
लहू बोलता भी है: जंगे आजादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलाना गलाम मोहम्मद
आइए जानते हैं, जंंगे आजादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलाना गुलाम मोहम्मद को...
मौलाना गुलाम मोहम्मद का पूरा नाम अब्दुल सिराज गुलाम मोहम्मद दीनपुरी था। आप मौजा दीनपुर रियासत भावपुर के रहनेवाले थे।
आपको शेखु-उल-हिन्द ने दीनपुर में तहरीक की ज़िम्मेदारी सौंपी थी, जिसे आपने अपनी कोशिशों से इलाके के लोगों को जोड़कर काफ़ी मज़बूत किया।
दीनपुर तब आज़ादी की जंग की तहरीकों का मरक़ज़ बन गया था और इस मरकज़ के सदर आप खुद थे। आपको तहरीक की तरकीबें और हिदायतें मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी साहब के ज़रिये मिला करती थीं।
दीनपुर में इंकलाब की ज़बरदस्त तैयारी हो चुकी थी। बस शेखु-उल-हिन्द या उबैदुल्लाह सिंधी साहब की तरफ से इजाज़त का इंतज़ार था कि किसी ने अंग्रेज़ी हुकूमत को मुखबिरी कर दी। नतीजतन दूसरे दिन दीनपुर के पास के रेलवे.स्टेशन खानपुर पर अंग्रेज़ फौजियों का एक बड़ा दस्ता पूरी तैयारी के साथ ट्रेन से उतरा, जिसकी खबर स्टेशन से एक आदमी ने जाकर मौलाना साहब को दी। मौलाना ने रात में ही मरकज़ से सारे सामान और असलहे महफूज़ जगहों पर हटवा दिया। सुबह जब फौज ने दीनपुर पहुंचकर मरकज़ की तलाशी ली तो उसे कोई भी गैरकानूनी चीज़ नहीं मिली। एक रेशमी तहरीर बच्चों के खेलने वाले डिब्बे में रखी मिली थी जिसे अंग्रेज़ अफसर ने हाथों में लिया, लेकिन वापस फेंक दिया। फौज के आने और मौलाना के घर घेरने की खबर इलाके में फैल गयी थी, सो काफी अवाम इकट्ठा होने लगी थी। भीड़ को देखकर अंग्रेज़ अफ़सरों की हिम्मत मौलाना को गिरफ्तार करने की नहीं पड़ी। बाद में एक अफ़सर ने मौलाना से कहा कि आप मेरे बड़े अफ़सर जो खानपुर में है। उनसे मिलकर बात कर लें। मौलाना तैयार हो गये। अंग्रेज़ उन्हें लेकर खानपुर आये, जहां धोखे से उन्हें गिरफ्तार कर लिया और फौरन ही फौज ने उन्हें लेकर पंजाब के जालंधर जेल में डाल दिया।
मौलाना की गिरफ्तारी की खबर जब दीनपुर पहुंची तो अवाम में बहुत गुस्सा था। हज़ारो.हज़ार लोगों ने घरों से निकलकर सरकारी दफ्तरों को घेर लिया। अंग्रेज़ अफ़सरों को अवामी बग़ावत का खतरा दिखायी देने लगाय मजबूरी में कुछ दिनों बाद ही आपको जेल से रिहा कर दिया गया।
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