लहू बोलता भी है: जंगे आजादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलाना अजीज गुल पेशावरी
आइए मिलते हैं,
जंगे आजादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- "मौलाना अज़ीज़ गुल पेशावरी" से_______
मौलाना अज़ीज़ गुल पेशावरी कस्बा ज़्यारत, काका साहब (पेशावर) के रहने वाले थे। आपने देवबंद के दारुल-उलूम से दीनी तालीम हासिल की और शेखु-उल-हिन्द के ख़ास शागिर्दों में से थे।
आपको आज़ादी की तहरीक में बहुत ज़िम्मेदारी या ख़तरे का काम सौंपा जाता था, जिसे आप अपनी हिम्मत और ज़हानत से बखूबी पूरा किया करते थे।
रेशमी रूमाल में भी आपने बहुत अहम और ख़तरनाक ख़िदमात को अंजाम दिया। शेख-उल-हिन्द को सरहदी इलाकों में तहरीक के सिलसिले में जो खुफिया मालूमात या खबरें मिलती थीं, उन्हें वह उसे अज़ीज़ गुल साहब के ज़रिये ही भिजवाया करते थे।
आपके पीछे सी• आई• डी• लगी हुई थी, फिर भी आप जोखिम उठाकर हुलिया और वेश बदलकर अपना काम अंजाम देते रहे।
शेख-उल-हिन्द जब मक्का में अंग्रेज़ी हुकूमत से बचने के लिए अन्डरग्राउण्ड हो गये, तब अफ़सरान ने आपको पकड़ा और धमकी दी कि अगर दो घण्टे में शेख-उल-हिन्द का पता नहीं बताया तो गोली मार दी जायेगी। मगर आप अपनी बात पर अड़े रहे। मजबूर होकर अंग्रेज़ अफ़सर को आपको छोड़ना पड़ा।
आप हर मुसीबत में शेख-उल-हिन्द के साथ ही रहे। यहां तक कि मालटा के क़ैदखाने में भी बिना खुद सज़ा पाये। आप उनके साथ रहे और उनकी ख़िदमत करते रहे।
शेख-उल-हिन्द की रिहाई के बाद आप उनके हमराह हिन्दुस्तान आये और उन्हीं के मकान पर रहकर मदरसे को ख़िदमात देते रहे।
आपने एक अंग्रेज़ औरत को इस्लाम में शामिल कराया और उसी से शादी भी कर ली। उसके बाद अपने अपनी बीवी-बच्चों के साथ पेशावर चले गये।
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