
लहू भी बोलता है: आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलाना सईद अहमद
आईये जानते हैं
आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मौलाना सईद अहमद को..........
मौलाना सईद अहमद
मौलाना सईद की पैदाइश सन् 1888 में दिल्ली के क़रीब शाहजहांबाद में हुई थी। आपकी तालीम और तरबियत जिस माहौल में हुई थी, वह पहले से अंग्रेज़ हुकूमत के खिलाफ वलीउल्लाही मूवमेंट का मरकज़ था। माहौल और हालात के असर ने आपको बहुत कम उम्र में ही मुल्क की आज़ादी के लिए फ़िक्रमंद कर दिया। तालीम पूरी करते वक़्त ही आपने हिन्दुस्तान की सरज़मीन पर अंग्रेज़ों के ज़रिये गुलाम बनाकर काम कराने की मुखालिफत में मज़मून लिखकर अखबारों और मैगज़ीन के ज़रिये मंज़रे-आम पर लाना शुरू कर दिया था।
आपकी कम-उम्री की बिना पर ब्रिटिश हुकूमत की क़ारगुज़ारियों पर लिखा गया मज़मून बहुत पसंद किया जाने लगा। आगे चलकर आप एक अच्छे मोअर्रिख़ और शायर माने जाने लगे। आपकी शायरी और मज़मून से जंगे-आज़ादी के लिए अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ अवाम में ज़बरदस्त जज़्बा पैदा हुआ। मौलाना सईद ने ग़ुलामी-प्रथा के खि़लाफ़ एक जलसा किया, जिसमें आपकी तक़रीर सुनकर नौजवानों में जोश पैदा हुआ। मुल्क की जंगे-आज़ादी के लिए यह मौलाना का पहला क़दम था, जो बहुत कामयाब रहा।
इसके बाद जो-जो आंदोलन हुए, उन सबमें आपने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वलीउल्लाही मूवमेंट के बाद ख़िलाफ़त मूवमेंट में सन् 1921 में आप पहली बार गिरफ्तार किये गये और एक साल जेल की सज़ा हुई। इसके बाद सन् 1930 के आंदोलन में आप दोबारा जेल गये और इस बार दो साल कै़द बा-मशक्कत की सज़ा काटी। सन् 1932 में जेल से रिहा होने के बाद तो आपने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हर आंदोलनों में सरगर्म रहकर हिस्सा लिया। सन् 1932 के जून में नान-काआपरेशन मुज़ाहिरे के दौरान आप गिरफ्तार कर लिये गये और एक साल की सज़ा काटी। सन् 1940 में भी आप गिरफ्तार हुए और तक़रीबन एक साल कुछ महीनो बाद छूटकर आये। मगर सन् 1942 में आप फिर गिरफ्तार किये गये और इस बार जेल में तीन साल गुज़ारने पड़े। इस दरम्यान आपने असीर तख़ल्लुस से एक ग़ज़ल कही जिसका मैसेज यह था कि अपनी तरफ़ से हिंसा नहीं करना है, लेकिन अगर फ़िरंगी ज़बरदस्ती ज़ुल्म करें तो हथियारों से लड़ने की तैयारी करके उनका मुक़ाबला करना चाहिए। आपकी कविता में हमेशा मज़हब को सियासत से अलग रखने और मुल्क के बंटवारे के खिलाफ़ पैग़ाम हुआ करता था।
मौलाना सईद ने जेल से छूटने के बाद मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बड़े रहनुमाओं जिन्ना, पटेल, नेहरू वगैरह से मिलकर मुल्क के बंटवारे की ज़बरदस्त मुख़ालिफ़त की। मगर जब ये लोग नहीं माने तो आपने जगह-जगह कांफ्रेंस और अवामी जलसा किया; साथ ही, अवाम को भी बंटवारे के खि़लाफ समझाया।
बंटवारे के बाद पैदा फिरक़ावाराना हालात में भी आपने बहुत मेहनत कर अमन की कोशिशें कीं। एक बार महात्मा गांधी के साथ भी आप सद्भावना सत्याग्रह में शामिल रहे।
मुल्क आज़ाद होने के बाद फ्रीडम फाइटर्स को पेंशन और इनाम देने के लिए सरकार की तरफ से पेशकश हुई, जिसे आपने यह कहकर ठुकरा दिया कि मादरे-वतन की आज़ादी के लिए हमने जो कुछ किया वह दरअसल मादरे-वतन का कर्ज़ पूरा किया। लालकिले (दिल्ली) पर सबसे पहले मौलाना सईद ने ही क़ौमी-मुशायरा शुरू किया था, जो आजतक क़ायम है।
अज़ीम शायर माहिरे-इल्म दिलेर जंगे-आज़ादी के इस मुजाहिद का इंतक़ाल 4 दिसम्बर सन् 1959 को हुआ।
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