
भीषण जल संकट: उदासीन सरकार और अमानवीय समाज भी जल संकट का बड़ा कारण है__ रघु ठाकुर
अन्य शहरों की तरह भोपाल भी गंभीर जल संकट से जूझ रहा है।
नगरों में कारें धोना सड़क को ठंडा करना सार्वजनिक नलों को खुला छोड़ना और 1बाल्टी पानी के लिए 4 बाल्टी बहाना निरन्तर जारी है।
भोपाल, 29 मई: लोकतांत्रिक समाजवादी पार्र्टी के राष्ट्रीय संरक्षक ने देश में बढ़ रहे जल संकट पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, इसके लिए राज्य सरकारों और केंद्र सरकार की उदासीनता के साथ- साथ अमानवीय समाज भी जिम्मेदार है.
मध्य प्रदेश के जल संकट पर विशेष रूप से उन्होंने बताया कि, कभी शहर के लिए पेयजल का प्रमुख स्रोत रहा बड़ा तालाब दिनोंदिन अपना प्राकृतिक स्वरूप को खोता जा रहा है। हालत ये हो गये हैं कि नर्मदा नदी से पाइपलाइन के सहारे भोपाल में जल प्रदाय किया जा रहा है, लेकिन नर्मदा भी शहर का प्यास नहीं बुझा पा रही है। शहर के कोलार क्षेत्र में पूरे साल ही पानी की किल्लत रहती है। लोगों को निजी टैंकर संचालकों से मंहगा पानी खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। एक टैंकर के 250 से 500 रुपए तक वसूले जाते हैं। इसी तरह से पुराने शहर के कई इलाकों में भी हर गर्मी आते ही जल संकट का गहराना आम बात है।
प्रदेश में जलसंकट बढ़ता ही जा रहा है। आज मध्य प्रदेश के 183 नगरीय निकाय क्षेत्रों में दो दिन में एक बार पानी दिया जा रहा है। 47 नगर निकाय में 3 दिन में व 17 नगर निकाय में तो चौथे दिन पानी दिया जा रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में लगे हैंडपंप भी जलस्तर अत्यधिक नीचे गिरने के कारण सूखे पड़े हैं। गांवों और कस्बों की नलजल योजनाएं बंद पड़ी हैं। ग्रामीणों को पीने का पानी लाने के लिए कई किलोमीटर का फासला तय करना पड़ रहा है।
छिंदवाड़ा के चांदामेटा में तो खबर मिली है कि सात दिन में एक बार ही पानी मिल रहा है।
बुंदेलखंड अंचल के छतरपुर, पन्ना, दमोह, टीकमगढ़, सागर, दतिया जिले, विंध्य के सतना, सीधी, सिंगरौली, महाकौशल के कटनी, सिवनी, बालाघाट, चंबल-ग्वालियर क्षेत्र के भिण्ड, श्योपुर, शिवपुरी, मालवा के देवास, राजगढ़, आगर मालवा, शाजापुर, उज्जैन के अलावा नीमच, रतलाम जिलों में भी पेयजल का गंभीर संकट है।
उन्होंने बताया कि, एक तरफ यह भीषण जल संकट और दूसरी तरफ पानी की बर्बादी। नगरों में कारें धोना सड़क को ठंडा करना सार्वजनिक नलों को खुला छोड़ना और 1 बाल्टी पानी के लिए 4 बाल्टी बहाना निरन्तर जारी है।
उदासीन सरकार और अमानवीय समाज भी जल संकट का बड़ा कारण है।
भीषण जल संकट से उबरने के लिए सरकार और नागरिक स्तर पर बड़ी पहल की आवश्यकता है।
हमारे संवाददाता ने बताया कि, अगर पूरे मध्यप्रदेश की बात की जाये तो एक तिहाई आबादी को रोज पानी नहीं मिल पा रहा है। बुंदेलखंड अंचल में पेयजल 700 फीट से भी नीचे पहुंच गया है और लोगों को गांवों में भी पानी दूर-दराज के क्षेत्रों से खरीदकर मंगाना पड़ रहा है। कुछ इसी तरह की स्थिति प्रदेश के 200 से ज्यादा नगरीय निकायों में देखने को मिल रही है।
खुद प्रशासन का मानना है कि प्रदेश के 360 नगर निकायों में से 189 में प्रतिदिन पानी सप्लाई नहीं हो पा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों की हालत तो और बदतर है। पहाड़ी इलाकों में भी बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। उन्हें तो यह दूषित पानी भी मीलों चल कर लाना पड़ रहा है। नदी नालों में पानी सूख जाने के कारण पालतू पशुओं का प्यास बुझाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है। इस गंभीर संकट के वजह से गर्मियों में कई क्षेत्रों में लोगों को हर वर्ष पलायन करने को मजबूर होना पड़ता हैं। मध्य प्रदेश सरकार के प्रदेशव्यापी जलाभिषेक अभियान के तहत सभी 50 जिलों की लगभग 130 ऐसी नदियों और नालों को चिन्हांकित किया गया है, जो अब सूख चुकी हैं।
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