विशेष: लोहिया का कथन सच निकला जे.पी. ने देश को हिलाया: रघु ठाकुर
■11 अक्टूबर लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के जन्मदिवस पर प्रधानमंत्री- मोदी से विशेष अपेक्षायें
■आपातकाल के मीसाबंदियों या आपातकाल के विरुद्व आंदोलन के सहयोगी मित्रों से विशेष अपील
■सरकारों में बैठे लोग हमारे अपनेे है शत्रु नही है परन्तु नीति और कर्तव्य की पुकार है कि हम उन्हें प्रेरित करने और बाध्य करने के लिये पुनः सिविल नाफरमानी के मार्ग पर उतरें
नई-दिल्ली: प्रख्यात समाजवादी चिंतक व विचारक तथा लोकतांत्रिक समाजवाद पार्टी केे राष्ट्रीय संरक्षक- रघु ठाकुर ने 11 अक्टूबर- लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के जन्मदिवस पर अपने इस विशेष लेख के माध्यम से बताया कि, जयप्रकाश जी को लोकनायक का संबोधन देश की जनता ने 1974 में दिया था, जब उन्होंने बिहार आन्दोलन और उसके बाद समूचे देश में सम्पूर्ण क्रांति के नाम से आंदोलन का नेतृत्व किया था।
नि:संदेह 1974 का आंदोलन आजादी के बाद के देश में हुये आंदोलनों में सबसे व्यापक था।
1974 की रेल हड़ताल जो शायद दुनिया की सबसे बड़ी हड़ताल थी, इसके हिस्सेदार देश के 20 लाख कर्मचारी थे। परन्तु जे.पी. के आंदोलन में शारीरिक और मानसिक भागीदारी करोड़ों लोगों की थी।
1952 के संसदीय आम चुनाव के बाद जिसमें तत्कालीन सोसलिस्ट पार्टी पराजित हुई थी। इसके बाद जे.पी.जो समाजवादी नेता थे, पार्टी व राजनीति छोड़कर सर्वोदय में चले गये थे।
डाॅ.लोहिया जो 1940 के दशक से जे.पी. के समतुल्य समाजवादी नेता थे और जयप्रकाश और लोहिया का नाम समाजवादी कार्यकर्ताओं के लिये आदर्श समाजवादी नाम थे।
यहाॅ तक कि समाजवादी आंदोलन के नारों में भी लोहिया और जयप्रकाश के नारे साथ-साथ ही लगते थे।
डाॅ.लोहिया, जयप्रकाश की व्यापक छवि और प्रभाव को समझते थे और इसीलिये अपनी मृत्यु के कुछ दिनो पूर्व डाॅ.लोहिया ने पटना में भाषण देते हुये जयप्रकाश जी से पुनः समाजवादी आंदोलन का नेतृत्व करने का आवाहन किया था।
लोहिया ने कहा था कि ’’जयप्रकाश, तुम देश को हिला सकते हो बशर्ते खुद न हिलो’’ और इस दूसरी पंक्ति का तात्पर्य जे.पी. की भावुकता से था।
1974 में गुजरात के नौजवानों ने छात्रावासों के भोजनालयों में भोजन की थाली के बढ़े दाम के विरुद्व आंदोलन शुरु किया था और जो धीरे-धीरे यह आंदोलन समूचे प्रदेश के छात्रों का आंदोलन बन गया था ।
रविशंकर महाराज जो गुजरात के सर्वमान्य गांधीवादी नेता थे, ने आंदोलन की अगुवाई की थी और स्व.मोरारजी भाई देसाई ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार जिसके मुख्यमंत्री चिमनभाई थे, को बर्खास्त करने की मांग की थी और अनिश्चित कालीन उपवास शुरु किया था।
श्रीमति इंदिरा गांधी जो प्रधानमंत्री थी को जनता के दबाव में अपनी ही पार्टी की सरकार को बर्खास्त करना पड़ा।
इस आंदोलन में शामिल होने के लिये जब जे.पी. पहॅुचे तो उन्हें स्वतः ही एक प्रकार का आत्मविश्वास प्राप्त हुआ और उन्होंने सार्वजनिक रुप से स्वीकार किया था कि गुजरात के नौजवानों ने मुझे नई रोशनी दिखाई है।
गुजरात से लौटने के बाद ही जे.पी.ने बिहार के छात्रों के आंदोलन की अगुवाई की और बिहार आंदोलन के नाम से शुरु हुआ आंदोलन लगभग समूचे देश में फैला। हालांकि इसकी सघनता उत्तर भारत, पश्चिमी भारत और पूर्वी भारत में जितनी ज्यादा थी उतनी दक्षिण भारत में नही थी।
जे.पी.ने सम्पूर्ण क्रांति का अर्थ व्यवस्था में सम्पूर्ण बदलाव कहा था और स्व.डाॅ.लोहिया के द्वारा दुनिया में बदलाव के लिये तय की गई ’’सप्त क्रांति’’ का सगुण कार्यक्रम माना था।
जे.पी. ने सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन की अगुवाई करते समय जिन कार्यक्रमों पर तत्कालीन रुप से ज्यादा जोर दिया था उनमें चुनाव सुधार, भ्रष्टाचार की समाप्ति, विकेन्द्रीकरण, मंहगाई को रोकना, बेरोजगारी और राजकीय दमन और काले कानून की समाप्ति प्रमुख रुप से थी।
जे.पी. के इस आंदोलन में समाजवादी तो अपनी सम्पूर्ण भावना के साथ थे क्योंकि उनका जे.पी. के साथ लगभग 35 वर्षो का कार्यात्मक और रागात्मक लगाव था।
समाजवादी साथियों ने कभी भी जे.पी. को अलग नही माना और सर्वोदय में जाने के बाद भी वे समाजवादियों के लिये पूर्ववत मान्य नेता थे।
सर्वोदय के वैचारिक रुप से दो हिस्से हो गये थे और जो लोग विनोवा जी को अपना अंतिम वाक्य मानते थे उन्हें छोड़कर एक बड़ा हिस्सा जे.पी के साथ संघर्ष में आया। बावजूद इसके कि विनोवा जी अन्यानिक कारणों से आंदोलन के हक में नही थे।
वामपंथियों में भी बॅटवारा हुआ था और सी.पी.आई. कांग्रेस के साथ थी परन्तु सी.पी.एम और अन्य माक्र्सवादी धड़े इस आंदोलन के सहभागी थे।
भारतीय क्रांतिदल जिसका नेतृत्व स्व.चरण सिंह, बीजू पटनायक, राजनारायण और कर्पूरी ठाकुर अपने-अपने राज्यों में करते थे, सम्पूर्ण तौर पर सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन का हिस्सेदार थे क्योंकि भारतीय क्रांतिदल में भी राजनायण और कर्पूरी जैसे समाजवादी नेताओं की बड़ी ताकत थी।
जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अपने निर्णय के माध्यम से इस आंदोलन में सहभागी बने।
जब जनसंघ और संघ इसका हिस्सेदार बना तो तत्कालीन सरकार के इशारे पर प्रचार तंत्र ने यह कहकर आंदोलन को विभाजित करने का प्रयास किया था कि जे.पी. के आंदोलन में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जैसी संस्थायें जो फासिस्ट है, शामिल है।
तत्कालीन सरकारी पार्टी की ओर से कुछ लोगो ने जे.पी. को राष्ट्रद्रोही की संज्ञा भी दी थी और जे.पी. ने उत्तर देते हुये कहा कि अगर मैं राष्ट्रद्रोही हो जाऊॅगा तो इस देश में कोई राष्ट्रभक्त नही बचेगा।
यह उनका अपनी राष्ट्रभक्ति के प्रति गहरा विश्वास था।
जे.पी. ने यह भी कहा कि अगर संघ फासिस्ट है और मेरे साथ है फिर मैं भी फासिस्ट हॅू।
जे.पी. यह जानते थे और उनका विश्वास इतना गहरा था कि देश कभी भी उनके राष्ट्र प्रेम, लोकतांत्रिक और धर्म निरपेक्ष चरित्र पर शक नही करेगा।
जे.पी. को यह भी विश्वास था कि इस आंदोलन में शामिल होने से नई युवाशक्ति का उदय होगा और जो राजनैतिक दल शामिल हुये थे उनके स्वभाव और चरित्र पर शक नही करेगा।
जे.पी. ने 1977 के आम चुनाव के पूर्व सबको मिलाकर एक जनता पार्टी का गठन कराया। केवल सी.पी.एम. ने अपना पृथक अस्तित्व बचाये रखा।
हांलाकि जनता पार्टी जिसकी सरकार चुनाव के बाद केन्द्र में बनी और अनेक राज्यों में भी बनी से जे.पी.को धोखा हुआ, उनका विश्वास खंडित हुआ।
जनता पार्टी सरकारों ने जे.पी. के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन के मुद्दे को लेकर लगभग कुछ भी नही किया और केवल सत्ता और संगठन के कब्जे के अंतर खेल में ही पार्टी फंसी रही। जनसंघ के जो लोग सरकारों में आये थे उन्होंने सरकारों को चलाना ही अपना लक्ष्य समझ लिया और जिस बदलाव की उम्मीद जे.पी. ने की थी उसे निराशा में बदल दिया।
दो घटनाओं का मैं विशेष उल्लेख करुॅगा:-
1. बिहार सरकार के जनसंघ और संघ पृष्ठभूमि के मंत्री श्री दीनानाथ पांडे, नाथूराम गोडसे के भाई श्री गोपाल गोडसे को लेकर बिहार में दौरा करने लगे और गांधी जी की हत्या को उचित ठहराने लगे।
2. 26 जून 1979 को पटना में जे.पी. का अभिनंदन कार्यक्रम था और एक सम्पूर्ण क्रांति सम्मेलन रखा गया था।
इस सम्मेलन में मैं स्वतः भी शामिल था तथा तत्कालीन सर संघ संचालक स्व. बालासाहब देवरस इस सम्मेलन में जे.पी. का अभिनंदन करने आये थे।
उनका भाषण जो टेप भी है और 27 जून 1979 के पटना के समाचार पत्रों में छपा भी था वह तथ्य को समझने के लिये महत्वपूर्ण है।
स्व.देवरस ने अपने भाषण में कहा कि मैं अक्सर संघ कार्यो के लिये यात्रा में रहता हॅू अतः मैं नही पढ़ सका या जान सका कि सम्पूर्ण क्रांति क्या है?
परन्तु जे.पी. जैसे महान व्यक्ति जब उसकी चर्चा कर रहे है तो मुझे लगता है कि वह कुछ अच्छी ही बात होगी।
क्या बाला साहब का यह कथन मुद्दों से बच निकलने का कथन नही है?
1977 के चुनाव के पूर्व आपातकाल में वे स्वतः जेल में थे और क्या उन्हें इतनी लम्बी अवधि में सम्पूर्ण क्रांति के बारे में पढ़ने या जानने का अवसर नही मिला होगा?
जो मुद्दे सम्पूर्ण क्रांति के मुद्दे थे वे अभी भी लगभग अनिर्णीत है-
बेरोजगारी चरम पर है, भ्रष्टाचार और मंहगाई चरम पर है, चुनाव सुधार, यद्यपि टी.एन.शेषन ने अपने कार्याकाल में कुछ सुरुआत की थी परन्तु बड़े सुधार अभी भी लंबित है।
आज केन्द्र में श्री नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री है और उनकी पार्टी ही अकेले बहुमत की सरकार है।
श्री नरेन्द्र मोदी जी, जे.पी.आंदोलन के हिस्सेदार भी रहे है तथा समय-समय पर जे.पी. की याद भी करते है और उसका उत्तर वे कैसे देते है वही इतिहास में उनका स्थान तय करेगा।
जो लोग आपातकाल में जेलो में रहे है या बाहर रहकर भी आपातकाल के खिलाफ संघर्ष में सहयोगी रहे है और जो विभिन्न प्रदेशों में दलीय सत्ताओं के आधार पर विभिन्न संगठनों में कार्यरत है, आज उनके सामने भी यह चुनौती है।
प्रधानमंत्री से मेरी अपेक्षा है कि वे 11 अक्टूकर को जयप्रकाश जी के जन्मदिन के अवसर पर निम्न कार्यक्रमों की घोषणा करें:-
1. चुनाव सुधार लागू हों जिनमें समूचे देश के पंचायत से लेकर संसद तक याने जनपद, जिला पंचायत, सहकारी समितियाॅ, सहकारी बैंक, विधानसभा और संसद तक एक साथ हो।
हर पाॅच वर्ष में एक माह चुनाव के लिये निर्धारित हो जिसमें सारे चुनाव एक साथ हों जिससे चुनाव खर्च भी सीमित होगा और देश का अमूल्य समय, धन और साधन भी बचेगा।
2. बाजार की मंहगाई को रोकने के लिये ’’दाम बाॅधो’’ नीति का एलान करें ताकि लागत खर्च और बाजार मूल्य में आखिरी छोर तक 50 पैसे से ज्यादा फर्क न हो।
3. कृषि उपजों के दो फसलों के बीच का उतार चढ़ाव 6 प्रतिशत से अधिक न हो, का कानून बने तथा खाद्यान्न की सुरक्षा और संधारण के लिये कृषक भंडारगृह जो किसान के ही घर में हो ऐसी योजना शुरु हो तथा क्षेत्रीय उत्पाद के आधार पर खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्रीय उद्योग लगाये जाने की घोषणा करें जिससे कुछ माह के अंदर ही देश में 30-40 लाख लोगों को रोजगार मिल सकता है।
4. लोकतंत्र को नियंत्रित या समाप्त करने वाले काले कानूनों को समाप्त किया जाये।
5. सभी बेरोजगारों को बेकारी भत्ता न्यूनतम 5 हजार रुपया और चयन परीक्षाओं के शुल्क को समाप्त करने की घोषणा करें।
अगर प्रधानमंत्री जी ये घोषणायें करेगे तो वह लोक-नायक जयप्रकाश के प्रति सच्ची श्रद्वांजलि होगी।
आपातकाल के मीसाबंदियों या आपातकाल के विरुद्व आंदोलन के सहयोगी मित्रों से मैं अपील करुॅगा कि आज भी हमारा दायित्व इन बुनियादी सवालों के प्रति है और इसीलिये हमें दलीय खाकों के ऊपर उठकर अपने और पराये का भेद छोड़कर गीता को सम्मुख रखकर उपरोक्त कार्यक्रमों को पूरा कराने के लिये लड़ने की तैयारी करनी होगी।
सरकारों में बैठे लोग हमारे अपनेे है शत्रु नही है परन्तु नीति और कर्तव्य की पुकार है कि हम उन्हें प्रेरित करने और बाध्य करने के लिये पुनः सिविल नाफरमानी के मार्ग पर उतरें।
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