
बलात्कार के अपराधी को कठोर दंड मिले __ रघु ठाकुर
नयी दिल्ली, 16 मई: देश में बढ़ रहे बलात्कार की अमानवीय घटनाओं और पिछले दिनों काश्मीर के कठुआ में हुए बलात्कार, हत्या कांड, और उन्नाव काण्ड के बाद फिर से एक बार देश के मीडिया और मानस की बहस का केन्द्र, बच्चियों की बलात्कार से रक्षा करने का हो गया है, जिसपर चिंता व्यक्त करते हुए देश के महान समाजवादी चिंतक व विचारक और लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- रघु ठाकुर ने "सभी बलात्कार अपराधियों को एक जैसा दंड का प्रावधान हो चाहे वह फॅासी ही क्यों न हो।" के सुझाव के साथ कई महत्वपूर्ण सुझाव सरकार को दिए हैं.
उक्त सम्बन्ध में श्री रघु ठाकुर द्वारा प्रेषित लेख को हम उन्ही के शब्दों में निचे प्रस्तुत कर रहे हैं.
श्री रघु ठाकुर उक्त सुझाव के साथ लिखते हैं कि,
"यह स्वाभाविक भी है क्योंकि देश में इस प्रकार की जघन्य बलात्कार व हत्याओं की घटना हुई है । जिस प्रकार से देश में गैंग रेप की घटनाऐं बढ़ रही हैं उससे लगभग हर व्यक्ति चिंतित है और हालात यह हो गई है कि लोग बच्चियों को घर से बाहर भेजने में, यहाॅं तक की स्कूल भेजने में भयभीत होने लगे है।
कई प्रकार के सुझाव भी देष के जनमानस से निकल कर आ रहे हैं और कुछ पर केन्द्र व राज्य सरकारे अमल भी कर रही हैं। इसके बाद भी बच्चियों के साथ यौन अपराध रूक नही रहे है और एक ऐसा अविष्वनीय समाज बन रहा है जिसमें षायद बेटियां, माॅं के अलावा किसी पर विश्वास करने की स्थिति में नही रहेगी।
यहाॅं तक की भारतीय समाज की परंपरा के अनुसार जो पारिवारिक रिष्ते माने जाते थे जैसे कि भाई, बहन, पिता, बेटी, चाचा, भतीजी इन सभी रिष्तों के बीच मानसिक खाई खुद वा खुद बन गई है।
इन घटनाओं के बाद जिस प्रकार की बयानबाजी पक्ष-विपक्ष में हुई और राजनैतिक घात-प्रतिघात के बयानों की तलवारबाजी हुई उससे इस गम्भीर समस्या का हल न निकलना था और न निकला।
मुख्यतः देश की बहस बच्चियों से होने वाले अपराधों के ऐवज में देने वाले दंड पर टिक गई।
जब निर्भया काण्ड दिल्ली में हुआ था तब उसके बाद भाजपा और अन्य दलों ने जो कांग्रेस सरकार के विरोधी थे.
उस कांड के पीछे तत्कालीन सरकार को कटघरे में खड़ा कर अपना राजनैतिक हित साधने का खेल षुरू किया था, उस समय कांग्रेस सरकार के मुखिया राजनैतिक दलों के लोगों से अपील कर रहे थे कि ऐसी घटनाओं पर राजनीति न करें।
अब जब भाजपा सरकार के जमाने में ऐसी घटनाऐं हुई हैं तब स्वाभाविक रूप से कांग्रेस, भाजपा सरकार को कटघरे में खडा कर रही है और जो षब्दों की जुगाली उस समय कांग्रेस के मुखिया कर रहे थे कि बलात्कार पर राजनीति न करें, अब वही जुगाली भाजपा सरकार के मुखिया श्री मोदी जी और उनकी सरकार के नेतागण कर रहे हैं।
ऐसा लगता है कि, मंच के दृष्य बदलते ही कठपुतलियों की भाषा बदल जाती है।
निर्भया काण्ड के बाद तत्कालीन सरकार ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीष स्वः जस्टिस जे.एस. वर्मा के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था और उन्होंने इस मसले पर जो सुझाव दिये थे, जिसके आधार पर आम बहस के बाद कांग्रेस सरकार ने 2 हजार करोड का एक “निर्भया फंड” बनाया था, जिससे ऐसे मामले के पीडित पक्ष को क्षतिपूर्ति या आर्थिक मदद दी जा सकें।
हालांकि बलात्कार जैसी घटना की पैसे से कोई क्षतिपूर्ति नही हो सकती और यह सम्भव भी नही है हाॅ इतना अवश्य है कि, बलात्कार पीडिताओं की शिक्षा, सामाजिक निंदा और आलोचनात्मक नजरों से बचने के लिए पुर्नवास, भविष्य के जीवन के लिए कुछ आर्थिक मदद जैसे साहसिक कदम उठाए जा सकते हैं।
निर्भया काण्ड के पैसे का भी समुचित उपयोग सरकारें नही कर सकी और यहाॅं तक कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय को अपनी टिप्पणी में यह कहने को लाचार होना पडा कि सरकारें निर्भया फंड का पैसा देने में भी काताही बरत रही है।
राज्यों को केन्द्र द्वारा दिये गए पैसे का अधिकांष हिस्सा केवल खातों में जमा रहा खर्च नही हुआ और कुछ एक प्रकरणों में तो सर्वोच्च अदालत को यह टिप्पणी करना पड़ी कि पाॅच सौ रूपये या पाॅंच हजार रूपये से किसी पीडित की क्या मदद हो सकती?
जो सरकारें अपने चुनाव के प्रचार और राष्ट्रवाद की भावना को जगाकर वोट पाने के लिए मृतक जवानों के परिवारों को एक-एक करोड रूपये देती है और बलात्कार पीडिताओं को प्रथक फंड होने के बाद भी कुछ हजार में चलता कर देती है।
हो सकता है कि, वे अपनी असुरक्षा के चलते व बलात्कारियों की अधिक संख्या के होने के प्रति आष्ंाकित होने के कारण उन्होंने पहले से ही हाथ सिकोडना षुरू कर दिया है।
यह भी दुखःद है कि, बलात्कारियों को भी देष में जाति के चश्मे से देखा जाता है.
अनुसूचित जाति महिला से होने वाले बलात्कार पीडितों के लिए 1 से 2 लाख रुपये का सहायता राषि का प्रावधान अनके राज्यों में है मगर ऐसा प्रावधान अन्य जातियों के लिए नही है।
कठुआ कांड में चुंकि पीडिता बच्ची मुसलमान जाति की थी इसलिए वहाॅं के तथा कथित हिन्दु धर्मावलम्बियों, लफाजों ने बलात्कार हत्या करने वालों को बचाने के लिए जुलूस निकाला यहाॅं तक की काश्मीर में भाजपा के मंत्री जुलूस में शामिल हुए, हाॅंलाकि इस पर भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने ठीक कदम उठाया और उन्हें इस्तीफा देने को बाध्य किया।
हालाॅंकि यह भी आवष्यक था कि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व और प्रधानमंत्री इस पर भी विचार करते कि उनके दल के सदस्यों और समर्थकों के द्वारा घृणित कटृरता को पैदा करने और पोषित करने के पीछे कौन जबावदार है और यह भी आत्मचितंन करते कि बुरे साधनों से पाई गई सफलता अस्थाई और दूषित होती है।
हाॅंलाकि उन्हें आत्मचितंन में भी कठिनाई होगी क्योंकि उन्होंने एक तो घृणात्मक और हिंसा की नाव पर तैरकर सफलता की नदी को पार किया है और दूसरे उन्हें गाॅंधी से इतना परहेज है कि वे गाॅधी के साधनों की पवित्रता, प्रायष्चित और आत्मचितंन के दर्शन को स्वीकार नही कर सकते।
कठुआ ,उन्नाव कांड के बाद फिर से देष में बलात्कार के दंड की मात्रा पर चर्चा षुरू हुई। म.प्र. सरकार ने कहा कि हम तो पहले ही 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार के लिए मृत्युदंड का प्रावधान करने की माॅंग कर चुके है।
एक आप पार्टी नेत्री ने बच्चियों के बलात्कार को लेकर उपवास भी किया, हालाॅकि उनकी पार्टी के एक मंत्री पर अपनी ही पत्नि के साथ हिंसा के प्रयोग का मुकदमा उनकी पत्नि की षिकायत पर अदालत में लंबित है। उनकी पार्टी के कई विधायकों के साथ भी हिंसा के कई मामले चल रहे है परन्तु उन्होंने उनके खिलाफ उपवास तो दूर बतौर आयोग के अध्यक्ष के नाते उनका संज्ञान भी नही लिया।
यह भारतीय राजनीति की संकीर्ण सीमाओं की आम पंरपरा बन गई है। इसलिए उन्हें अब क्या कहा जायेगा। बरहाल 22 अप्रैल को भारत सरकार के पास्को कानून में बदलाव को लेकर अध्यादेश पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिये और अब यह कानून बन गया कि समूचे देश में अगर कहीं 12 वर्ष से कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार होता है तो अपराधी को मृत्यु दंड दिया जायेगा।
बलात्कार के अपराधी को कठारे से कठोर दंड मिले वह फॅासी हो या सार्वजनिक रूप से फाॅसी हो, इस पर मेरी कोई आपत्ति नही, परन्तु कुछ प्रश्न है, जिन पर अपराधों की रोकधाम और भविष्य के दृष्टिकोण से विचार किया जाना चाहिए।
मुझे लगता है कि, एक आम वातावरण जिसमें बलात्कार घटनाओं के प्रति समूचे देश में आक्रोष जन्मा था और बलात्कार और विशेष तौर पर बच्चों के साथ बलात्कार एक राष्ट्रीय चिंता का केन्द्र बना था, उससे चितिंत होकर और उसके निराकरण के लिए भारत सरकार ने यह कदम उठाया जो सब प्रकार से उनके राजनैतिक विचारों के लिए फोरी तौर पर जरूरी था।
1- म.प्र. में 3 माह पहले 12 वर्ष तक की उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार को मृत्यु दंड देने का कानून बनाया गया इसके बाद भी म.प्र. की औद्योगिक राजधानी इंदौर में 5 माह की बच्ची के साथ बलात्कार की घटना हुई और अनेक स्थानों पर भी बलात्कार की घटनायें घटी, क्या इसके बावजूद भी यह माना जा सकता है कि अकेले दंड से बलात्कार, सामूहिक बलात्कार जैसे घृणित अपराध स्थाई रूप से रोके जा सकते हैं?
2- मृत्यु दंड के लिये 12 वर्ष की आयु सीमा रेखा है याने अगर कोई अपराधी 12 वर्ष से ऊपर की उम्र की बच्ची के साथ अपराध करता हैै तो भारतीय राजनीतिक सत्ताधारियों की नजरों में वह कम दंड का पात्र है क्या सरकारें अपराधियों को यह सिखाना चाहती है कि मृत्यु दंड से बचना हो तो उम्र की सीमा रेखा पार कर बलात्कार करें?
3-अपवाद छोड दें तो आमतौर पर बच्चियों से बलात्कार की घटनाऐं उनके आसपास के नजदीकी और परिचित लोगों के द्वारा ही अंजाम दी जाती हैै, आखिर यह मानसिक विकृति कैसे जन्म लेती है और इसके पीछे क्या कारण है क्या इस पर कभी कोई विचार किया गया है.
4-गैंग रेप जैसी घटनाऐं बढने के पीछे भी समाज की यौन विकृतियां, राजनैतिक संरक्षण, धन सरंक्षण और बाहुबल के मद से क्या यह घटनाऐं नही घटती है. यद्यपि यह घटनाऐं आमतौर पर बच्चियों को उनके साथ के अन्य या समकक्ष सम्पन्न और सत्ताधीष परिवारों के लडके करते हैं क्योंकि उन्हें अपनी धन दौलत से, माता पिता की सत्ताई ताकत से बचने का पूर्ण विष्वास और घमंड रहता है।
1980 के दशक में राजस्थान में वहाॅं के दबंग जाति के लोगों ने बलात्कार की घटनाओं को अंजाम दिया था और जब पीडिता ने रिर्पोट कर मुकदमा दर्ज कराया तो उन्होंने चुनौती देकर उसे सार्वजनिक रूप से पकड कर उसके साथ पुनः बलात्कार किया तथा सत्ता को खुली चनौती दी।
यह भी कटु सत्य है कि सत्ता और न्यायपालिका उनके समक्ष पराजित हो गई और अपराधी जीत गए, परन्तु इस घटना पर देश के किसी भी सत्ताधारी दल या सत्ता के प्रत्याषी ,प्रतिपक्षी दल ने इसे चुनौती नही माना और संभव हैं कि इसका एक कारण हमारे देश की सत्ता व्यवस्था का जातीय चरित्र ही है। बरहाल यह एक प्रश्न है जिसका उत्तर समाज को खोजना और देना होगा।
5- यह भी अक्सर देखा गया है कि ऐसे बलात्कारी षराब या अन्य नषों से ग्रस्त होते हैं और वे अधिक नषे के कारण अपना मानसिक संतुलन खो चुके होते हैं। हमारे देष की सरकारें जो षराब की आय को अपने राजस्व का मुख्य स्त्रोत मानती है, क्या वह इन नषे के बाद किये गए बलात्कारों के लिए जिम्मेदार नही हैघ् क्याहमारे समाज और अपराधी के परिजन जो अपने बच्चों को शराब के लिये पैसा देते हैं शराब पीना सिखाते हैं, शराब और बलात्कार को उच्चवर्गीय सामान्य संस्कार मानते हैं क्या वह इसके लिये जबावदार नही है.
6- हमारे देष का मीडिया, सोषल मीडिया फिल्म व साहित्य जो समाज के लिए परोस रहा है, अपराधियों को गौरवान्वित कर रहा है, वह एक प्रकार से अपराध करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, क्या वह इन अपराधों के लिए अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार नही है.
7- बढती आबादी और युवक-युवतियों के लिये घटते मानवीय संपर्क के अवसर, जिनके लिये क्या राजनीति और सत्ता जवाबदार नही है?
मैंने पूना, दिल्ली और अनेक बडे षहरों के पार्क व होटलों में उन गंदी स्थितियों को देखा है जो एक विकृत समाज और विकृत मानसिकता पैदा करती हैं।
आज गरीब और मध्यवर्गीय के लोगों के पास पति-पत्नि या युवक-युवती के संपर्क के लायक स्थान भी नही है और ऐसी परिस्थितियां समाज की पारंपरिक यौन वर्जनाओं को तोड रही है और विकृत कर रही है।
8- देर रात्रि को बच्चे अपने लैपटाॅप या मोबाईल या कम्प्यूटर का क्या इस्तेमाल कर रहे हैं क्या सम्पन्न और षिक्षित माता-पिता इससे अनभिज्ञ हैघ् जब टी.वी. के सामने समूचा परिवार ऐसी फिल्में या दृष्य देखता है जो यौन इच्छाओं की प्रेरक हैं। गरीब बस्तियों के ढावे व होटलों में रिक्शा चालक, गरीब सामूहिक तौर पर उत्प्रेरक फिल्में या दृष्य देखते तब उनके मन इच्छाओं की पूर्ति के लिये हिंसा और अपराध की भावना बलवती हो जाती है।
9- बलात्कार बच्चियों के भावी जीवन पुर्नवास व मानसिक सुरक्षा के लिये वे स्वतः और उनके परिवार चिन्तित रहते हैं क्या समाज इनके लिय़े कुछ सोचता है क्या समाज का सामाजिक दायित्व नही हैघ् कितने नौजवान ऐसे हैं जिन्होंने स्वेच्छा से बलात्कार पीडिता को अपनाने का कदम उठाया है।
हमारे देश में एक विचित्र मानसिकता जारी है जिसमें बलषाली अपराधी के लिए कुंठा या अपमान नही झेलना पडता बल्कि अपराध से पीडित के लिये सामाजिक अपमान झेलना होता है । जब कोई पीडिता अपने मोहल्ले में निकलती है,समाज किस नजर से देखती है यह किसी से छुपा नही है।
अंत में सुझाव देना चाहूॅंगा किः-
1- सभी बलात्कार अपराधियों को एक जैसा दंड का प्रावधान हो चाहे वह फॅासी ही क्यों न हो।
2-बलात्कारी के परिजन माता-पिता उसे बचाने का प्रयास न करें और उन्हें सजा दिलाने का प्रयास करें।
3- बलात्कार के प्रकरणों के निर्णय के लिए विशेष अदालतें बने जो 30 दिन के अंदर इनका निर्णय को ताकि गवाह को बदलने व प्रभावित करने का अवसर न मिले साथ ही गवाहों के नाम पते केवल न्यायपालिका के संज्ञान में रहे ताकि उन्हें कोई प्रभावित न कर सके।
4- मीडिया शोशल मीडिया को अपराध प्रेरक के बजाय अपराध मुक्त समाज बनाने के लिए आवष्यक कदम उठाने चाहिए।
5- नौजवानों को साहस के साथ आगे आकर बलात्कार पीडिताओं के हाथ थामना चाहिए और ऐसे व्यक्तियों को समाज और शाशन को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। बलात्कार पीडिताओं के लिए तथा षादी करने वाले नौजवानों के लिए सरकारी नौकरी में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
6- अगर पीडिता और उनके परिजन उस स्थान को छोडना चाहते हैं तो भारत सरकार को उनके पसंदीदा शहर में प्रधानमत्री आवास योजना के तहत भवन निःशुल्क या आसान किस्तों पर आॅंवंटित करना चाहिए।
7- देश की व्यवस्था को आबादी नियंत्रण के लिए शीघ्र कदम उठाना चाहिए।"
(मदन जैन)
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