सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, BCCI को करानी होगी बिहार की रणजी ट्रॉफी में वापसी
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के रणजी खेलने का रास्ता साफ कर दिया. अब बिहार की 18 साल बाद रणजी में वापसी होगी.
नई दिल्ली, 13 मई: सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई अधिकारियों के खिलाफ क्रिकेट एसोसिएशन आफ बिहार की अवामनना याचिका का भी निबटारा करते हुए बिहार का रणजी क्रिकेट में खेलने की सारी बाधाएं दूर कर दी हैं. अब रणजी इतिहास में 18 साल बाद बिहार की वापसी होना तय माना जा रहा है. . क्रिकेट एसोसिएशन आफ बिहार ने 20 अप्रैल को दायर याचिका में आरोप लगाया था कि रणजी ट्राफी सहित राष्ट्रीय स्तर के घरेलू टूर्नामेन्ट में बिहार को खेलने की अनुमति देने के आदेश पर अमल नहीं किया जा रहा है.
पीठ ने बीसीसीआई, प्रशासकों की समिति और न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमणियम के इस बयान पर विचार किया कि बिहार सितंबर से शुरू होने वाले क्रिकेट के सत्र में राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेन्ट में हिस्सा लेगा. पीठ ने कहा कि संविधान के मसौदे को वह मंजूर करेगा और यह बीसीसीआई के लिए बाध्यकारी होगा. हालांकि, न्यायालय ने साफ किया कि 2016 का फैसला वापस लेने के लिये दायर याचिकाओं पर उसका आदेश संविधान के मसौदे की वैधता के सवाल पर भी विचार करेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘‘एक राज्य, एक-मत’’ नीति के मामले में जस्टिस आर एम लोढ़ा समिति की सिफारिश पर फिर से विचार कर सकता है. कोर्ट ने कहा कि वह कुछ क्रिकेट निकायों की पूर्णकालिक सदस्यता समाप्त होने से संबंधित एकमात्र पहलू पर गौर कर सकता है. जस्टिस लोढ़ा समिति की सिफारिशों में एक यह भी है कि एक राज्य में सिर्फ एक क्रिकेट संघ होगा जिसके पास पूर्ण सदस्यता और बीसीसीआई में मतदान का अधिकार होगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2016 के फैसले में इसे मंजूरी प्रदान कर दी थी.
इससे एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के संविधान के मसौदे पर आज राज्य क्रिकेट एसोसिसएशनों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों से सुझाव मांगे थे.
ये खेल संघ हो रहे हैं नियम से प्रभावित
एक राज्य एक वोट की नियम की वजह से मुंबई क्रिकेट संघ (एमसीए), क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआई), विदर्भ क्रिकेट संघ, बड़ौदा क्रिकेट संघ और सौराष्ट्र क्रिकेट संघ जैसे प्रतिष्ठित निकायों ने स्थाई सदस्यता और मतदान के अधिकार गंवा दिए. ये निकाय महाराष्ट्र और गुजरात से हैं. भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) में इन राज्यों से अलग स्थाई सदस्य हैं.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जहां तक पूर्वोत्तर राज्यों के लिए ‘‘एक राज्य, एक मत’’ नीति का सवाल है तो उस पर पुनर्विचार नहीं किया जाएगा. पीठ में जस्टिस ए एम खानविल्कर और जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ भी शामिल हैं. पीठ ने हालांकि संकेत दिया कि वह महाराष्ट्र और गुजरात के क्रिकेट निकायों के पहलुओं पर गौर कर सकती है क्योंकि खेल में उनकी ऐतिहासिक भूमिका रही है तथा उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक पूर्वी राज्यों का सवाल है, आप उन्हें (उनके अधिकार से) वंचित नहीं कर सकते... हम समावेश के सिद्धांत के पक्ष में हैं.’’
न्यायालय ने राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों से कहा कि वे संविधान के मसौदे पर अपने सुझाव न्याय मित्र गोपाल सुब्रमणियम को 11 मई के पहले सौंप दें. इस मामले में अब 11 मई को आगे सुनवाई होगी.
न्यायालय ने राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों से कहा कि वे संविधान के मसौदे पर अपने सुझाव न्याय मित्र गोपाल सुब्रमणियम को 11 मई को सौंपे. इस मामले में अब 11 मई को आगे सुनवाई होगी. पीठ ने महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन को निर्देश दिया कि वह कल होने वाले अपने चुनाव स्थगित कर दे.
प्रशासकों की समिति ने पिछले साल अक्तूबर में बीसीसीआई के संविधान का मसौदा न्यायालय में पेश किया था जिसमें बोर्ड में सुधार के बारे में आर एम लोढा समिति के सुझावों को शामिल किया गया है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान के मसौदे में लोढा समिति के सुझाव पूरी तरह शामिल किये जायें ताकि अंतिम निर्णय के लिये एक समग्र दस्तावेज उपलब्ध हो सके.
(साभार- Zee News)
सम्पादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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