लहू बोलता भी है: जंगे आज़ादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलाना रहमतउल्लाह कैरानवी
आइये जानते हैं, जंगे आज़ादी ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार - मौलाना रहमतउल्लाह कैरानवी को____
:मौलाना रहमतउल्लाह कैरानवी:
आपकी पैदाइश सन् 1813 में कैराना (मुज़फरनगर; यू.पी.) में हुई थी। अपनी इब्तदाई तालीम अपने वालिद से हासिल करके आला तालीम के लिए लखनऊ और फिर देहली जाकर शाह अब्दुलग़नी मोजदद्दी से हदीस की महारत हासिल की। उसके बाद दर्सो-तसनीफो-तालीफ़ की तालीम देते रहे। आपका मशहूर अज़ीम तजदीदी कारनामा ईसायत के खिलाफ जद्दोजहद है, जो उन दिनों बहुत मज़बूती से अंग्रेज़ हुकूमत के ज़ेरे-निगरा गरीब व जाहिल मुसलमानों में ईसाइयत फैलाने के लिए पादरी फेन्डर की रहनुमाई में एक तंज़ीम बडे़ ज़ोर-शोर से काम कर रही थी, जिसकी आपने मुख़ालिफ़त शुरू कर दी।
आपके मुख़ालिफ़त की वजह से पादरी फेन्डर घबरा गया और उसने मुनाज़रा करने की पेशकश की जिसे आपने मंजूर किया लेकिन शर्त ये रखी कि मुनाज़रा आगरा में होगा जहां फेन्डर ने कुछ मुसलमानों को लालच देकर और ज़ोर ज़बरदस्ती करके ईस्लाम के रास्ते से बरग़लाया था।
सन् 1854 में आगरा में मुनाज़रा शुरू हुआ जिसमें आपने इस्लाम की ऐसी-ऐसी नज़ीरे और हदीसे पेश की कि फेन्डर घबराकर भागने लगा आपने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उसकी हिफ़ाज़त में अंग्रेज़ अफ़सरान आ गये और उन्हें अपने साथ ले गये लेकिन जिन मुसलमानों ने ईसाइयत की तरफ रूख किया था उन्हें वापस दीन पर लौटाने का अज़ीम कारनामा अंजाम दिया। अंग्रेज़ अफ़सरों ने आपके खि़लाफ़ साज़िशे करना शुरू कर दिया।
इसके बाद सन् 1857 के अंग्रेज़ हुकूमत के खिलाफ जेहाद के फतवे पर आपने भी दस्तख़त किये और खुद कैराना के महाज़ पर मैदानी जंग की क़यादत की जहां पहले दौर में अंग्रेज़ हारकर भाग गये। जब जंगे-आज़ादी में नाकामी हो गयी तो आपकी गिरफ़्तारी के लिए अंग्रेज़ अफ़सरों ने बहुत कोशिशें की लेकिन आपको गिरफ़्तार नहीं कर सके।
आप मक्का मोअज़्ज़मा चले गये जहां सारी ज़िंदगी दीनी तालीम और दर्स दिया और वहीं सन् 1891 में इंतक़ाल फरमा गये।
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