कहां गया आजाद हिंद फौज का साढ़े पांच करोड़ का खजाना, किन पर लगे थे ‘चुराने’ के आरोप
लखनऊ: 21 अक्टूबर को पूरा देश आजाद हिंद फौज की स्थापना की 75वीं सालगिरह मना रहा है। लेकिन नेताजी सुभाषचंद बोज से जुड़े अभी कई ऐसे दस्तावेज हैं, जो अभी तक सार्वजनिक नहीं हुए हैं। उन्हीं में से एक रहस्य आजाद हिंद फौज के खजाने से जुड़ा है। नेताजी पर कई किताबें लिख चुके लेखक अनुज धर की मांग है कि सरकार उनसे जुड़े सभी गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक करे।
नेताजी को दान में मिला था 80 किलो से ज्यादा सोना
नेताजी रहस्यगाथा और इंडियाज बिगेस्ट कवर-अप जैसी किताबों के लेखक अनुज धर ने अमर उजाला से विशेष बातचीत में बताया कि आजाद हिंद फौज को बनाने के लिए पूरे देश ने नेताजी को करोड़ों रुपए का चंदा और 80 किलो से ज्यादा गोल्ड दान में मिला था। वह कहते हैं कि 1951 में जापानी अखबार निपोन टाइम्स ने खजाने की वैल्यू तकरीबन साढ़े पांच करोड़ रुपए आंकी थी। अपनी रिसर्च के दौरान धर ने विदेश मंत्रालय और पीएमओ से जुड़ी कई फाइलों का अवलोकन किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि नेताजी से जुड़े दो लोगों के नाम सामने आए।
मिला केवल 8-10 किलो सोना
वह बताते हैं, कि टोक्यो में इंडियन इंडीपेंडेंस लीग के अध्यक्ष मूंगा राममूर्ति और नेताजी के प्रचार मंत्री एसए अय्यर के नाम उन फाइलों में सामने आए थे, जिन पर आजाद हिंद फौज के खजाने को गायब करने का आरोप लगा था। इन दोनों की मदद जापान में ब्रिटिश एंबेसी में अताशे रहे कर्नल जेजी ने की थी। धर के मुताबिक नेताजी ने अपनी मृत्यु से पहले वह खजाना मंगवाया था। नेताजी के आखिरी जन्मदिन 23 जनवरी 1945 पर जब खजाना तुलवाया गया था, तो नेताजी के वजन से ज्यादा था। वह बताते हैं कि नेताजी की लंबाई 5 फुट 10 इंच थी और वजन तकरीबन 75 किलो था। सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है कि अगस्त 1945 में नेताजी की मौत के बाद सरकार के हाथ जो खजाना लगा, वह मात्र 8-10 किलो का ही था।
खजाना जलने की उड़ाई अफवाह
धर बताते हैं, कि राममूर्ति, अय्यर और फिगेस का नाम अकसर ताइवान में नेताजी की हवाई दुर्घटना में मौत के अहम गवाहों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। उस समय यह अफवाह उड़ाई गई कि नेताजी के मौत के साथ ही वह खजाना भी जल कर खाक हो गया। राममूर्ति और अय्यर ने ही नेताजी की अस्थियों को टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में रखवाया था। बाद में 1951 में अय्यर की गुप्त यात्रा के दौरान राममूर्ति ने कुछ जली हुई ज्वैलरी को टोक्यो स्थित भारतीय मिशन को सौंपा था। उस समय दिल्ली में बैठी सरकार को खजाने की लूट में मूर्ति और अय्यर के शामिल होने की जानकारी थी। बाद में इन आरोपों की टोक्यो में भारतीय दूतावास ने पुष्टि भी की थी।
नेताजी केवल दो सूटकेसों में ले गए थे सोना
जापान में भारत के राजदूत केके चेत्तुर ने 20 अक्टूबर 1951 को पत्र लिख कर जापान सरकार का हवाला देते हुए कहा था, कि आखिरी उड़ान में नेताजी को केवल दो सूटकेसों में ही गोल्ड और कीमती पत्थर ले जाने की अनुमति दी गई थी। धर बताते हैं कि उस समय जापान में रह रहे भारतीयों के बीच राममूर्ति और अय्यर के रातोंरात अमीर बनने की काफी चर्चाएं हुई थीं। मूर्ति टोक्यो के सम्मानित बिजनेसमैन बन चुके थे, वे कैडिलैक और क्रिसलर जैसी गाड़ियों के मालिक थे और टोक्यो में उऩका महंगी घड़ियां और कीमती कपड़े बेचने का स्टोर खोल चुके थे।
बाद में ‘आरोपी’ बना सरकार मेंश सलाहाकार
चैत्तुर ने नई दिल्ली को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि अय्यर की 1951 में जापान यात्रा का मकसद खजाने के लूट की बंदरबांट और दूतावास को जली ज्वैलरी सौंपकर यह दिखाना था कि उन पर लगे आरापों में कोई सच्चाई नहीं है। धर का कहना है कि 01 नवंबर 1955 को विदेश मंत्रालय ने एक गुप्त रिपोर्ट भी बनाई, जिसमें दोनों कथित आरोपी सरकार की पूरी कार्रवाई में शामिल रहे। अय्यर के जापान से लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया गया और नेहरू सरकार ने 1953 को अय्यर को पंचवर्षीय योजना का सलाहकार नियुक्त कर दिया।
सबसे पहला घोटाला
लेखक अनुज धर के मुताबिक तमाम सबूत होने के बावजूद आज तक साबित नहीं हो पाया कि आजाद हिंद फौज से जुड़ा वह खजाना आखिर कहां चला गया। धर इसे स्वतंत्र भारत का पहला घोटाला बताते हैं, क्योंकि यह 1948 में हुए जीप घोटाले से पहले का है। वह कहते हैं कि साथ ही रूस से नेताजी से जुड़े मामलों पर बात करनी चाहिए। क्योंकि नेताजी से जुड़ी अभी तक केवल 306 फाइलें ही सामने आई हैं, लेकिन गोपनीय फाइल अभी भी सरकार के पास हैं, जिन्हें जल्द से जल्द देश के लोगों के सामने रखा जाना चाहिए।
(साभार- अमर उजाला)
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