कांग्रेस चुनाव घोषणापत्र और भा.ज.पा. का भाषण पत्र: रघु ठाकुर
नई-दिल्ली: प्रख्यात समाजवादी चिंतक व विचारक तथा लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- रघु ठाकुर द्वारा कांग्रेस चुनाव घोषणापत्र और भा.ज.पा. का भाषण पत्र" शिर्षक से प्रसारित लेख उन्ही के शब्दों में प्रस्ततु है।
10 नबम्बर 2018 को कांग्रेस पार्टी ने म.प्र. विधानसभा चुनाव के लिये वचनपत्र के नाम से घोषणा पत्र जारी किया जिसमें प्रदेश के 50 महकमों की अलग-अलग घोषणायें निहित है।
102 पेज का यह वचन पत्र जिसके मुख्य बिन्दुओं की संख्या ही 75 है अपने आप में एक लघु पुस्तिका के समान है।
ठीक इसके एक दिन पूर्व 9 नवम्बर 2018 को कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गाॅधी ने रायपुर में छ• ग• विधानसभा चुनाव के लिये एक लाख लोगो की राय लेकर घोषणा पत्र जारी किया था जिसे जन घोषणा पत्र का नाम दिया गया। भाजपा ने तो अभी तक कोई घोषणा पत्र जारी नही किया है बल्कि 11-12 नवम्बर को भाजपा के प्रदेष अध्यक्ष श्री राकेष सिंह ने अखबार वालो को बताया कि उन्होंने जनता से सुझाव मांगे थे और लगभग 23 लाख सुझाव उन्हें प्राप्त हुये है। अब इतने सुझाव में से कुछ बिन्दुओं को चयन करना भी एक श्रम साध्य कार्य है और विशेषतः तब जब मतदान के लिये मुश्किल से 15 दिन का समय बचा है। अगर भाजपा जनता के सुझाव लेकर उनके आधार पर कोई घोषणा पत्र तैयार करना चाहती थी तो उसे यह काम कम से कम 2 माह पूर्व करना था। परन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा या तो बगैर किसी घोषणा पत्र के या फिर बीच चुनाव में कभी घोषणा पत्र जारी करने की औपचारिक खाना-पूर्ति करेगी। अभी तक भाजपा का चुनाव प्रचार केवल मुख्यमंत्री- शिवराज सिंह चैहान के इर्द-गिर्द घूम रहा है तथा पिछले वर्षो मेें उनकी सरकार ने उनके अनुसार जो कल्याणकारी कार्य किये है उन्ही का गुणगान भाजपा का घोषणा पत्र है। इसके आगे जाने की उन्हें कोई आवश्यकता महसूस नही होती है। घोषणा पत्र की औपचारिकता से विलबिंत करने का भाजपा का कारण यह भी हो सकता है कि पिछले तीन माह में उन्होंने जो मॅागोगे वही मिलेगा की तर्ज पर 15 हजार से अधिक घोषणायें की है। इन घोषणाओं का विधिवत कोई रिकार्ड उनके या सरकार के पास रखा भी गया है या नही कहना संभव नही है। वैसे तो अगर भाजपा चाहे तो वर्ष 2018-2023 के विधानसभा चुनाव के लिये एक लाइन का घोषणा पत्र जारी कर सकती है ’’कि मुख्यमंत्री श्री शिवराजर सिंह द्वारा की गई वर्ष 2013 से 18 की अवधि की घोषणाओं को पूरा करने का प्रयास किया जायेगा’’, क्योंकि कोई भी सरकार आये उसे कम से कम आगामी 10 वर्ष का वजट इन घोषित कामों को पूरा कराने मंे लगाना होगा और तब तक कोई नया काम हाथ में लेना षायद ही संभव हो। हांलाकि घोषणा पत्रो या वचन पत्रो के प्रति जनता पहले भी उदासीन रही है, और अभी भी है। कटु सत्य तो यह है कि 60 के दशक के बाद दलो के घोषणा पत्र न केवल जनता में अविश्ववसनीय बन चुके है बल्कि उन्हें जारी करने वाले दल और उनके नेता भी शायद ही उसे कभी पढ़ते हों। व्यवहार रुप में होता यह है कि घोषणा पत्र रखे रहते है और जो व्यक्ति सत्ता के केन्द्र में याने प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बन जाते है उसकी इच्छा या फौरी जरुरत ही घोषणा पत्र बन जाती है।
घोषणा पत्रो के प्रभाव खत्म होने से अब दल अपनी कार्यक्रम के प्रति प्रतिबद्धता को विष्वसनीय बनाने के लिये नये-नये प्रकार के शब्द, जुमले गढ़ रहे है और भॅाति-भाॅति प्रकार के तरीके अपना रहे है।
आजकल कुछ दलो ने शपथ पत्र और कुछ एक ने उसे स्टाम्प पर नोटरी से प्रमाणित कराकर जारी करना षुरु किया है ताकि षायद जनता विष्वास कर सके?
जिस प्रकार दवाओं की ताकत की मात्रा प्रभावहीन हो जाने पर ज्यादा बढ़ाना होती है जैसे 50 एम.जी की दवा जब काम करना बंद कर देती है तो 100 एम.जी की दवा देते है उसी प्रकार राजनैतिक दल घोषणा पत्र, फिर वचन पत्र, फिर शपथ-पत्र, स्टाम्प, नोटरी शपथ पत्र याने एम.जी बढ़ा रहे है।
वस्तु स्थिति यह है कि दलो और नेताओं की साख इतनी गिर चुकी है कि उन्हें कसम पर कसम खाना पड़ती है और तब भी मतदाता उनका विष्वास नही करते। हांलाकि मतदाता भी अपने भविष्य के प्रति सजग और ईमानदार नही है। अपवाद छोड़कर वह भी अपने चुनाव का आधार रिस्ते, नाते, जाति-धर्म, पैसा, सुविधा को बनाता है जिस वोट का इस्तेमाल उसकी और समाज की स्थिति को बदलने के लिये होना चाहिये उसका इस्तेमाल वह गिरोह बंदी, नातेदारी, निजी स्वार्थ और लालच के आधार पर करता है।
कुछ अर्थाे में तो इन हालात के लिये मैं दलो और नेताओं से ज्यादा मतदाताओं को जबावदार मानता हॅू। क्योंकि सबसे बड़ी जिम्मेवारी और सबसे बड़ी कीमत उन्हीें को चुकानी पड़ेेगी।
कांग्रेस पार्टी ने अपने छ.ग.के जन घोषणा पत्र और म.प्र. के वचन पत्र में कई बाते लगभग समअर्थी है।
किसानो की कर्ज माफी को दो लाख रुपये की सीमा तक किया जायेगा इसमें सहकारी बैंकों, राष्ट्रीयकृत बैको का चालू एंव कालातीत कर्ज शामिल होगा।
छ.ग. में तो उन्होंने सरकार गठन के 10 दिन के अंदर ही कर्ज माफी करने की घोषणा की है। यद्यपि सरकार के तंत्र को जानने और समझने वाला हर व्यक्ति जानता है कि नीति की घोषणा तो 10 दिन क्या 10 मिनिट में हो सकती है परन्तु उसके क्रियावन में 10 दिन का समय बहुत ही कम लगता है। अपने इस घोषणा के आर्थिक पहलुओं पर कोई तकनीकी अध्ययन कांग्रेस पार्टी ने म.प्र., छ.ग. में कराया है यह अभी तक आम जानकारी में नही है।
अगर कर्ज माफी के समान राशि राज्य सरकार को बैंको को देना हो तो इस मद पर कितना पैसा खर्च होगा इसका कोई आंकलन कही दर्ज नही है।
आजकल किसानो की आत्म हत्याये सरकारी से ज्यादा निजी साहूकारो के कर्ज की वजह से हो रही है।
चूॅकि बैको ने क्रेडिट कार्ड में कर्ज लेना चुकाना काफी आसान कर दिया है। बैक अधिकारी समय पूर्व अपवाद छोड़कर कर्ज की किस्त जमा करा लेते है और एक-दो दिन बाद पुनः दे देते है। सरकारो ने ब्याज की दरो मेंकुछ अर्थाे में तो इन हालात के लिये मैैं दलो और नेताओं से ज्यादा मतदाताओं को जबावदार मानता हॅू। क्योंकि सबसे बड़ी जिम्मेवारी और सबसे बड़ी कीमत उन्हीें को चुकान पड़ेेगी।
कांग्रेस पार्टी ने अपने छ.ग.के जन घोषणा पत्र और म.प्र. के वचन पत्र में कई बाते लगभग समअर्थी है।
किसानो की कर्ज माफी को दो लाख रुपये की सीमा तक किया जायेगा इसमें सहकारी बैंकों, राष्ट्रीयकृत बैको का चालू एंव कालातीत कर्ज षामिल होगा।
छ.ग. में तो उन्होंने सरकार गठन के 10 दिन के अंदर ही कर्ज माफी करने की घोषणा की है। यद्यपि सरकार के तंत्र को जानने और समझने वाला हर व्यक्ति जानता है कि नीति की घोषणा तो 10 दिन क्या 10 मिनिट में हो सकती है परन्तु उसके क्रियावन में 10 दिन का समय बहुत ही कम लगता है। अपने इस घोषणा के आर्थिक पहलुओं पर कोई तकनीकी अध्ययन कांग्रेस पार्टी ने म.प्र., छ.ग. में कराया है यह अभी तक आम जानकारी में नही है।
अगर कर्ज माफी के समान राषि राज्य सरकार को बैंको को देना हो तो इस मद पर कितना पैसा खर्च होगा इसका कोई आंकलन कही दर्ज नही है।
आजकल किसानो की आत्म हत्याये सरकारी से ज्यादा निजी साहूकारो के कर्ज की वजह से हो रही है। भी काफी कमी की है और यहाॅ तक की एक से पाॅच प्रतिषत की ब्याज दर पर कर्ज देना षुरु किया है। परन्तु निजी साहूकारी के कर्ज की ब्याज दरे मामूली तौर पर दो से चार गुना होती है इन्हें नही चुकाने पर साहूकार जमीने अपने नाम करा लेते है। गरीबो को अपमानित करते है मारपीट करते है और किसान को मरने के लिये प्रेरित करते है। इन निजी साहूकारो पर लगाम लगाने की कोई घोषणा न कांग्रेस के घोषणा पत्र में है न भाजपा के भाषण रुपी घोषणा पत्र में।
कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में विधान परिषद के गठन का बचन दिया है यह कोई पहली बार नही है।
अगर कांग्रेस नेता उनके 1993-1998 के घोषणा पत्र को देखे तो उनमें भी कांग्रेस ने यह बचन दिया था। दरअसल विधान परिषद असंतुष्ट और बागियो को दिये जाने वाला झुनझुना है ताकि वे भीतरघात व बगावत न करे। परन्तु प्रदेष के मतदाताओं को सोचना होगा कि इस विधानपरिषद का अर्थ जनता के लिये क्या होगा? इसका वास्तविक अर्थ एक और विधानसभा जैसा गठन होगा जिसके सदस्यो के ऊपर वेतन भत्ते मकान टिकिट आदि पर करोड़ो रुपया साल में खर्च होगा। और इसका समाज के लिये क्या इस्तेमाल है? वैसे भी केन्द्र में राज्य सभा है। परन्तु क्या राज्य सभा समाज और देष के लिये कोई उल्लेखनीय योगदान दे पा रही है?
सच्चाई तो यह है कि राज्य सभा हारे या टिकिट वंचित नेताओं की आश्रय स्थली बन गई है। और लगभग उसी का छोटा रुप यह विधान परिषद है। अपनी सत्ता के लिये, अपने भीतरघात बचाने के लिये सैकड़ो करोड़ो रुपये वरवाद करना क्या जन विरोधी नही है?
कांग्रेस पार्टी ने नोट बंदी के असर को अपने घोषणा पत्रो में तो नही परन्तु अपने भाषणो में मुख्य लक्ष्य में रखा है।
मान लो थोड़ी देर के लिये यह सही है मान भी लिया जाये तो अब इसका प्रतिकार कांग्रेस कैसे करेगी? इस पर वह चुप है। क्या नोटबंदी की पूर्व स्थिति को बहाल किया जा सकता है? इन गड़े मुर्दो से कोई बदलाव संभव नही है। जिस प्रकार भाजपा केन्द्र से लेकर राज्य तक घोटालो भ्रष्टाचारो की जाॅच की चर्चा करती रही और समय कट गया वही स्थिति कांग्रेस की होगी। व्यापंम घोटलो की कांग्रेस ने पिछले 7-8 सालो में कम से कम मीडिया मेंं बहुत चर्चा की परन्तु व्यापंम घोटाले के उनके अनुसार एक बड़े किरदार संजय सिंह मसानी थे। जिसके ऊपर घोटाले का 500 करोड़ रुपया फिल्मी दुनिया में लगाने का आरोप कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने लगाया था। अब मुख्यमंत्री के साले श्री मसानी कांग्रेस के बारा सिवनी से प्रत्याशी है। श्री धर्मेन्द्र चैहान जैसे कई और व्यापंम घोटाले के आरोपित किरदारो को कांग्रेस ने अपना लिया है। क्या वह वैसी ही रणनीति है जिसे 2003 में भाजपा ने अपनाया था और मि. बंटाधार के नाम से आरोपित श्री दिग्विजय के छोटे भाई श्री लक्ष्मण सिंह को 2004 में ही भाजपा में षामिल कर भाजपा का लोकसभा प्रत्याषी बना दिया था। लगता है कि, एहसानो का अदला-बदला चल रहा है और षायद इसलिये कांग्रेस ने व्यापंम घोटाले को दबाने के लिये व्यापंम को समाप्त कर नया नाम देने की घोषणा की है जिस प्रकार श्री मोदी ने योजना आयोग का नाम बदल कर नीति आयोग कर दिया उसी प्रकार अब कांग्रेस करने जा रही है कि व्यापंम का नाम बदला जायेगा। नाम बदलने से न पहले कुछ बदला है ना अब बदलेगा।
भाजपा के हिन्दुत्व ध्रुवीकरण से भयभीत कांग्रेस ने भाजपा की नकल करना षुरु कर दिया है। भाजपा भी राम पथ कहती है और कांग्रेस भी रामपथ गमन निर्माण का वादा करती है। भाजपा ने आंनद विभाग का गठन किया था जिसका आधार व्यक्तियो को भौतिक सुविधाओ की माॅग से हटाकर आंनद का मानसिक ऐहसास कराना था। अब कांग्रेस पार्टी नये आध्यात्मिक विभाग की घोषणा कर रही है। यानी भाजपा के ही काम को आगे ले जा रही है।
हो सकता है कि, आध्यात्मिक व्यक्तियो के नामो में बदलाव हो जाये भाजपा के आध्यात्मिक विचारक सदगुरु जग्गी वासुदेव थे तो कांग्रेस के श्री षंकराचार्य जी या कोई और हो सकते है। भाजपा व कांग्रेस के दृष्टि पत्र या वचनपत्र में एक महत्वपूर्ण समानता यह है कि दोनो ही शराब बंदी पर मौन है।
श्री दिग्विजय सिंह के उस सत्य स्वीकारो की तारीफ की जाना चाहिये जिसे 1996-97 में उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री खुले आम कहा था। कि ’’केडिया (छ.ग. के शराब उद्योगपति) के तेल से सभी के (कांग्रेस व भाजपा) दिये जलते है।’’
कुल मिला कर भाजपा ने सरकार में आने के बाद भाजपा का कांग्रेसी करण किया था और अब कांग्रेस सरकार में आने के लिये कांग्रेस का भाजपाई करण कर रही है।
(रघु ठाकुर)
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