लहू बोलता भी है: नवाब मोहम्मद इस्माइल खान- आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार.
आईये जानते हैं, आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- नवाब मोहम्मद इस्माइल खान को.........
नवाब मोहम्मद इस्माइल खान:
सन् 1884 में आगरा (उत्तर प्रदेश) के एक नवाब ख़ानदान में पैदा हुए नवाब मोहम्मद इस्माइल खान के वालिद नवाब इसहाक़ ख़ान एक आई.सी.एस. ऑफिसर थे, जिन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा भारतीयों के ख़िलाफ़ की गयी कार्यवाही से नाराज़ होकर जूरी की पोस्ट से इस्तीफ़ा दे दिया था।
इस्माइल के ख़ानदान की नवाबी सन् 1857 की पहली जंगे-आज़ादी के दौरान बहादुरशाह ज़फर का साथ देने के इल्ज़ाम में ब्रिटिश हुकूमत ने ज़ब्त कर ली थी। इनके वालिद साहब ने अंग्रेज़ों की मुलाज़िमत छोड़कर मोहमडन ऐंग्लो ओरियंटल कालेज में नौकरी कर ली थी। इस्माइल साहब 12 साल की उम्र में आला तालीम के लिए इंग्लैण्ड चले गए। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से बी.ए. व वकालत की डिग्री हासिल करके सन् 1906 में आप वापस आये। ब्रिटिश हुकूमत में लॉ ऑफिसर के ओहदे पर आपकी पोस्टिंग हुई, लेकिन आपने अंग्रेज़ की गुलामी करने से मनाकर अपनी वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी। आपके घर का माहौल सन् 1857 से ही मुल्क़ की आज़ादी के मिज़ाज़ का था, लिहाज़ा आपने भी कांग्रेस के प्रोग्रामों में शिरकत करना शुरू कर दिया।
मोतीलाल नेहरू के आपके वालिद साहब से दोस्ताना घरेलू ताल्लुक़ात थे। आपने भी बाज़ाप्ता कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की लेकिन तीन साल बाद ही ख्यालाती टकराव की बिना पर सन् 1910 में मुस्लिम लीग ज्वाइन कर ख़िलाफ़त और नान काओपरेटिव मूवमेंट में हिस्सा लिया। मुस्तफ़ा कैसल नाम का आपका घर जंगे-आज़ादी के आंदोलन का मुक़ामी दफ़्तर था।
आप सन् 1923 में बिना मुक़ाबले मुस्लिम लीग की तरफ़ से सेन्ट्रल लेजिसलेटिव एसेम्बली के मेम्बर चुने गए। सन् 1926 तक आप लीग और कांग्रेस के बीच आपसी ताल्लुक़ात बेहतर बनाने में लगे रहते थे लेकिन मुस्लिम मामलों में कांग्रेस की बेरुखी को देखकर आपने कांग्रेस से पूरी तरह दूरी बना ली। सन् 1937 में आप दोबारा एसेम्बली एलेक्शन में लीग के टिकट पर जीते। इस एलेक्शन में किसी को अकसरियत नहीं मिली।
आपने मौलाना आज़ाद से मिलकर कांग्रेस और लीग की मिली-जुली सरकार बनाने की बातचीत की। मौलाना आज़ाद ने लीग की तरफ़ से जनाब इस्माइल और चैधरी ख़लीकुज्ज़मा को मिनिस्टर बनाने की बात तय की लेकिन बाद में नेहरूजी ने सिर्फ एक पर रज़ामंदी दी, इसलिए डील फेल हो गयी। नवाब इस्माइल साहब सन् 1939 में आल इण्डिया मुस्लिम सिविल डिफेंस एसोशिएसन के सदर बनाये गये।
सन् 1940 में मुस्लिम लीग की कांफ्रेंस में जब लाहौर रेज़िलूशन पेश हुआ, मुल्क के बंटवारे का रेज़िलूशन देखकर इसकी सख़्त मुख़ालिफ़त करते हुए आप मुस्लिम लीग से अलग हो गए। मुल्क आज़ाद होने के वक़्त आप अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर रहे साथ ही, विधानसभा के मेम्बर भी रहे।
28 जून सन् 1958 में मेरठ को आपका इंतक़ाल हुआ।
swatantrabharatnews.com