
आज़ाद ए हिन्द के मुस्लिम किरदार - सैय्यद हसन इमाम
लहू बोलता भी है
आइये जानते हैं,
आज़ाद ए हिन्द के मुस्लिम किरदार - सैय्यद हसन इमाम जी को_____
सैय्यद हसन इमाम बिहार के पटना ज़िले में नेऊरा गांव में 31 अगस्त सन् 1871 को पैदा हुए इमाम हसन के बड़े भाई सैय्यद अली इमाम जंगे.आज़ादी के सिपहसालारों में से थे। शुरुआती पढ़ाई पटना से पूरी करके आप सन् 1889 में वकालत पढ़ने इंग्लैण्ड चले गये।
वहां से आप इण्डियन स्टूडेंट एसोसिएशन के क़रीब आये और वकालत की पढ़ाई के साथ.साथ स्टूडेंट एसोसिएशन की ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ होनेवाली मीटिंगों में भी एक्टिव रहे। सन् 1892 में हिन्दुस्तान आकर आपने पटना में प्रैक्टिस शुरू कर दी।
बाद में सन् 1910 में आप कलकत्ता चले गये और वहां कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे। हसन इमाम सन् 1908 में मद्रास में हुए कांग्रेस की कांफ्रेंस में शामिल हुए और नेशनल मूवमेंट में पूरी तरह हिस्सा लेने लगे। आपने ही पटना में बिहार स्टेट स्टूडेंट कांफ्रेंस कराई जिसमें जंगे.आज़ादी में स्टूडेंट की तरफ़ से प्रोग्राम तय हुए।
सैय्यद हसन इमाम पूरी तरह क़ौमी ख़्याल के थे।
आपने अलग मुस्लिम इंतख़ाबी हलक़ों की ज़ोरदार मुख़ालिफ़त की थी। यह प्रस्ताव सन् 1911 के इलाहाबाद के कांग्रेस.कांफ्रेंस में लाया गया था।
कांग्रेस के आंदोलनों में पूरा वक़्त देने के लिए आपने सन् 1916 में हाईकोर्ट के जस्टिस के ओहदे से इस्तीफ़ा दे दिया।
होमरूल मूवमेंट में आपने बहुत अहम रोल अदा किया। इसी दौरान आपने महसूस किया कि मुस्लिम लीग भी होमरूल के खि़लाफ़ चूंकि आंदोलन अलग कर रही है इसलिए अगर कांग्रेस व लीग मिलकर आज़ादी की लड़ाई लड़ें तो अंग्र्रेज़ों के खि़लाफ़ मज़बूत जंग लड़ी जा सकती है और आज़ादी की राह आसान हो जायेगी। आपने कांग्रेस.लीग स्कीम के ज़रिये एक.साथ आंदोलन की बात कही।
इसका फ़ौरी असर भी हुआ और जब सन् 1919 में रोलेक्ट एक्ट के ख़िलाफ़ आंदोलन चला तो सभी एक.साथ थे जिससे जितनी मीटिंगें होतीं उसमें दोनों के नेता अवाम को ख़िताब करते थे।
इसका अच्छा असर पड़ा। हसन इमाम का मानना था कि हिन्दू.मुसलमान की बुनियाद पर मुल्क़ हमेशा नुक़सान उठाता रहा है। इसलिए किसी भी तरह इन दोनों में एका बना रहना चाहिए। आपने एक स्वदेशी लीग बनायीए जिसके ज़रिये सभी को साथ लेकर स्वदेशी आंदोलन की क़यादत की जो कि बहुत ही कामयाब रहा।
हसन इमाम ने पूरी ज़िंदगी जंगे.आज़ादी की जंग में कुर्बान कर दी और 19 अप्रैल सन् 1933 को दुनिया से विदा हो गये।
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