
नवरत्न_फाउंडेशन द्वारा सम्मानित अनिल श्रीवास्तव .....
प्रस्तुत है नवरत्न फाउंडेशन द्वारा सम्मानित अनिल श्रीवास्तव के जूनून को दर्शाती एक लेखनी ......
मुख़ालिफ़ है हर-नफ़स, पर हौसला भी कम नहीं।
ज़िद-ओ-ज़ुनून के नाम ये, ज़िन्दगी कुछ यूँ सही।।
*******#मुरारी
#प्रिय_बबलू
लोग तुम्हें भले ही Anil Srivastava के नाम से जानते हों, लेकिन तुम मेरे वज़ूद से #बबलू नाम से बावस्ता हो। आज लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य-सरोकारों के लिए तुम जब दिल्ली में #नवरत्न_फाउंडेशन द्वारा सम्मानित हुए तो मेरी खुशियों का पारावार न रहा। तुम्हें सम्मानित होते देख ख़ुशी से मेरी आँखें नम हुईं। यह लिखते हुए भी मेरी आँखें भीगी-भीगी सी हैं। मुझे वे दिन याद आते हैं जब लखनऊ में तुमने पत्रकारिता के क्षेत्र में मेरा सहयोग करने के निमित्त कदम-कदम पर मेरा साथ दिया। कवरेज से लेकर खबर तैयार करने में तुम्हारे उत्साह का कोई मुकाबला नही था। अच्छा पत्रकार होने की हर काबिलियत तुममें थी। तुम्हारे सहयोग से मुझे ख़बरों की दुनिया में काफी कुछ अच्छा करने के तमाम मौके हासिल हुए। मुझे गर्व है क़ि तुमने उस दौर में जो सीखा, उसे लेकर तुम बहुत आगे आए.. और आज भी पूरी शिद्दत से लेकर चल रहे हो। आज अख़बारों, वेब पोर्टल और सोशल मीडिया में तुम्हारे दखल का कोई ज़वाब नही है।....और यह सब उन हालातों में...जब तुम........
.........कहते-कहते रुक जा रहा हूँ...इस पोस्ट में मैं यहाँ तक सिर्फ तुमसे मुखातिब हूँ....लेकिन आगे जो कहना चाहता हूँ, वह सबसे मुखातिब है। अनिल लंबे समय से भले ही दिल्ली में हों, लेकिन सन् 2000 के पहले लखनऊ ही अनिल का बसेरा था। उधर के ही चार-पाँच वर्षों में ही अनिल मेरे साथ रहे। किन्हीं कारणों से मैंने जब लखनऊ छोड़ा तो, बाद भी अनिल पत्रकारिता में सक्रिय रहे। मेरी यायावरी मुझे जहाँ-तहाँ ले गई, उधर अनिल दिल्ली चले गए। कब गए यह मुझे पता न चला।
वर्ष 2008 में मैं जब पुनः लखनऊ आया तो अनिल के दिल्ली में होने की जानकारी मिली। यहाँ तक तो ठीक था। लेकिन मुझे जब यह पता चला कि अनिल यानि बबलू की दोनों किडनियाँ ख़राब हो गई हैं, और मेरा प्यारा बबलू डायलिसिस पर है, यह मेरे लिए सदमे जैसा था। मैंने अपने भांजे Diwakar Chauhan से मोबाइल नंबर लेकर अनिल से बात की। गंभीर बीमारी से जूझते हुए भी अनिल की आवाज में पहले ही जैसी खनक थी। पता चला क़ि अनिल ने दिल्ली में ही एक निजी उद्यम संचालित करने के साथ ही कलम से अपना रिश्ता बनाये रखा है। यह भी गौरतलब है क़ि अनिल का किडनी ट्रांसप्लांट एक बार असफल हो चुका है। आज भी डायलिसिस जैसी पीड़ादायी प्रक्रिया से गुजरना अनिल का रूटीन है।
इस तरह मज़बूत इरादे, बुलंद हौसले और अदम्य जिजीविषा की मिसाल हैं अनिल। नवरत्न फाउंडेशन द्वारा सम्मान के सच्चे हक़दार हैं अनिल। हम सबको गर्व है तुमपर।
.....और हाँ, प्रिय बबलू..अब फिर तुमसे मुखातिब हूँ। तुम्हें इस सम्मान के लिए बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ! तुम स्वस्थ रहो, खुश रहो...लिखने के अपने हुनर को नित नए आयाम देते रहो। हम सब की दुआएँ हमेशा तुम्हारे साथ हैं।
#मुरारी