पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब - खेलोगे कूदोगे तो होंगे खराब
नोएडा से समाजसेवी और स्वतंत्र भारत न्यूज़ डाट काम के संपादक- अनिल कुमार श्रीवास्तव इस कहावत की व्याख्या कर रहे हैं।
आइए जानते हैं, इस कहावत पर एक प्रस्तुति:
सुनियोजित कहावत थी "पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब"
हर कहावत के पीछे कुछ न कुछ सार छिपा होता है। इसी प्रकार गुलामी के अंतिम दिनों में भारत मे प्रसारित कहावत ष्पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब...... प्रतिभाओ के विकास में सुनियोजित रोड़ा साबित हो रही थी। इसके बावजूद यह कहावत जनमानस के ह्र्दयपटल पर खास जगह बना गयी थी।
अंग्रेजो को खुश करने वालो ने अंग्रेजो के इशारे पर बाल विकास को बेधती सारगर्भित रचना से अंग्रेजो को प्रसन्न तो किया लेकिन उस दौरान प्रतिभाओ का विकास नही हुई।
अंग्रेजों को शासन करने के लिए शारीरिक श्रमिक के साथ साथ मुंशी सरीखे बौद्धिक श्रमिको की भी आवश्यकता थी।वह इसके अलावा भारतीय प्रतिभाओ को किसी क्षेत्र में न ही बढ़ते देखना चाहते थे न ही बच्चो को स्वस्थ्य देखना चाहते थे। इसी के चलते उन्होंने एक शिगूफा छोड़ दिया "खेलोगे कूदोगे तो होंगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब"। इस कहावत के पीछे उनकी मंशा थी उनके निर्धारित पाठ्यक्रमों में उलझ कर भारतीय प्रतिभाएं उनके काम लायक तैयार हो जाएं। इससे आगे वह कुछ न सोंच पाए जबकि इसके उलट अंग्रेजों की संतान विभिन्न खेलों में हिस्सा लेकर उनका नाम रोशन कर रही थी और अपने शारीरिक विकास के साथ साथ स्वास्थ्य लाभ ले रही थी। यह कहावत इतना प्रसिद्ध हुई कि घर घर पहुंच कर बच्चो को सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई का कीड़ा बनाने लगी। क्रीड़ा से कोई सरोकार न होने की वजह से न तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की कोई पहचान बन पाए न ही प्रतिभाओ को शारीरिक विकास हो पाए, इस षणयंत्र के चलते प्रचारित इस कहावत ने आजादी पूर्व भारत मे धूम मचा दी। फलस्वरूप अंग्रेजो को उनके अनुरूप काम करने वाले काफी मिले लेकिन खेलो के प्रति रुचि को प्रतिभाएं मारती रही।
कुल मिलाकर पढ़ाई के साथ साथ खेल भी आवश्यक हैं।पढ़ाई से बुद्धि का विकास होता है तो खेल से भी शरीर और बुद्धि का विकास रचनात्मक तरीके से होता है। रही बात भविष्य की। यदि लगन है तो बच्चा खेल क्षेत्र में भी अपना भविष्य संवार सकता है।
आज हमारे देश की प्रतिभाएं हर क्षेत्र में देश का नाम रोशन कर रही हैं उसमें खेल का क्षेत्र भी है। विभिन्न खेलो में भारतीय प्रतिभाओ का कोई जोड़ नही है। इतना ही नही मनोरंजन के क्षेत्र में भी भारतीय प्रतिभाएं किसी से कम नही। गीत, संगीत हो या अन्य कला का क्षेत्र हर क्षेत्र में भारत का डंका बज रहा है।
यदि भारतीय प्रतिभाएं हर क्षेत्र में पूरी लगन से आगे बढ़ती रही तो वह दिन दूर नही जब भारत विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होगा।
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