
लहू बोलता भी है: जंगे आज़ादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- शेख मोहम्मद अफजल
आइये, जानते हैं
जंगे आज़ादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- शेख मोहम्मद अफ़ज़ल को_____
शेख मोहम्मद अफ़ज़ल के वालिद का नाम शेख मोहम्मद रमज़ान अली था।
आप अमरोहा, मुरादाबाद (उ• प्रदेश) के रहनेवाले और सैय्यद गुलज़ार अली अमरोहवी के साथियों में से थे। 19 मई सन् 1857 को जब मुरादाबाद में हंगामा हुआ और जेल तोड़कर क़ैदियों को रिहा कराया गया, तब आप दोनों लोगों ने क़ैदियों को इकट्ठा करके साथ लेकर अमरोहा चले गये जहां पहले से ही मुजाहेदीन जमा थे। सबको साथ लेकर और तैयारी करके आपने अमरोहा के सरकारी इमारतों और थानों पर कब्ज़ा कर लिया। फिर फ़ौज की भर्ती भी शुरू कर दी गयी। तक़रीबन एक साल तक शेख मोहम्मद अफ़ज़ल, सैय्यद गुलज़ार अली और दरवेश खान की टीम ने अमरोहा पर हुकूमत की।
22 मई सन् 1858 को नये स्पेशल कमिश्नर मिस्टोल्सन ने मुरादाबाद का चार्ज सम्भाला। चार्ज सम्भालने के बाद उसने सबसे पहले पूरी तैयारी से अमरोहा कूच किया।
ज़बरदस्त लड़ाई के बाद अंग्रेज़ों ने अमरोहा पर वापस क़ब्जा पाया और शेख मोहम्मद अफ़जल को मौके पर गिरफ्तार किया।
सैय्यद गुलज़ार अली और दरवेश खान मौके पर मौजूद नहीं थे। वे पहले ही दिल्ली चले गये थे। शेख मोहम्मद अफ़ज़ल पर बग़ावत का सरगना होने का जुर्म आयद कर कालापानी की सज़ा दी गयी और उन्हें अण्डमान भेज दिया गया।
कुछ सालों बाद अण्डमान में ही आपका इंतक़ाल हुआ।
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