लहू बोलता भी है: जंगे आज़ादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- पीर मोहम्मद
आइये जानते हैं, जंंगे आज़ादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार पीर मोहम्मद से______
पीर मोहम्मद
पीर मोहम्मद के बिरुद्ध साज़िशो-बग़ावत के मुक़दमात का जो सिलसिला अम्बाला से शुरू हुआ था, उनका आख़िरी मुक़दमा सन् 1871 में अज़ीमाबाद में चलाया गया।
इस मुक़दमे में सात मुल्ज़िमान थे जिनमें पीर मोहम्मद, अमीर खान, हशमत खान, मौलवी मुबारक अली, मौलवी तबारक अली, हाजी दीने-मोहम्मद और अमीनउद्दीन। उन लोगों पर साज़िशो-बग़ावत का इल्ज़ाम था। उनमें से पांच अफ़राद पर इआनत जुर्म का इल्ज़ाम था।
मुक़दमे की शुरुआती सुनवाई ज्वाइंट मजिस्ट्रेट मिस्टर बारबोर मुंसरिम की अदालत में मार्च सन् 1871 में शुरू हुई। यह मुक़दमा 27 मार्च को सेशन-कोर्ट के सुपुर्द हुआ और 1 मई से इसकी समाअत सेंशन-जज मिस्टर प्रिसेप ने शुरू की।
हुकूमत की तरफ से 136 गवाह थे, लेकिन उनमें से कुल 113 ही पेश हुए। हशमत खान और अमीर खान मेवात के रहनेवाले थे। उनका कलकत्ता में चमड़े का कारोबार था।
अम्बाला साज़िश केस के वक़्त अमीर खान भी गिरफ़्त में आये और आपकी तलाशी की गयी थी। मुजाहेदीन की एक हुण्डी उनके यहां से बरामद हुई थी, इसलिए आपको गिरफ़्तार किया गया।
4 जुलाई सन् 1871 को फैसला सुनाया गया और पांच मुल्ज़िमान को पिछले मुक़दमात के मुताबिक़ काला-पानी और ज़ायदाद- ज़ब्ती की सज़ा दी गयी।
आख़िर में इतनी बात और बता देनी चाहिए कि इसी मुक़दमे में एक मौके़ पर कलकत्ता के जस्टिस नार्मन ने मुजाहेदीने-आजादी की हब्स-बेजा की दरख़ास्त को नामंजूर कर दिया था, जिस पर लोगों में बड़ा इश्तिआल था।
उसी मौक़े पर अब्दुल्लाह पंजाबी ने अदालत में ही जस्टिस नार्मन पर कातिलाना हमला किया और इसी जर्ब से 21 सितम्बर सन् 1871 को वह मारा गया।
हंटर ने अपनी किताब हमारे हिन्दुस्तानी मुसलमान में इस वाक़िये की तरफ़ इशारा किया है।
अब्दुल्लाह को गिरफ़्तार करके फांसी दे दी गयी। बाकी दो आदमियों को मुक़दमे में रिहा कर दिया गया, जिनमें पीर मोहम्मद भी थे।
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