
लहू बोलता भी है: जंग ए आजादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- अब्दुल्लाह
आईये, जानते हैैं
जंग ए आजादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- अब्दुल्लाह को________
अब्दुल्लाह
अब्दुल्लाह गांव राजध, कस्बा चैरीचैरा (गोरखपुर) के रहनेवाले थे आप ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं थे।
आपने शुरू में रोज़गार के वास्ते अहमदाबाद में नौकरी की। उन्हीं दिनों वहां कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था जिसमें आप लोगों को खाना खिलाने की ड्यूटी पर वालेन्टियर बनाये गये जहां आपको आज़ादी की लड़ाई के बारे में मालूमात हुई।
आपकी दिलचस्पी आज़ादी के आंदोलन में बढ़ती गयी और अधिवेशन के आख़िरी दिन आप पूरी तरह मुल्क की आज़ादी का ख्वाब देखने लगे।
कुछ दिनों बाद आप नौकरी छोड़कर गोरखपुर वापस आ गये। उन दिनों गोरखपुर में नॉन-कोआपरेटिव मूवमेंट के सिलसिले में गांधीजी आनेवाले थे।
अब्दुल्लाह साहब अपने दोस्तों के साथ वालेन्टियर बनाने लगे। अपने ही गांव के लाल मोहम्मद और नज़र अली को भी आपने वालेन्टियर बनाया और गांधीजी के प्रोग्राम में शरीक हुए। उसके बाद जब चैरी चैरा थाने को घेराव का प्रोग्राम बना तो लाल मोहम्मद और नज़र अली को साथ लेकर अब्दुल्लाह साहब चैरीचैरा पहुंचे जहां मुजाहेदीन ने थाने को आग लगा दी, जिसमें कई अंग्रेज़ जलकर मर गये। औरों के साथ आप भी गिरफ़्तार कर लिये गये; मुक़दमा चला और हाईकोर्ट ने फांसी की सज़ा सुना दी।
2 जुलाई सन् 1922 को आप फांसी पर लटका दिये गये।
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