परिजन स्वयं को शर्मसार बोध करते हैं।
यह गालियां इतनी गन्दी हैं कि इनका जिक्र शाब्दिक तौर पर मैं स्वयं नही कर पा रहा हूँ, बस सन्नी पा जी की मोहल्ला अस्सी, लेटेस्ट मिर्जापुर और बीरे दे वेडिंंग के ट्रेेेलर को देखा साथ ही फ़ेसबुकिया टिप्पड़ियों के साथ सामाजिक हालातो को देखा तो बरबस कलम चल गई।
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