
अल्लाहबख़्श सोमारू: आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार
लहू बोलता भी है:
आइये जानते हैं आज़ाद ए हिन्द के मुस्लिम किरदार - अल्लाहबख़्श सोमारू को,
अल्लाहबख़्श सोमारू:
अल्लाहबख़्श सोमारू पैदाइश सन् 1887 में सिंध सूबे के शिरवापुर टाऊन में हुई थी। आप शुरू से ही नेशनलिस्ट ख़्यालों के थे। आपने पढ़ाई के बाद कम उम्र में ही अपना कारोबार शुरू किया, लेकिन मन नहीं लगा। आप समाजी और मुल्क की आज़ादी के प्रोग्रामों में दिलचस्पी लेने लगे और बहुत ही कम वक़्त में मशहूर हो गये।
आपने जोकाबाबाद म्युनिस्पिल्टी की मेम्बरी का एलेक्शन लड़ा और 23 साल की कम उम्र में ही कामयाब हुए। सन् 1935 में जब गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट लागू हुआ तब आपकी उम्र 38 साल थी। इतनी कम उम्र में सिंध सूबे का वज़ीरेआला बनकर आपने तवारिख़ी कारनामा अन्जाम दिया।
वज़ीरेआला बनने के बाद आपने सिंध सूबे में मुस्लिम लीग की फ़िरक़ापरस्त सियासत का ज़बरदस्त मुक़ाबला किया। आप किसी भी हाल में फ़िरक़ावारियत को पसंद नहीं करते थे। मुस्लिम लीग ने आपकी हुकूमत को गिराने की धमकी दी, तब भी आप नहीं झुके और सरकार गिर जाने के बाद जब दोबारा एलेक्शन हुआ तो आप भारी अक़सरियत से जीते और सिंध में दोबारा सेकुलर हुकूमत क़ायम की।
अल्लाहबख़्श सोमारू को मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी तरफ़ मिलाने की बहुत कोशिशें की लेकिन फ़िरक़ापरस्त सियासत के लिए आप तैयार नहीं हुए।
आपने जिन्ना से साफ़ इनक़ार कर दिया। सोमारू साहब ने मुसलमानों को फ़िरक़ावारियत की सियासत से दूर रखने के बारे में एक ख़त लिखा जो उन दिनों कई अख़बारों में छपा, जिसकी अपील का बहुत असर पड़ा। आपने मुल्क के बंटवारे के प्रस्ताव की बहुत सख़्त मुखालिफ़त की। दिल्ली के आज़ाद मुस्लिम कांफ्रेंस में भी हिस्सा लिया। गांधीजी के एलान पर अंग्रेजों भारत छोड़ो और खादी आंदोलन में भी आपने सरगर्मी से हिस्सा लिया और गिरफ्तार हुए।
उन दिनों सिंध में मुस्लिम लीग फ़िरक़ापरस्त सियासत में काफ़ी मज़बूत हो रही थी। आपको कई बार मुस्लिम लीग के लोगों की तरफ़ से धमकी मिली, लेकिन उसकी परवाह न करते हुए आप कांग्रेस के सेकुलर आंदोलन में लगे रहे।
सोमारू साहब की वजह से लीग के हार्डकोर वर्कर नाराज़ थे। नतीजे के तौर पर 14 मई सन् 1943 को अल्लाह बख़्श सोमारु का क़त्ल कर दिया गया। सेकुलर सियासत के नाम एक और मुजाहिद शहीद हो गया।
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