भारतीय रेलवे ने विकलांग खिलाड़ी के साथ 2 बार किया ऐसा, सुनकर शर्म आ जाए
भारतीय रेलवे ने विकलांग खिलाड़ी के साथ 2 बार किया ऐसा, सुनकर शर्म आ जाएइससे पहले भी ऐसी ही घटना हुई थी, जिसकी देश भर में हुई आलोचना के बाद रेल मंत्री ने इस मामले की जांच के आदेश दिए थे।नई दिल्ली, जेएनएन। भारत में खेलों की स्थिति कैसी है, यह किसी से छिपा नहीं है। कम संसाधनों के बावजूद खिलाड़ी मेहनत से विश्व पटल पर छाते हैं, लेकिन उनके साथ अपने देश में होने वाला व्यवहार उन्हें तोड़कर रख देता है। हाल ही में एक बार फिर से देश में खेल प्रतिभा के साथ यही रवैया देखने को मिला है। टेबल टेनिस में देश के लिए मेडल जीत चुकी अंतरराष्ट्रीय पैरा-एथलीट सुवर्णा राज को एक बार फिर भारतीय रेल व्यवस्था ने परेशान किया है। पोलियो के कारण 90 फीसदी विकलांग खिलाड़ी को भारतीय रेलवे में एक बार फिर से ऊपर की सीट दी गई है। सुवर्णा के साथ ऐसा व्यवहार पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले, इसी साल जून में भी उन्हें रेलवे ने ऊपर की सीट दे दी थी। उस समय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने इस मामले की जांच के आदेश दिए थे। उस जांच का क्या हुआ यह तो पता नहीं, लेकिन एक बार फिर से सुवर्णा के साथ हुआ व्यवहार दर्शाता है कि भारतीय रेलवे कितना संवेदनशील है। सुवर्णा ने इस बारे में कहा है, 'मेरे साथ जैसा जून में हुआ था वही फिर एक बार हुआ। विकलांग होने के बाद भी मुझे ऊपर की बर्थ दी गई जबकि मैंने विशेष श्रेणी (विकलांग कोटे) से टिकट लिया था।' जून में सुवर्णा ने रेलवे सफर के दौरान टीटी से सीट बदलने की गुजारिश भी की थी, लेकिन उनके लिए कोई सीट उपलब्ध नहीं हो सकी थी और बाद में उन्हें जमीन पर ही सोना पड़ा था। इस घटना की देश भर में हुई आलोचना के बाद रेल मंत्री ने इस मामले की जांच के आदेश दिए थे। What happened in June happened again y'day, despite having ticket in 'disabled' quota I was allotted upper berth: Suvarna Raj, para-athlete pic.twitter.com/zW5D8QS64k— ANI (@ANI) September 1, 2017इस बारे में रेलवे के पीआरओ ने कहा, 'विकलांग यात्रियों के लिए रेलवे बहुत संवेदनशील है। हम ऐसे यात्रियों की सुविधाओं और उन्हें मिलने वाली विशेष छूट का खास ख्याल रखते हैं।' हालांकि, उनके बयान और हकीकत में जमीन-आसमान का अंतर दिखाई दे रहा है। क्रिकेट की खबरों के लिए यहां क्लिक करेंअन्य खेलों की खबरों के लिए यहां क्लिक करेंBy Bharat Singh Let's block ads! (Why?)